जब कोई बड़ा इतिहासकार या मानव शास्त्री ' तेली ' का उल्लेख करता है तब अच्छा लगता है , पुरातन ग्रंथकार तो तेली समाज को केवल नीचा दिखाने का ही काम किये थे |
प्रसिद्द भारतीय मानवशास्त्री पटनायक एवं रे ने अपने शोध ग्रन्थ में लिखा है " सन 1959 में अखिल ओड़िसा तेली कांग्रेस का सम्मेलन बुलाया गया जिसमें ओड़िसा के तीन प्रमुख तेली जातियों के प्रमुख आये | इसमें एक प्रमुख निर्णय लिया गया कि अखिल ओड़िसा तेली कांग्रेस को अखिल भारतीय तेली कांग्रेस का हिस्सा बनना चाहिए और तेली जाति में शिक्षा का प्रसार ,आर्थिक विकास ,जाति सुधार और तेली जाति को ऊपर उठाने के प्रयत्न करने चाहिए " |
एक मानव शास्त्री ने लिखा है कि उत्तरप्रदेश के तेली राजपूतों के बराबर बैठना चाहते हैं किन्तु राजपूत इन्हें वह सम्मान नहीं देते हैं |
हालाकि यह विशेष उत्साहवर्धक प्रसंग नहीं है किन्तु यही संतोष की बात है कि मानव शास्त्री बिना गाली- गलौज किये तेली जाति का जिक्र करते हैं |