- बलराम प्रसाद, पटना सिटी, पटना राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष राष्ट्रीय तैलिक सातू राठीर चेतना महासंघ
किसी भी जाति के उत्थान के लिये एवं उसके सामजिक विकास के लिये मुख्यतः आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनीतिक पहचान आवश्यक है अतएव हमें अपने सामाजिक परिवेश में उपरोक्त तीनों बिन्दुओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना होगा। यूँ तो हमारी जाति की अच्छी आबादी सम्पूर्ण देश में है। जहाँ तक बिहार का प्रश्न है, हमारी सघन आबादी है और यदि संगठित प्रयास किया जाय तो हम किसी भी चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं, परन्तु यह कैसे हो सकता है, यह हमारे समक्ष यक्ष प्रश्न है। आजादी के 60 वर्षों के बाद भी हमारे समाज पर अत्यल्प विकास का प्रभाव दिखाई पड़ता है। प्रगति अवश्य हुई है लेकिन जितनी प्रगति होनी चाहिए उस अनुपात में नहीं है। वजह बहुत ही साफ है । हमारा समाज मुख्यतः परम्परागत पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़ा हुआ है जबकि समय बहुत ही तेजी से बदल रहा है। कम्प्युटर एवं मॉल कल्चर का विकास तेजी से हो रहा है। बड़े-बड़े शहरों में कारपोरेट कल्चर की संस्कृति पैदा हो गयी है। हमें भी समय की गति के हिसाब से चलना होगा तथा आधुनिकता का सहारा लेना होगा। हम 21वीं सदी में प्रवेश कर गये हैं। सभी क्षेत्रों में आधुनिक संचार-तंत्र विकसित हो चुका है। नित्य नये-नये तकनीक बाजार में आ रहे हैं, जिसके विषय में अधिकतम जानकारी प्राप्त करनी होगी। सम्बन्धित कानूनों का अध्ययन करना एवं समझना होगा तथा अपने व्यवसाय को समृद्ध बनाना होगा क्योंकि आर्थिक विकास के बिना हमारा शैक्षणिक एवं राजनीतिक विकास होगा क्योंकि आर्थिक विकास के बिना हमारा शैक्षणिक एवं राजनीतिक विकास कदापि सम्भव नहीं हो सकता है। हमारे समाज की बड़ी आबादी गाँवों में रहती है। हमारे समाज के ग्रामीण परिवेश में शिक्षा का अत्यन्त अभाव है। गरीबी अधिक रहने के कारण उनके बच्चे साक्षर होने से पहले आर्थिक समृद्धि या उदरपूर्ति के उद्देश्य से पढ़ाई छोड़कर काम में लग जाते हैं फलतः विकास की मुख्यधारा से हम पीछे छूटते चले जा रहे हैं। गाँवों में अधिकांश लोग गरीब हैं जिनके समक्ष शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल एवं अन्यान्य बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। आज शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्ति आ गयी है। समय के हिसाब से अपने समाज में भी शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार करना होगा। समाज के सभी बच्चे स्कूल जायें। यह भी व्यवस्था करनी होगी कारण किसी भी व्यक्ति के बौद्धिक विकास के लिये परिवेश बदलना आवश्यक होता है। आज प्रतियोगिता का युग है अतएव आधुनिक शिक्षा की शैली अपनानी होगी एवं समाज के छात्रों को उसके लिये प्रेरित करना होगा। समाज के निर्धन एवं मेधावी छात्रों के लिये "छात्रवृत्ति कोष बनाना होगा तथा शहरों में उनको आवासीय सुविधा एवं विभिन्न तकनीकी शिक्षा के सम्बन्ध में जानकारी करने हेतु विभिन्न शहरों/जगहों में "हेल्प लाइन" का संचालन करना होगा। यह समाज के अग्रणी व्यक्तियों पर गुरुतर दायित्व है। हाँ, इसकी सफलता के लिये समाज के प्रमुख एवं प्रबुद्ध व्यक्तियों का सहयोग आवश्यक है। यदि हम समय की गति को पहचानें, सोचने एवं समझने का दृष्टिकोण बदलें तो निःसन्देह हमारा शिक्षा के क्षेत्र में उत्तरोत्तर विकास होगा। हालाँकि शहरी क्षेत्रों में हमारे समाज में भी डाक्टर, इन्जीनियर, आई०ए०एस०, आई०पी०एस०, बैंक पी०ओ० आदि की कमी नहीं है जो अच्छे पदों एवं जगहों पर पदस्थापित हैं जिनसे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए तथा समाज के विकास के लिये उनका भी सहयोग व मार्गदर्शन अपेक्षित है।
जहाँ तक राजनीति का प्रश्न है, आज के परिवेश में किसी भी समाज का राजनीतिक पहचान के बिना विकास नहीं हो सकता है अतएव राजनीति में आधिकाधिक भागीदारी के लिये हमें प्रयत्न करना होगा परन्तु यह सिर्फ अपने सामाजिक मंच से बोलने मात्र से नहीं होगा। समाज के वैसे लोग जिनको राजनीति में अभिरुचि हो, उन्हें सर्वप्रथम सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लेना होगा। सभी क्षेत्रों में सामाजिक गतिविधियों बढ़ानी होगी। विभिन्न सामाजिक समस्याओं के लिये संघर्ष करना होगा, सामाजिक संगठन को मजबूत बनाना होगा। सिर्फ अपने जाति ही नहीं, अन्यान्य जातियों में भी अपनी स्वीकार्यता बनानी होगी, जिसके लिये आपको अपने व्यक्तित्व का विकास करना होगा। यदि आप आपने व्यक्तित्व के विकास पर ध्यान नहीं देंगे तो आप दूसरों के लिये मान्य नहीं हो सकते अतएव आप अपने व्यक्तित्व में निखार लावें । अपनी पहचान बनावें तथा किसी भी चुनाव में जीतने की क्षमता पैदा करें। समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सिर्फ समृद्ध बनने के लिये ही नहीं अपितु प्रबुद्ध बनने के लिये सतत् प्रयास करना चाहिए। यदि हम समयानुकूल प्रबुद्ध होंगे तो समृद्धि आने में देर नहीं लगेगी।