ऐसे हुई सृष्टि में तेली जाति की उत्पत्ति

अंतरराष्ट्रीय तेली दिवस

     क्या आप जानते हैं कि हिंदुओं के 'प्रथम पूज्य श्रीगणेश के पुनर्जीवित होने की धार्मिक कथा से तेली जाति के उदभव की कहानी जुड़ी है ? पौराणिक कथाओं में गणेश जी के पुनर्जीवित होने के बाद कहानी का समापन हो जाता है। किंतु, तेली समाज के विद्वान पुरखों ने इस कहानी को वर्षों पहले आगे बढ़ाया है। जो अभी ज्यादा प्रचारित नहीं है। इस दंतकथा में उस व्यापारी को न्याय दिलाते हैं, जिसके हाथी का सिर काटकर गणेश जी के धड़ पर जोड़ा गया था। ऐसी मान्यता है कि वही व्यापारी सनातन इतिहास का 'प्रथम तेली' बना। जिस दिन गणेश जी को पुनर्जन्म मिला उसी दिन प्रथम घानीका भी निर्माण हुआ था। इसलिए गणेश चतुर्थी के दिन 'तेली दिवस' मनाया जाना तार्किक रूप से सही माना जाता है।

Aise hui shristi mein teli jati ki utpati - International Teli community Day    इस कहानी का दस्तावेजीकरण मानवशास्त्री आर व्ही रसेल ने किया था जो सन 1916 में प्रकाशित हुआ। उन्होंने अपने प्रसिद्ध पुस्तक The Tribes and Castes of Central Provinces के खंड 3 के पृष्ठ क्रमांक 542 से 557 में कुल 16 पृष्ठों में तेली जाति के उदभव, विकास और रीति-रिवाज का विषद विवेचना किया है।

    रसेल के शब्दों में तेली जाति की उत्पत्ति का इतिहास इस प्रकार है

    'भगवान शिव जी की अनुपस्थिति में माता पार्वती असुरक्षित अनुभूति कर रही थी। क्योंकि उनके महल के द्वार में कोई द्वारपाल नहीं था। इसलिए अपने शरीर के पसीने से पार्वती ने श्रीगणेश का निर्माण किया और दक्षिणी द्वार की सुरक्षा में तैनात कर दिया। जब शिव जी आये तब गणेश ने उन्हें नहीं पहचाना और महल में जाने से रोक दिया। इस बात से शिव जी क्रोधित होकर अपने त्रिशूल के वार से गणेश के गर्दन को काट दिया ।

    इसके बाद जब वे महल के भीतर गए, तब माता पार्वती ने रक्त जित त्रिशूल को देखकर उनसे पूछा कि क्या घटित हुआ है ? अपने पुत्र (श्रीगणेश) के वध के लिए उन पर गंभीर दोषारोपण किया । और गणेश का सिर और धड़ जोड़कर पुनर्जीवित करने कहा । शिवजी इससे बहुत व्यथित होकर कहा कि सिर को पुनः स्थापित नहीं किया जा सकता है क्योंकि सिर भस्म बन चुका है। उन्होंने कहा कि यदि कोई पशु दक्षिण की ओर देखते हुए पाया जाता है तो उसके सिर को गणेश के धड़ पर स्थापित कर उन्हें पुनर्जीवित किया जा सकता है । संयोग से एक व्यापारी महल के बाहर अपने हाथी, जो दक्षिण दिशा की ओर सिर रखकर बैठा हुआ था, के साथ विश्राम कर रहा था। शिव जी ने शीघ्रता से हाथी के सिर को काटकर गणेश के धड़ पर स्थापित कर पुनर्जीवित कर दिया। इस तरह गणेश को हाथी का सिर प्राप्त हुआ। व्यापारी अपने हाथी के मारे जाने पर जोर-जोर से विलाप करने लगा । व्यापारी को शांत करने के लिए शिव जी ने एक मूसल और खरल यंत्र का निर्माण किया और तिलहन को चूर कर तेल निकालकर दिखाया। व्यापारी को यह आदेश किया कि भविष्य में इसी से वह अपना जीवन यापन करे तथा बाद में अपने वंशजों को भी सिखाये। इस तरह से वह व्यापारी पहला 'तेली' बना । मूसल को शिव और खरल को पार्वती का प्रतीक भी माना गया ।' इस तरह तेली जाति के लोग मूसल और खरल को मिलाकर बनने वाले तेलघानी की पूजा अर्चना करते हैं । कालांतर में मशीनीकरण के दौर में तेलघानी विलुप्तता के कगार पर है ।

प्रो. धनाराम साहू

दिनांक 01-09-2022 00:49:32
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