अखिल भारतीय तैलिक वैश्य महासभा सामाजिक क्रांति के पथ पर

राधेश्याम साहू, एडवोकेट सआदतगंज, लखनऊ

     सर्वे भवन्तु सुखिनाः सर्वे सन्तु निरामयः । सर्वे भद्राणि पश्यतु मा कश्चित दुख लि भाग भवेत।। का भाव अंगीकृत करके "संघे शक्ति' कलियुगै" के मूल मंत्र को मन में संजोकर बाढ़ (पटना) निवासी स्वनामधन्य बाबू काली प्रसाद व आजमगढ़ निवासी बाबू महावीर प्रसाद वकील और उनके सहयोगियों द्वारा धार्मिक नगरी काशी (वाराणसी) में अखिल भारतीय तैलिक वैश्य महासभा की नींव सन् 1912 में रखकर समाज के सर्वांगीण विकास हेतु जो दीप प्रज्ज्वलित किया गया था, उसकी आभा पूरे राष्ट्र में सम्पन्न हुये राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन करके न केवल उत्तर प्रदेश के स्वजातीय बन्धुओं को आलोकित किया, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र के स्वजातीय बन्धुओं को जो विभिन्न प्रान्तों में अनेकानेक जैसे दक्षिण भारत में चेट्टियार, वानिकी, वानिका, वानियार, चेट्टी, गाँदला, गनिया बंगाल में शाहा, साधूखान, गराई गुजरात में मादी, मोढ़ घांची, पंजाब में शेट्टी, उत्तर प्रदेश में राठौर, गुप्ता, साहू, तेली आदि नामों से जाने जाते हैं। उन्हें एक मच पर लाकर एक दूसरे को बन्धुता के सूत्र में पिरोने का सशक्त माध्यम बना। महापुरूषों ने सम्पूर्ण देश में महासभा की अलख जगाने में अपनी सम्पूर्ण क्षमताओं को लगाकर सामाजिक क्रांति के ध्वज वाहक बने।

    सन् 1967 से 1980 तक महासभा की बागडोर उड़ीसा प्रान्त के पूर्व एडवोकेट जनरल और गृह एवं विधि मंत्री के पद अलंकृत कर चुके स्वनामधन्य दीन बन्धु साहू के सबल हाथों में आकर उनके द्वारा स्थापित सांस्कृतिक-सामाजिक उत्थान के लिये प्रतिबद्ध संस्था "स्नेही समाज" ने समाज के उस अति विशिष्ट वर्ग जो शासकीय सेवाओं में उच्च पदों पर आसीन था, या जो अन्यान्य क्षेत्रों में विशिष्टता प्राप्त होने के कारण लोक भयवश समाज से दूरी बनाकर छदम वेश में जी रहे थे. को समाज हित में कार्य करने के लिये प्रेरित किया और उनमें सुप्त पड़ी स्वजाति गौरव की भावना को पुनर्जीवित किया। उनके सद्प्रयासों के कारण समुद्र तटीय उन प्रान्तों के स्वजातीय बन्धु जो भाषायी विभिन्नता के कारण अन्जान बने हुये थे, समाज की मुख्य धारा से जुड़कर एक विराट स्वरूप बने।

    सन् 1981 में महासभा का नेतृत्व मुंगेर (बिहार) निवासी रामलखन प्रसाद गुप्त जो राज्य सभा के सांसद थे, ने अंगीकार करके अपने पूर्ववर्तीय अध्यक्ष के पद चिन्हों पर चल कर सम्पूर्ण राष्ट्र में व्यापक दौरे करके स्थानीय स्वजातीय संगठनों को सजीव और क्रियाशील बनाकर राजनैतिक चेतना का शंखनाद करके राजनीति में अपनी हिस्सेदारी प्राप्त करने की लालसा को जागृत किया। उनकी असमय मृत्यु के पश्चात् आंध्र प्रदेश शासन में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के अतिरिक्त निदेशक रहे डॉ० आई०एल० नरसैय्या में अहिन्दी भाषी होते हुये भी अपने पूर्ववर्तीय अध्यक्ष की भांति हिन्दी भाषी क्षेत्रों में भी संगठन को गतिशील बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

    लखनऊ 1948 के राष्ट्रीय सम्मेलन के पश्चात् महासभा की गतिविधियों का एक प्रमुख केन्द्र बिन्दु बनकर उभरने लगा और बहुधा यहाँ केन्द्रीय महासभा के ध्वज वाहकों का जमावड़ा होने के परिणाम स्वरूप जन जन में एक विकसित समाज के निर्माण की भावना प्रबल वेग से हुंकार भरने लगी और स्वजातीय बन्धु बढ़ चढ़कर समाजोत्थान के क्रिया कलापों में प्रतिभागी बनकर तेलीबाग लखनऊ निवासी श्री राम भरोसे और श्री मैकू लाल द्वारा राम भरोसे मैकूलाल इण्टर कालेज तथा दुगांवा निवासी जगन्नाथ प्रसाद साहू जो लखनऊ नगर के प्रवेश द्वार नाका हिन्डोला में भव्य साहू शीतल धर्मशाला की स्थापना करके कीर्ति पताका फहरा चुके थे। इन्हीं के द्वारा जगन्नाथ प्रसाद साहू इण्टर कालेज की स्थापना की स्थापना करके बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के मूलमंत्र को अमली जामा पहनाने लगे।

    राष्ट्रीय सम्मेलनों के अतिरिक्त प्रान्तीय सम्मेलनों में भी समाज में व्याप्त अशिक्षा, रूढ़िवादिता, सामाजिक कुरीतियों और वर्ग भेदभाव पर प्रहार करके विभिन्न उपवर्गों में बंटे समाज को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया। 1974 में जगन्नाथ प्रसाद साहू इण्टर कालेज मेंहदीगंज लखनऊ में राजवैद्य बदलू राम रसिक के संयोजकत्व, विद्यालय के संस्थापक श्री जगन्नाथ प्रसाद साहू के स्वागताध्यक्षता एवं इन पंक्तियों के लेखक के स्वागत मंत्रित्व में आयोजित राष्ट्रीय स्तर के प्रान्तीय सम्मेलन में महासभा द्वारा की जा रही सामाजिक क्रांति को तीव्रता प्रदान करके अनेकों युवकों में नेतृत्व का बीजा रोपण किया। उसी दौर में लखनऊ नगर के उदीयमान प्रतिष्ठित नवयुवक व्यवसायी स्वनामधन्य श्री शिव नारायन साहू, जिनके द्वारा साहू उपनाम को न केवल सर्वग्राही बनवाया गया, अपितु प्रदेश में आर्थिक रूप से सुदृढ वर्ग की स्वीकार्यता दिलाया गया, के संरक्षण में गठित जिला साहू समाज नामक संस्था के द्वारा न केवल लखनऊ के साहू बन्धुओं को संगठित करके ऊर्जावान बनाया गया, अपितु पूरे प्रदेश में इसकी उष्मा का संचार करके नगर में जिला स्तरीय सम्मेलनों की बाढ़ लाकर गांव-गांव में बसे स्वजातीय बन्धुओं को उद्वेलित किया। उनके सपनों को साकार करने हेतु उनके अनुज श्री राम नरायन साहू सांसद (राज्य सभा) अध्यक्ष राष्ट्रीय तैलिक साहू राठौर चेतना महासंघ आगे आये।

    प्रदेश में व्याप्त राजनैतिक शून्यता को समाप्त करने का जो दीप प्रज्ज्वलित किया उससे प्रेरित होकर नायक के रूप में उभरे माननीय राम नरायन साहू ने सन् 1989 में उत्तर प्रदेश साहू राजनैतिक चेतना समिति का गठन करके 02 अक्टूबर 1990 को एक विशाल रैली लखनऊ के मुख्य मार्गों से निकाल कर तथा तत्पश्चात् बेगम हजरत महल पार्क में एक विशाल जनसभा की जिसे तत्कालीन महामहिम राज्यपाल श्री बी० सत्य नारायण रेड्डी, पूर्व मुख्य मंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी, पूर्व ऊर्जा मंत्री श्री लाल जी टण्डन, महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री शान्ताराम पोतदुखे, सांसद आदि ने सम्बोधित करके राजनैतिक चेतना का आगाज किया। दुबारा 1994 में विशाल रैली आयोजित की गयी जिसे तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय मुलायम सिंह यादव ने मुख्य अतिथि के रूप में आकर, उपस्थित विशाल जन समूह के सैलाब की मनोभावनाओं के समक्ष नतमस्तक होकर इस समाज को राजनीति में समुचित प्रतिनिधित्व देने की घोषणा की, अपने दिये गये वचनों के अनुपालन में प्रदेश के अनेकों स्वजातीय बन्धुओं को महत्वपूर्ण राजनैतिक पदों पर आसीन कराकर चेतना के आन्दोलन को परवान चढ़ाया। चेतना समिति के बढ़ते कदमों में 1998 तथा 2005 की स्वजातीय रैली भी समाज में राजनीतिक चेतना की उपलब्धि रही हैं।

दिनांक 19-04-2020 20:07:49
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संत संताजी महाराज जगनाडे

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