प्राचीन काल की बात है, सात भाईयों की एक बहन थी, जिसका नाम था कर्मा भाई । वह भगवान श्री कृष्ण जी की भक्ति में मग्न व लीन रहने वाली भयितन थी । उसको केवल भगवान श्री कृष्ण के अलावा जीवन में कुछ पाने की चाहत नहीं थी। यहीं यात भाईयों के मन में हमेशा खटका था और फर्गा माता पर उलटा-सीधा आरोप लगाकर उसे बहुत प्रताड़ित करते थे । लेकिन में कम प्रताड़ित होकर भी भगवान श्री कृष्ण की भक्ति को नहीं छोड़ी । भगवान के लिए माँ कर्मा खिचड़ी बनाकर ले जाती और भगवान को अपने हाथों से खिचड़ी खिलाती । भगवान स्वयं कम माता के हाथ से खिचड़ी खाने के लिए स्वयं साक्षात् आते थे । यह सब देखकर उनके भाईयों के मन में गलत विचार पैदा होता था, और उसके भाईयों के नजर में, भगवान श्री कृष्ण जी एक गैर आदमी के रूप में दिखाई देता था । उसके भाईयों ने भगवान को खिचड़ी खिलाते देखकर कर्मा माता के हाथ-पैर रस्सी से बांधकर तेज धूप में सुला देते थे, जो भगवान की भक्ति में माँ को फुल के समान लगता था । कई-कई दिनों तक भूखी-प्यासी रहती थी, अन्न की दाना भी उनकों नसीब नहीं होता था। फिर भी माँ कर्मा को भगवान की भक्ति में भूख-प्यास नहीं लगता था । दिन-प्रतिदिन उनके भाईयों का अत्याचार बढ़ते गया । माँ कर्मा बहुत परेशान एवं दुःखी हो गई, तब माँ कर्मा एक दिन भगवान श्री कृष्ण से कहती ।
हे प्रभु, मुझे आप अपने शरण में ले लो और मोक्ष दे दो । तब भगवान श्री कृष्ण म कर्मा से कहते है है देवी कर्मा, तुम्हें मेरी शरण में आना है तो तुम्हें मेरे द्वार जगन्नाथ पुरी में आना होगा । मैं तुम्हें पुरी में ही शरण दूंगा । माँ कर्मा भगवान से बोलती है, मैं जरूर आऊग प्रभु । इस तरह भगवान्, म कम माता की बात सुनकर अन्तर-ध्यान हो गये ।
उसके बाद माँ कर्मा अपने घर एवं भाईयों को छोड़कर, भगवान श्री कृष्ण के नाम का जाप करती हुई निकल जाती हैं । बहुत दूर पैदल चलते-चलते नदी के तट पर आती है, जहां आगे का रास्ता नदी से शुरू होता है । तब नदी की यात्रा तय करने के लिए माँ कर्मा, करमसेनी वृक्ष की नाव बनाती है और नदी में नाव घेते-खेते आगे बढ़ती है । आगे बढ़ने पर नदी के किनारे एक छोटा सा गांव दिखाई देता है, जहां नदी के तट पर एक घसिया अपने घोड़े को धो रहा था । अचानक उस घसिया की नजर माँ कर्मा पर पड़ता है । घसिया माँ कर्मा को देखता है, तय उसे देवी के रूप में दिखाई देता है । उसकी आमा तृप्त हो जाती है, और उसे ऐसे प्रतीत होता है कि उसकी जिंदगी सफल हो गया हो । म नाव खेती-खेती घसिया के करीब पहुँच जाती हैं । तभी घसिया हाथ जोड़कर प्रणाम करता है, और माँ कार्मा से अर्जी विनती करता है । माँ आप मेरी गरीब की कुटिया में पधारे ताकि केरा जीवन सफल हो जाये । म उस घसिया की अर्जी विनती को सुनकर, हां बोलती है । घसिया, मों को नदी के तट पर बिठाकर अपने परिवार एवं कुटुम्ब को बुलाने के लिए हँसी-खुशी से चला जाता है । वह अपने परिवार एवं कुटुम्ब बीच पहुँचता है, और माँ कर्मा के बारे में बताता है कि, नदी तट पर एक ऐसी देवी आई है जो साक्षात् ईश्वरीय माता है । वह हमारे कुटिया में आने के लिए तैयार है, जिसके आने से हम और हमारा कुटुम्ब परिवार का जीवन सफल हो जायेगा । यह बात सुनकर पुरा कुटुम्से परिवार खुशी से उत्साहित हो जाता है, और मांदर के थाप में नाचते-गाते माता को लाने के लिए नदी के तट पर जाते हैं ।
जब सभी घसिया कुटुम्ब माँ कर्मा को देखते है तो सभी उनके चरण में जा गिरते हैं, और नम आँखों से माता को अपनी कुटीर में जाने का प्रार्थना करते हैं । माता यह देखकर बहुत प्रसन्न होती है, और इन घसिया लोगों के साथ उनके कुटीर में जाने के लिए तैयार हो जाती है । यह दिन भाद्रपक्ष एकादशी का दिन था । इस तरह पसिया परियार नाचते-गाते माता की जयकारा लगाते हुए अपनी कुटीर की ओर ले जाते है ।
सभी घसिया अपने-अपने कुटीर में ले जाने के लिए आग्रह करते है, तब माँ कम माता कहती है, तुम सब अपने-अपने घर न ले जाकर, मुझे एक ऐसा स्थान दो जहां तुम सब एकत्रित होकर मेरी सेवा-अर्चना कर सकते हो । माँ की बात सुनकर सभी कम्य परिवार तैयार हो गये । चारों ओर कुटीर के बीच एक चबुतरा था, उस चबुतरा को साफ-सफाई कर, चौक पूर कर, म कम माता को चबुतरे में बैठाकर धुप-दीप, फुल माला, एवं भैया अर्पित कर पूजा-अर्चना किया और माँ के आने की खुशी में रातभर नाचते-गाते रहे ।
सुबह होने पर म बोली-मै तुम सभी से बहुत प्रसन्न हूँ । अब मुझे जगन्नाथ पुरी जाना है, भगवान श्री कृष्ण के पास । इसलिए मुझो नदी के तट राफ पहुंचा दो । तय सभी घसिया, माता को हँसी-खुशी से नाचते-गाते हुए नदी के तट पर ले गये । सभी घसिया म फर्मा से विनम्र भाव से बोले- मों आपके आने से हमारा फुटू परिवार धन्य हो गया । हम प्रत्येक वर्ष आपकी पूजा-अर्चना करना चाहते हैं । आप प्रति वर्ष हम सभी गरीबों की कुटिया में पुनः पधारे ।
माँ कर्मा कहती है- मैं हर वर्ष तुम्हारे कुटीर में नहीं आ सकुंगी, किन्तु तुम लोग मेरे पुण्य प्रताप (आर्शीवाद) को पाना चाहते हो. तो भाद्पक्ष एकादशी के दिन करमसेनी वृहा की छाल को काटकर लाओगे और उसकी सच्चे मन से पूजा-अर्चना करोगे तो मेरा आर्शीवाद सदा प्राप्त करोगे । तब से लेकर आज तक घसिया कुटुम्ब परिवार माँ कर्मा माता को भाद्रपक्ष एकादशी के दिन पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं । गों नाव में सवार होकर आगे बढ़ गई आगे बढ़ते-बढ़ते एक नदी के तट के पास पहुँच गई । म कर्मा खाली हाथ थी उसके पास कुछ भी नहीं था । म सोंचती हैं मैं जगन्नाथ पुरी पहुँघुगीं तो भगवान को क्या खिलाऊगी ? तब माँ ने फैसला किया कि इस गांव में कुछ मेहनत करके प्रभु के लिए खिचड़ी का इंतजाम करती हैं। तब एक तेली के घर पहुँचती हैं, और तेली से पुछती है- मुझे यहां कुछ काम मिलेगा । तेली, माँ कर्मा को देखता है माँ कर्मा पतली-दुयली पुड़िया एवं निर्मल दिखाई देती है । तेली सोचता है यह काम नहीं कर सकेगी । फिर भी काम में रख लेता है, और उसे रोल पिराई का काम देता है, में कर्मा उसी दिन से काम करना शुरू कर देती है, माँ कर्मा के काम को देखकर वह तेल एवं वहां काम करने वाले जन आश्चर्य चकित पड़ जाते है । एक बुढी सी पतली-दुबली औरत देखते ही देखते पच्चास आदमी के काम को पल भर में ही कर देती है । उसके काम की चर्चा पुरे नगर में फैल जाता हैं ।
तेली परिवार एवं उसके फटम्ब परिवार उसके काम के बात सुनकर देखने के लिए उत्साहित हो जाते है, और सय माँ फार्मा को तेल पिराई करते देखते हैं, तो हैरान हो जाते हैं । माँ की मुख मण्डल का तेज देखकर सब लोग जान जाते है कि यह कोई ईश्वरी देवी होगी । तेली एवं उसके कुटुम्ब परिवार माँ कर्मा माता की चरणों में झुक जाते है, और माँ को अपनी गलती के लिए क्षमा याचना करते हुए और माता से पुछते है कि आप कौन हो आप अपना परिचय दीजिए । तब माता कर्मा अपनी परिचय देती हुई कहती है। कर्मा हैं और मैं भगवान श्री कण जी की भक्तन हैं । प्रभु से मिलने मुझे पूरी जाना है । जगन्नाथ पुरी जाने से पहले मैं भगवान श्री कृष्ण के लिए खिचड़ी का प्रबंध कर लें । इसी कारण मैं यहां आई हैं। यह बात सुनकर तेली कुटुम्ब परिवार अपने आप पर शर्मिदा होते है और माता से अपनी भुल पर क्षमा मांगते है । उसके पश्चात् तेली कुटुम्ब परिवार धन, वस्त्र एवं अन्न सभी प्रकार की वस्तुएं देने की बात करते है ।
माँ कर्मा उन लोगों के आदर भाव को देखकर प्रसन्न हो जाती है और कहती है-मुझे कुछ नहीं चाहिए अगर मुझे कुछ देना है तो थोड़ा सा प्रभु के लिए खिचड़ी बनाने के लिए अन्न दे दे। और मुझे नदी के तट पर छोड़ दो । तैली परिवार में कम माता के कहने के अनुसार थोड़ा सा अन्न पोटली में बांधकर माँ को नदी के तट पर छोड़ देते हैं ।
माँ उसी नाव में बैठकर पुरी के लिए आगे प्रस्थान करती है, और माँ कर्मा जगन्नाथ पुरी पच जाती है । पुरी पहुँच कर माँ अत्यंत प्रसन्न होती है कि चहत दिनों के बाद प्रभु के दर्शन होगे-जय माँ कर्मा जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करने के लिए जाती है तो वहां का पुजारी (पण्डा) उसको जाने से रोक देता है । पुजारी की नजर में माँ कर्मा बुढी. पागलों की तरह अस्त-व्यस्त वस्त्र पहनी दिखाई देनी है, इसलिए पुजारी उसे खरी-खोटी कहकर मंदिर से भगा देता है ।
माँ कर्मा बहुत ही मायुस होकर भगवान श्री कृष्ण जी को पुकार लगाती है-हे भगवान मैं आपके मंदिर के दरबार तक आ गई हैं, लेकिन मुझ अभागिन को आपके दर्शन नहीं हो सकी । प्रभु- आपके मंदिर के पुजारी ने मुझे आपके दर्शन करने से रोक दिया, और मैं आपके पास नहीं पहुँच सकी, आपको ही मेरे पास आना होगा । प्रभु-मैं आपके लिए समुद्र तट पर खिचड़ी बना रही हैं।
भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तिन कर्मा का इंतजार बहुत दिनों से कर रहे थे । पुजारी के व्यवहार से प्रभु बहुत दू:खी हुए. और प्रभु अपने धाम मंदिर को छोड़कर मों कर्मा के पास चले गये । जब म प्रभू को देखी तो उनके चरणों में गिर गई और उसकी आँखों से आंसू निकल आये । भगवान श्री कृष्ण जी को बैठाकर श्रद्धा भाव से खिचड़ी खिलाने लगी, और प्रभु खिचड़ी खाने लगे ।
मंदिर में जय पुजारी, पूजा के लिए मंदिर का दरवाजा खोला तो पुजारी आश्चर्य चकित रह गया, कि भगवान श्री कृष्ण मंदिर में नहीं है । यह बात पुरी में आग की तरह फैल गई और भगवान को सभी जगह दुढ़ने लगे लेकिन भगवान कहीं नहीं मिले ।
तभी पुजारी को याद आया कि मंदिर में एक बुढी, पगली सी एक औरत आई थी, और मेरे भगाने के कारण समुद्र की तट की ओर गई है । यह बात सभी लोग सुनकर समुद्र तट की ओर गये और वहां सभी लोगों ने देखा कि-एक बुढी सी औरत भगवान श्री कृष्ण जी को खिचड़ी खिला रही है । यह देख सभी को अत्यंत दुःख हुआ और माता कर्मा से बारम्बार मा-याचना करने लगे। पुजारी भगवान श्री कृष्ण जी से विनय करने लगे हे-प्रभु आप मंदिर में अपने स्थान पर विराजें । श्री कृष्ण जी ने कहा मैं मंदिर जरूर जाऊंगा लेकिन सबसे पहले भोग मेरी भक्तिन–कर्मा की लगेगी, उसके पश्चात् मुझे लगेगा । पुजारी प्रभु की बात को स्वीकार किया । प्रभु ने सभी से कहा-आप सभी चलिए मैं मंदिर में आ जाऊंगा । ।
माँ कर्मा भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना करती हुई कहती है-हे प्रभु मेरी इस दुनिया में आपके अलावा कोई नहीं है इसलिए मुझे आप अपनी शरण में ले लो । तभी भगवान श्री कृष्ण, मों कर्मा को ज्योति रूप में अपने हदय में अन्र्तध्यान कर लेते हैं । तत्पश्चात् भगवान श्री कृष्ण अपने मंदिर में वापस अपने स्थान में विराजते है ।
तेली साहुसमाजकी तरहा सारथी समाज मे भी मॉं कर्मा देवीकी कथा प्रचलीत है यह कथा उनमेसेही एक है
जय माॅं कर्मा। जय श्री कृष्ण