ये बंधे थे मुनगासेर के परिणय सूत्र में
15 मई 1975 ई. गुरूवार का वह | ऐतिहासिक दिन जब मुनगासेर में 27 जोड़े विवाह बंधन में बंधे थे। सामूहिक आदर्श विवाह में सात फेरे लेने वाले इन 27 जोड़ों की तलाश 40 साल बाद 2016 में करना, तराजू में एक किलो मेढ़क को तौलने के बराबर लगता है। बावजूद साहू समाज के हमारे जीवट और कर्मठ साथियों ने बड़े बुजुर्गो से जानकारी लेकर अधिकतम प्रयास के बावजूद 13-14 जोड़े का नाम ही संकलित कर पाए। इनके नाम नाम निम्नानुसार है- 1. गौरीबाई लालपुर-भूषण साहू बिराजपाली, 2. मोमिनबाई पंचमपुर ओडिशा-अमरनाथ लालपुर 3. चैतीबाई मोंगरापाली-भैरोलाल लालपुर 4. सुमित्राबाई मुनगासेर-रेवाराम साहू खोपली 5. डकेश्वरी सम्हर-भोलाराम मुनगासेर 6. सुशीला मुड़ागांव-अभयराम खोपली 7.उमा साहू खोपली-नाथूराम साहू बिरजापाली 8. झुनिया साहू खोपली-9. गोदावरी मुनगासेर-भागवत प्रसाद चरौदा 10. समारिन बाधामुड़ा-नोहरलाल साहू टूरीझर 11. गोमती मुनगासेर-गणेश राम कोल्दा (खल्लारी) 12. मोमिन साहू-गजानंद लक्ष्मीपुर 13. झामिन कलमीझरगैदराम सम्हार 14. कल्याणी फरौदा प्यारेलाल लक्ष्मीपुर।
टीप : (ये सभी नाम बड़े बुजुर्गो के याददाश्त और उनके बताए अनुसार उल्लेखित किया गया है। इसमें त्रुटि होने पर किसी प्रकार की वैधानिक कार्यवाही अथवा दावा मान्य नहीं होगा। त्रुटि सुधार के लिए अनुरोध किया जा सकता है, जो सहर्ष स्वीकार्य होगा)
ग्राम मुनगासेर (बागबाहरा) के सेवानिवृत्त शिक्षक 80 वर्षीय जैतराम साहू सन् पचहत्तर के उस आदर्श विवाह की यादों में खोकर भाव विभोर हो उठते हैं। भावुक होकर वे कहते हैं कि मेरी एक भी लड़की नहीं है। कन्यादान मेरे लिए एक सपना था। तब मैं महज 40 साल का था। गांव में मेरा एक कच्चा मकान था। जहां 27 कन्याओं को सजाया और संवारा गया। 27 कन्याओं की एक साथ मेरे घर से बिदाई हुई। उस दिन से मेरे मन में यह कमी कभी नहीं रही कि मेरी एक भी बेटी नहीं है। उस नजारे को जिसने भी देखा है, आज चालीस साल बाद भी सामूहिक आदर्श विवाह को याद कर बूढी आंखों में चमक आ जाती है। 101 रुपए और पीला वस्त्र में हर जोड़े की शादी हुई थी। वे बताते हैं कि मुनगासेर, लक्ष्मीपुर और खड़ादरहा गांवों में ऐसा कोई घर नहीं था, जहां मेहमान न आए हों। तब घर-घर मंड़वा, घर-घर बाराती कहकर आनंद मंगल मना रहे थे। 30 हजार से ज्यादा लोगों की उपस्थिति और इन्हें भोजन कराना किसी चुनौती से कम नहीं था। कहां से चावल दाल सब्जी का इंतजाम होगा, इसे लेकर चिंतित रहते थे। यह किसी दैवीय शक्ति का प्रताप कहें अथवा सामाजिक समरसता कि सामूहिक आदर्श विवाह आयोजन के बाद जनसहयोग से मिला चावल सबको भरपेट भोजन कराने के बावजूद 13 बोरा बच गया। आवागमन के साधन सीमित थे। दूर-दूर से लोग बैलगाड़ी में सवार होकर इस आदर्श विवाह को देखने आए।