समय के साथ कदमताल... साहू समाज ने समय के साथ बदली सोच,मैय्यत में कफन की जगह लेकर जाते हैं मदद की राशि । समाज की खातिर मृत्यु भोज में मीठा खिलाने से दुर्ग सांसद ने किया तौबा
भिलाई - छत्तीसगढ़ साहू समाज ने बरसों से चली आ रही मृत्युभोज में मीठा खिलाने की परंपरा को अब ना कह दिया है । ऊंच-नीच, छोटे-बडे, अमीरगरीब का भेद दूर करते हुए समाज में एक साथ इस नियम को अपनाने के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है । समाज की ये पहले उस वक्त और अधिक प्रभावी हो गई जब दुर्ग के सासद ताम्रध्वज साहू ने अपने पिता के स्वर्गवास के दशगात्र कार्यक्रम में मीठा खिलाने से स्वयं हाकर परहेज किया ।
सामाजिक नियम का मान रखते हुए उन्होंने नवंबर 2017 में संपन्न हुए दशगात्र कार्यक्रम में सादा भोजन लोगों की थाली में परोसकर बराबरी का संदेश दिया । इसकी पुष्टि प्रदेश साहू संघ के अध्यक्ष विपिन साहू ने की । उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 से मृत्युभोज में मीठा नहीं परोसने का ऐच्छिक नियम समाज में सर्वसम्मति से पारित किया गया है । निकट भविष्य में इसे कड़े नियम के रूप में लागू करने की योजना है । ताकि दुःख की घड़ी में समाज के लोग एकजुट हो सके । फिजूल खर्चे का बोझ लोगों पर न पड़े । साहू समाज ने सदियों से चली आ रही रूढिवादी जड़ताओं को तोड़ते हुए मैय्यत में शव पर कफन ओढाने की जगह वहां रखे श्रद्धांजली पेटी में पैसा डालने की नई परंपरा की शुरुआत की है। जिससे दुःखद घड़ी और आर्थिक विषमताओं से जूझ रहे परिवार की किसी तरह से मदद हो पाए । इस नई पहल का प्रदेश के लगभग 56 लाख साहू समाज के लोगों ने दिल खोलकर स्वागत किया है।
भिलाई से लगे धनोरा ग्राम पंचायत में साहू समाज के अलावा अन्य समाज के लोगों ने भी कफन की जगह दान पेटी में पैसा डालने की परंपरा को अपना लिया है । दुर्ग जिला साहू संघ के अध्यक्ष अयोध्या प्रसाद साहू ने बताया कि समाज में हजारों लोग ऐसे हैं, जो गरीबी और लाचारी से जूझ रहे हैं । अपनों को खोने के गम के साथ यदि अंतिम संस्कार के क्रियाकर्म के लिए कुछ राशि जुट जाती है तो वे राहत की सांस ले पाते हैं । लगभग 2 साल से दान पेटी लेकर सामाज के प्रतिनिधि शोकाकुल परिवार के बीच पहुंचकर उनकी मदद कर रहे हैं । धनारा परिक्षेत्रिय साहू समाज के मनेश साहू, विजय साहू, चैनसिंह साहू, दयाराम गुरुजी, विरवा, नंदकुमार जीतेंद्र, हेमचंद साहू, रविश कुमार साहू आदि ने बताया कि धनोरा में डेढ़ साल से श्रद्धांजली पेटी की परंपरा चल रही है । इसे गांव में दीगर समाज के लोग भी अपना रहे हैं । वे किसी के निधन पर समाज से श्रद्धांजली पेटी मांग कर ले जाते हैं ।
समय बदल रहा तो हम क्यों न बदलें
मृत्युभोज और कफन की जगह श्रद्धांजली पेटी ( दान पेटी) जैसी नई सोच लाने वाले समाज के मुखिया का मानना हैकि जब समय बदल रहा है तो हमें भी बदलने की जरूरत है । कब तक पुरान पंरपराओं के नाम पर लोगों के कंधों में बोझ डालते रहेंगे । परिवार का वृहद स्वरूप समाज है । इसलिए विकास के दौर में आर्थिक विषमाओं के कारण पीछे रह जाने वाले बंधुओं को साथ लेकर चलने का प्रयास साहू समाज कर रहा है । ताकि राज्य और देश के विकास में अहम भूमिका अदा कर सके ।