तेलीबांधा तालाब का नाम बचाए रखने के लिए साहू समाज के युवा इसके नाम का बोर्ड लगा रहे हैं। महापौर और निगम आयुक्त की अनुमति से यह काम किया जा रहा है। यह बोर्ड एलईडी से रौशन होगा ।
उल्लेखनीय है कि तेलीबांधा तालाब सौंदर्याकरण के बाद शहर के लोगों के लिए घूमने फिरने की एक प्रमुख जगह बन गई है। लोग इसे मरीन ड्राइव के नाम से संबोधित करने लगे हैं। आपसी बोलचाल के अलावा मीडिया में भी यह नाम चलन में आ गया है।
रायपुर शहर जिला साहू संघ के युवा प्रकोष्ठ से जुड़े रोविन साहू बताते हैं कि संगठन से जुड़े लोग चंदा कर पुराने नाम का बोर्ड लगा रहे हैं। यह मोर रायपुर की तर्ज पर एलईडी लाइटिंग से सजा मेटल का बना हिंदी में तेलीबांधा तालाब लिखा हुआ बोर्ड है। पिछले डेढ़ साल से हम यह पहल कर रहे हैं। पिछले साल 8 अगस्त को आवेदन लिकर महापौर प्रमोद दुबे और नगर निगम आयुक्त से मांग की थी कि हमें तालाब परिसर में एक जगह दी जाए, जहां हम बोर्ड लगाएं। करीब 100 लोग जुड़े और इस अभियान में साथ दिया। महापौर ने जोन क्रमांक 4 के कमिश्नर को तालाब परिसर में बोर्ड लगाने के लिए जगह देने के निर्देश दिए। इसके लिए एनओसी देने को कहा। लेकिन आज एक साल बाद भी वह एनओसी नहीं मिल पाया है। अब निगम आयुक्त व महापौर की मौखिक अनुमति व लोगों की मांग को देखते हुए हम पिछले कुछ महीनों से तालाब के फ्रंट पर बोर्ड लगा रहे हैं। इस अभियान में डॉ. धीरेंद्र साव, मुकेश साहू व शशिकांत साहू के साथ करीब सवा सौ लोग इस काम में जुटे हैं। इसके लिए करीब सवा दो लाख रुपए का खर्च आएगा जिसे लोगों के सहयोग से जुटाया जा रहा है। आयुक्त शिव अनंत तायल का कहना है कि यह बोर्ड निगम व स्मार्ट सिटी द्वारा नहीं लगाया जा रहा है, बल्कि कुछ सामाजिक संगठन के युवा मिलकर यह पहल कर रहे हैं। इसके लिए उन्हें अनुमति दी गई है। तेलीबांधा तालाब का नाम वही रहेगा, इसे लेकर कोई बदलाव नहीं होगा। यह जरूर है कि आज लोग इसे मरीन ड्राइव के नाम से भी बुलाते हैं।
तेलीबांधा तालाब का जिक्र मधुसूदन की कविताओं में भी
इतिहासकारों से मिली जानकारी के अनुसार जीई रोड पर सड़क किनारे तेलीबांधा नामक गांव था। वहीं के मालगुजारों ने तालाब का निर्माण कराया। यह तालाब 29.43 एकड़ में फैला हुआ था, जो कि तेलीबांधा नाम से जाना जाता था। दीनानाथ । साव और उनके पुत्र शोभाराम साव का नाम इस बांध (तालाब) से जुड़ा है। सन 1835 में तालाब और पचरियों का निर्माण कराया गया। 1890 की चार पृष्ठ की कविता में मधुसूदन अग्रवाल पुरानी बस्ती ने दीनानाथ सावं परिवार का वर्णन किया। है। साव परिवार द्वारा बनाए गए बांध का नाम तेलीबांधा क्यों पड़ा, इस बारे में माना जाता है कि चूंकि तेलीबांधा नामक गांव पहले से यहां था, इसलिए लोगों ने इसे तेलीबांधा नाम दे दिया होगा।