भक्त शिरोमणि माता कर्मा जी का जन्म नागौर जिले की मकराना तहसील के कालवा गाँव में जीवनराम के घर चार सौ साल पहले सन् 1614 (विक्रमी 1671 की श्रावण कृष्णत व्दाीदशी) को हुआ था । काफी जप-तप करने के बाद होने की वजह से इस कन्या( का नाम कर्मा रखा गया । करमा के जन्मि पर पूरे गांव में मंगल गीत गाये गये । बाल्य काल से ही कर्मा के चेहरे पर एक अनूठी आभा दिखाई पड़ती थी । अकेली होने से वह घर की लाड़ली थी, पर खेल-कूद के स्थाभन पर घर के एकान्ती में वह पालथी मार कर बैठ जाती और चारभुजा नाथ को निहारती रहती । जीवनराम का घर कालवा के चारभुजा नाथ मंदिर में ही था और घर के आंगन से मंदिर में स्थित भगवान की मूर्ति साफ दिखाई देती थी । भगवान की सेवा-पूजा का काम जीवनराम ही करते थे ।
कर्मा अब तेरह साल की हो गई । जीवनराम को कार्तिक पूर्णिमा पर स्नासन के लिये तीर्थराज पुष्कमर जाना था । कर्मा की मां को भी इस बार पुष्काूर स्ना्न करना था । कर्मा बड़ी हो गई थी, इसलिये मंदिर में भगवान की ठीक से सेवा-पूजा का काम उन्होंरने उसे ही बताया । जाते समय उन्हों ने कहा -बेटी स्नाभन ध्याऔन कर भगवान को भोग लगा कर ही कुछ खाना । चार भुजा नाथ की सेवा में कमी मत रखना ।
बाबा और मां के जाने के बाद दूसरे दिन सुबह करमा ने स्ना न कर बाजरे का खीचड़ा बनाया और उसमें खूब घी डाल कर थाली को भगवान की मूर्ति के सामने रख दिया । हाथ जोड़ कर उसने चारभुजानाथ से कहा-प्रभु भूख लगे तब खा लेना, तब तक मैं और काम निपटा लेती हॅू ।
कर्मा घर का काम करने लगी । बीच-बीच में देख्ा लेती थी कि प्रभु ने खीचड़ा खाया कि नहीं । थाली वैसी की वैसी देख कर उसे चिंता होने लगी कि आज भगवान भोग क्योंी नही लगा रहे ? कुछ सोच कर उसने खीचड़े में थोड़ा गुड़ व घी और मिलाया तथा वहीं बैठ गई । भगवान से वह कहने लगी - प्रभु तुम भोग लगा लो, बाबा पुष्कहर गये हैं, आज वे नहीं आयेंगे । मुझको भोग लगाने को कह गये हैं, सो खीचड़ो जीम लो, तुम्हामरे खाने के बाद मैं भी खाऊंगी । परन्तु , थाली फिर भी भरी की भरी रही । अब कर्मा शिकायत करने लगी -प्रभु बाबा भोग लगाते हैं तो कुछ समय में ही जीम लेते हो और आज इतनी देर कर दी । खुद भी भूखे बैठे हो और मुझको भी भूखा मार रहे हो ।कर्मा ने थोड़ा इंतजार और किया पर खीचड़ा वैसा का वैसा ही रहा । अब तो कर्मा को क्रोध आ गया और वह बोली - प्रभु मैंने कहा ना, बाबा आज नही आयेंगे । तुमको मेरे हाथ का ही खीचड़ा खाना है । खा लो, वरना मैं भी भूखी रहॅूगी, चाहे प्राण ही क्यों न निकल जायें ।
दोपहर ढल गयी, तीसरा पहर भी ढलने लगा तो कर्मा गुस्सेल में उठ खड़ी हुई और गर्भ-गृह के खम्भेस पर अपना सर मारने लगी ।
उसी समय एक आवाज आई - ठहर जा कर्मा, तुने परदा तो किया ही नहीं, खुले में मैं भोग कैसे लगाऊँ ? यह सुनकर कर्मा ने अपनी ओढ़नी की ओट कर दी और बोली-प्रभु इतनी सी बात थी तो पहले बता देते । खुद भी भुके रहे और मुझको भी भूखा मार दिया ।
कर्मा ने ऑखें खोली तो पाया कि थाली पूरी खाली हो गई । उसने संतोष की सांस ली और खुद ने भी खीचड़ा खाया । अब तो हर रोज यही क्रम चलने लगा । कुछ दिनों के बाद बाबा पुष्क र से घर लौट आये । घर आकर उन्हों ने देखा की घी और गुड़ खत्मछ होने वाला ही था । उन्हों ने कर्मा से पूछा कि पूरा मटका भरा घी और सारा गुड़ कहॉ गया ? कर्मा ने भोलेपन से जवाब दिया -
बाबा तेरो चारभुजा नाथ तो थाली भर के खीचड़ा खा जाते हैं । पहले दिन तो मैं बहुत परेशान हुई । प्रभु का परदा नहीं किया तो उन्हों ने भोग ही नहीं लगाया । तुमने मुझको बताया क्यों नहीं कि परदा करने पर ही ठाकुर जी भोग करते हैं । जब मैंने परदा किया तो प्रभु पूरी थाली साफ कर गये ।
जीवनराम चिन्ताग में पड़ गये कि बेटी कहीं पगला तो नहीं गई है । फिर सोचा कि शायद सारा घी-गुड़ कर्मा खुद ही खा गई । पर कर्मा अड़ी रही कि घी-गुड़ ठाकुर जी ने ही खाया है । इस पर बाबा ने कहा-ठीक हैं बेटी कल भी तू ही भोग लगाना, प्रभु जीमेंगे तो मैं भी दर्शन कर लूंगा ।
कर्मा समझ गई कि बाबा उस पर शक कर रहे हैं । दूसरे दिन उसने फिर खीचड़ा बनाया और थाली भर कर ठाकुर जी के सामने रख दिया । चारभुजा नाथ के सामने परदा कर वह कहडने लगी -
प्रभु, बाबा मुझको झूठी समझ रहे हैं । रोज की तरह भोग लगाओ । बाबा का शक दूर करो, वरना मैं यहीं प्राण त्यादग दॅूगी ।
कहते है कि योगेश्वणर श्रीकृष्णद ने जीवनराम को दिव्यत दृष्टि दी और दोनों पिता-पुञी के सामने खीचड़े का भोग लगाया । प्रभु के दर्शन कर जीवनराम का जीवन धन्यी हो गया । भक्ति विभोर हो जीवनराम नाचने लगे और चारभुजानाथ तथा कर्मा के जयकारे लगाने लगे । जयकारे सुन कर गांव के लोग भी मंदिर में आ गये और कर्मा माता का जय-कारा करने लगे । उसी दिन से भक्ति शिरोमणि के रूप में उनकी प्रसिध्दि हो गई ।
अपने अंतिम समय में कर्मा जगन्नाजथपुरी में रहीं । वहॉ भी वे प्रतिदिन श्रीकृष्णि के प्रतिरूप भगवान जगन्ना थ को खीचड़े का भोग लगाती थीं । आज भी पुरी के जगत्प्र सिध्दत मंदिर में प्रतिदिन ठाकुर जी को खीचड़े का ही भोग लगाया जाता है ।
कर्मा माता की जय ।