छत्तीसगढ़ी लोक कला मंच में एक मीठी आवाज के साथ गायन एवं अभिनय से सबका मन मोह लेने में। महारत हासिल व्यक्तित्व के धनी है श्री मिथलेश साहू। जिन्होंने बचपन की छोटी उम्र से लोक कला को अपने में अंदर समेटे हुए हैं। अपने अभिनय एवं गायन प्रतिभा का लोहा मनवा चुके श्री साह का नाम छत्तीसगढ़ के साथ-साथ अन्य प्रांतो में भी प्रसिद्ध है। लोक कला को अपने जीवन का महत्वपूर्ण अंग बनाकर पूरे जीवन समर्पित भाव से कार्य करते आ रहे।
श्री मिथलेश साहू अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि, मेरे गाँव में स्कूल नहीं था। तो हमारे घर पर काम करने वाले श्री रामसिह गोड़ के यहाँ कुकदा में रहकर पढ़ाई किए। कुकदा में प्राथमिक शिक्षा व आगे की शिक्षा पाण्डुका में हुई। आगे की पढ़ाई के लिए कुकदा में रहते हुए 6किमी. का सफर पैदल चलकर पाण्डुका जाते थे। 11वीं बोर्ड का एग्जाम गरियाबंद में दिए। रायपुर के दुर्गा कॉलेज से सन् 1977 में बी.ए. की पढ़ाई की। पिताजी पूर्व विधायक स्व, जीवन लाल साहू जी लोक कला के क्षेत्र में शुरू से जुड़े रहे। उन्होंने मुझे हमेशा ही प्रेरित किया। कला के क्षेत्र में काम करने के लिए प्रोत्साहित किए। राजनीति में जाने की सख्त मनाही थी।
हमारे गाँव के बुजुर्ग राम मण्डली, कृष्ण लीला, रामायण का कार्यक्रम आयोजित करते थे। उसमें गाँव स्तर पर हमेशा ही भाग लेते थे। पिताजी राजिम कुर्रा नाचा पार्टी चलाते थे। दुर्ग जिला के बहुत से कलाकर इस पार्टी से जुड़कर काम करते थे।
बचपन से लोककला के प्रति रूझान के कारण कला के क्षेत्र में जुड़कर कार्य करते चले आ रहे है। क्वांर नवरात्री में श्रीमती ममता चन्द्राकर के पिताजी श्री महासिंह चन्द्राकर जी सन् 1976 में श्री केदार यादव जी के साथ हमारे गाँव आये थे। उनके द्वारा संचालित । सोनहा बिहान के कार्यक्रम की प्रस्तुति हेतु उनका आना हुआ था उसी समय उनसे मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। कुछ साल बाद कॉलेज पढ़ाई के दौरान सोनहा विहान में जुड़कर काम करने लगे। दाऊ श्री महासिंह चन्द्राकर के निर्देश में काम करने का सुनहरा अवसर मिला। सन् 1978 में पहली बार रेडियो में श्रीमती ममता चन्द्राकर के साथ कार्यक्रम रिकॉर्ड किया गया। दूरदर्शन में प्रसारण के लिए दो यार रिकॉर्ड करने दिल्ली जाने का सुनहरा अवसर मिला।
अभी तक लगभग 2000 से अधिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दे चुके है। दाऊ जी के निधन के पश्चात श्री दीपक चन्द्राकर के लोकरंग संस्था से जुड़ गए। 2006 से छोटे भाई के द्वारा संचालित रंग सरोवर कार्यक्रम में जुड़कर काम किए। अभी पिछले एक वर्ष से शारीरिक अस्वस्थता के चलते कार्यक्रमों में भाग नहीं ले पा रहे हैं।
जीवन में आदर्श:
पिताजी स्व, जीवन लाल साहू जी ने हमेशा प्रेरणा के साथ सीख देते रहे है। जो करना ईमानदारी के साथ करना है। क्षेत्रवासियों के सहयोग में निरंतर अपनी सेवाएं देते रहना, उनके सुख, दु:ख में हमेशा काम आना। पिता जी की इन्हीं सीखों को जीवन में उतारकर लोककला के क्षेत्र हो या अध्यापन का, हमेशा पूर्ण ईमानदारी के साथ कर्तव्य निर्वहन को भावना सदैव मेरे मन में रहती है। दाऊ श्री महाशिव चन्द्राकर जी भी आदर्श हैं जिनके आशीर्वाद से लोककला के क्षेत्र में अपनी कला को आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली। | राजनांदगांव के श्री मदन निषाद जी का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़। उन्हीं के आशीर्वाद से अभिनय सीखा। वे छत्तीसगढ़ के मंजे हुए कलाकार होने के साथ बेहतरीन ढंग से कॉमेडियन का अभियन निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर देते। उन्हीं से बचपन में नाचा के प्रति रूझान पैदा किए। वे नाचा के बहुत बड़े कलाकार रहे। पिताजी की प्रेरणा से सोनहा विहान में जुड़े। सोनहा बिहान कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के अंतिम शिष्य के रूप में काम किए। शुरुआती दिनों में हबीब तनवीर जी दिल्ली से सोनहा बिहान के कार्यक्रम में आए थे।