घोला ग्राम-जिला मुख्यालय राजनांदगांव से मात्र 11 कि.मी. पर राजहरा झरनदल्ली मार्ग पर स्थित 5 हजार की आबादी वाला गांव माता की वह पुण्य भूमित हैं, जहां बालिका भानुमति के चमत्कार से लोग विस्मृत हो उठे। मध्यम किसान सोमनाथ साहू के परिवार में 9 मई 1911 को भानुमति का जन्म हुआ। 12 वर्ष की अवस्था में चमत्कार हुआ। शरीर में बड़े चेचक के दाने उभरे, जो निरंतर कम ज्यादा होने लगे बुखार तो होता ही था। अन्ततः शीतला मंदिर में माता पहुंचानी का पर्व किया गया। भानुमति ने जैसे ही मंदिर में प्रवेश किया, उनका शरीर अत्यधिक आवेशित हुआ। वह हंसने-रोने लगी और अटल संकल्प लिया कि वे अब शीतला मंदिर में ही रहेंगी। यहीं से ही चमत्कारिक घटना हुई। भानुमति पर देवी आदेश प्रारंभ हुआ। दुखी-संतप्त लोग, संतानहीन जन आने लगे भानुमति अब माता भानेश्वरी देवी की कृपा आशीष से सभी की कामना पूरी होने लगी। राजनांदगांव के कई सम्पन्न नागरिक मतानुसार व्यापारी, किसान सभी माता के अनुयायी हो गये। पागल भी लाए जाते एवं माता की कपा से स्वस्थ हो जाते थे। प्रतिफल यह रहा कि अब उस आश्रम में वर्ष पर्यंत चांरा पर्व के अतिरिक्त श्रीमद् भागवत, महाभारत, अखण्ड रामायण पाठ आदि धार्मिक कार्य होते थे किन्तु कभी भी भोजनादि की कमी नहीं हुई। ग्राम सिंघोला में यह मान्यता है कि वह पर्व विशेष पर कील-कट युक्त पाटा में बैठती थी। वह आज भी विद्यमान है।स्वास्थ लाभ के अनेक प्रमाण वहां मिलते हैं। माता भानेश्वरी के रूप में विख्यात होने वाली इस साहू कुल गौरव अवश्य ही अलौकिक देवी शक्ति की अधिकारिणी थी, जिसके कृपा मात्र से श्रद्धालु सुख प्राप्त करते थे। माता भानेश्वरी ने अपने महाप्रयाण की एक वर्ष पूर्व ही भविष्यवाणी । कर दी थी। अतः आदेशानुसार देवी की समाधि स्थल का निर्माण किया गया, जहां वह समाधिस्थ हैं। इनके व्यवहृत वस्त्र-आभूषण एवं पर्व विशेष में दर्शनार्थ प्रदर्शित होते हैं। यहां पर रहने वाले श्रद्धालुजनों का अनुभूति परख अनुभव है कि माता भानेश्वरी देवी का सूक्ष्म शरीर अभी भी यहां पर विद्यमान हैं। यहां प्रतिवर्ष मेला भरता है। संत माता भानेश्वरी देवी ने 3 नवम्बर 1975 को समाधि ली।