सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में जमीनी सूझबूझ वाले ग्रामीण जनप्रतिनिधी के लिए सामाजिक कार्यकर्ता श्री रूपसिंग साहू जी जाने जाते हैं। हमेशा से ही लोकहित की भावना को अपने जीवन में उतारकर अपने सफर में चल रहे है। क्षेत्र के लोगो के सुख-दु:ख में हमेशा सहभागी रहने के कारण लोंगो के दिलों में राज करते है। जमीन से जुड़े कार्यकर्ता के लिए पद कोई मायने नहीं रखता। सेवा की भावना को अपने दिल में रखकर मजबूती के साथ कार्य करने का मजा ही कुछ और होता हैं। अपने जानने पहचानने वालों में डॉक्टर के नाम से मशहूर श्री साहू के जीवन में संघर्षों से गहरा नाता रहा है। पैतृक ग्राम देवगाँव (फिंगेश्वर) निवासी रूपसिंग का जीवन अभावों में पले बढ़े होने के बावजूद बेहतर से बेहतर सुविधा उपलब्ध हो सके इसके लिए हमेशा ही प्रयत्नशील रहते हैं। हर व्यक्ति के लिए सर्वथा उपलब्ध होकर कार्य करने को विशेष महत्व देते हैं। ये हमेशा से ही क्षेत्र के समुचित विकास पर जोर देते आ रहे हैं।
अभावों के बीच बीता बचपन:
श्री साहू जी बताते है कि उनका बचपन आभावों में व्यतीत हुआ है। पढ़ाई के दौरान जब कक्षा 6वीं में थे तो पढ़ाई का खर्चा वहन करने के लिए मजदूरी का काम करते । स्कूल के लिए कॉपी पुस्तक की व्यवस्था कर पढ़ाई को जारी रखा। कक्षा 7-8वीं की दौरान तिवरा लुवाई से कमाई करके अपने लिए गर्म कपड़े को व्यवस्था किए। पैसे का महत्व बचपन से मुझे मिल गया था। इसलिए आज भी किसी गरीय या असहाय व्यक्ति को पैसे के कारण काम को रुकते नहीं देख पाते। में संपन्न परिवार से नहीं हैं फिर भी भरसक प्रयास करता हूँ कि जो दिन मैंने देखे हैं वो किसी और को देखने न मिले।।
पढ़ाई के दौरान घर की जरूरतों को पूरा करने के लिए जलाऊ लकड़ी इकट्ठा करने बेलर के जंगल में जाकर काम किए। जलाऊ लकड़ी को बेचने के आस-पास के गाँव कॉदर्करा, भैंसातरा, वेलटुकरी, सेम्हरडीह आदि स्थानों में जाया करते थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण मामा जी के यहाँ ग्राम रानीपरतेवा रहकर आगे की पढ़ाई 12वीं तक ग्रहण की।
बचपन में एक घटना का जिक्र करते हुए श्री साहू बताते है कि जब वे कक्षा आठवीं में पढ़ाई कर रहे थे तत्र दीवाली मनाने के लिए उनके घर में रूपये पैसे नही थे। स्थिति बहुत खराब थी। वे स्वयं, पिताजी व वहन के साथ मिलकर लकड़ी येचने के लिए रवान 'कौदकेरा' के गाँव में जलाऊ लकड़ी बेचने गये थे उसमें जो पैसा आया उसी से दीवाली का त्यौहार मनाने के लिए आवश्यक सामग्री खरीदकर लाएँ। इस प्रकार विषम परिस्थितियों में जीवन जीने का अनुभव साथ में रहा है।
काम की तलाश में सफर:
स्कूली पढ़ाई के बाद आजीविका की तलाश में रायपुर की ओर निकल पड़े। रायपुर बस स्टैण्ड स्थित हॉस्पीटल में कंपाउण्डर के रूप में काम किए। लगभग 10 वर्ष तक हॉस्पीटल में सेवाएँ दी। हॉस्पीटल में काम के दौरान तत्कालीन कृषि मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू जी मुलाकात हो गई। श्री साहू जी से आपका परिचय एक वार पहले भी हो चुका था जब आप कक्षा 9 वी में शालानायक थे तो उस समय स्कूल के वार्षिक समारोह कार्यक्रम में स्थानीय विधायक होने के नाते मुख्यअतिथि के रूप में आमंत्रित किए। उसी समय मंत्री महोदय से परिचय हो पाया था। उन्होंने आपको पहचान लिया फिर कुछ देर बात करके जब वो हॉस्पीटल के डॉक्टर से मिले। इसी मुलाकात में उन्होंने मुझे अपने साथ ले जाने का जिक्र किया। अपने क्षेत्रवासियों की मरीजों के लिए देखरेख के लिए मुझे अपने से साथ ले गए। लगभग पाँच वर्ष तक श्री चम्पू भैया के सानिध्य में काम करने का सौभाग्य मिला। इस दौरान अम्बेडकर हॉस्पीटल आने वाले मरीजों का देखभाल का अवसर मिला। जरूरतमंदो की सेवा करके अपने आप का धन्य समझते हैं। अभी वर्तमान में गृह मंत्री माननीय रामसेवक पैकरा जी के कार्यालय में काम कर रहे हैं। मेकाहारी आने वाले मरीजों को इधर उधर भटकने की तकलीफ न हो। इसके लिए हमेशा तैयार रहते हैं। मेकाहारा में आने वाले मरीजों को उचित स्वास्थ्य मुहैया हो इस हेतु हमेशा सक्रिय रहते है।