तैलप तृतीय का पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ (1181-1189 ई) चालुक्य वंश का अन्तिम शासक हुआ । वह पराक्रम से कल्याणी को पुन: जीतने में कामयाब रहा । लेखों में उसे चालुक्याभरण श्रीमतत्रैलोक्यमल्ल भुजबलबीर कहा गया है । सभ्भवत: भुजबलबीर की उपाधि उसने कलचुरियो के विरुद्ध सफलता के उपलक्ष्य में ही धारण की थी । एक लेख में उसे कलचुरिकाल का उन्मूलन करन वाला (कलचूर्यकाल निर्मूलता)कहा गया है । इस प्रकार सामेश्वर ने चालुक्य वंश की प्रतिष्ठा को फिर स्थापित किया । कुछ समय तक वह अपने साम्राज्य को सुरक्षित बचाये रखा । परन्तु उसके राज्य में चारो ओर विद्रोह हो जाने के कारण स्थिति को संभाल नहीं सका । 1190 ई. के लगभग देवगिरी के यादवों ने परास्त कर चालुक्य राजधानी कल्याणी पर अधिकार कर लिया । होयसल बल्ललाल द्वितीय ने भी चालुक्य सेनापती ब्रह्म को पराजित कर दिया । साम्राज्य के दक्षिण भागों पर होयसलों का अधिकार स्थापित हुआ तथा सोमेर्वर ने भागकर वनवासी में शरण ली । सम्भवत: वहीं रहते हुए उनका प्राणान्त हुआ तथा सोमेश्वर चतुर्थ का पुत्र अपने बचे हुए परिवार के साथ वहां से जान बचाकर भाग निकला तथा वह विन्ध्य क्षेत्र में अपना रहने का ठिकाणा बनाया । चूकि यहां का अधिकांश भाग पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ था जिससे उसको यहां पर रहने में काई असुविधा नहीं हुर्ई । इस तरह 1189 से 1324 ई. तक 111 वर्षे तक तैलप क्षत्रियो का इतिहास अन्धकारमय रहा ।
यहीं पर सोमेश्वर पंचम को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम धार सिंह था । आगे चल कर धार सिंह पहले खोह (उचेहार जिला सतना) में आपना राज्य स्थापित किया तथा उसके उपरान्त अपनी शक्ति को और विस्तारित कर नरो की गढी (माधवगढ जिला सतना से 7 कि. मी. दक्षिणी पहाडी) में अपना अधिकार कर लिया ।
विन्ध्य भूमि की उर्वरता एवं जलवायु की अनुकुलता ने एकबार पुन: तैंलप वंश को पुनर्जीवित किया । फलत: यही विन्ध्य धरा की गोद में सोमेश्वर पंचम को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जो अत्यन्त कुशाग्र बुद्,ि पौरूषवान एवं अजेय हुआ और वही आगे चलकर विनध्य के ह्रदयस्थल वत्स जनपद में (बघेलखण्ड) में परिब्रजको को पराजित कर नरो, परसमनिया एवं खोह जैसे पर्वती स्थालो में प्रभुत्व स्थपित कर कालान्तर में विस्तृत फलकमें साम्राज्य स्थापित किया । इसके वंशजो ने एक शतक से अधिक समय तक नरों मेंं साम्राज्य किया किन्तु उसके अन्तिम वंशज तैप राजा धार सिंह ने प्रतिहारों को सेना में जगह देकर ही अदूरदर्शिता का वरण किया छरूळी फलस्वरूप महत्वकांक्षी प्रतिहार सैनिकों ने राजा धार सिंह की हात्या उस समय कर दी जिस समय राज्य में राजा के पुत्र का विवाहोत्सव संवत 1381 अक्षय तृतीया को चल रहा था । राजा धार सिंह के कुछ वंशज किसी तरह आपनी जान बचाकर पवहां से रातोरात भाग कर रीवा जिले में आकर बस गये ति आज भी उनके वंशज यहाँ विभिन्न गावों मे पाये जाते है । इस तरहा तेली राजा धारा सिंह की खोह में हत्या कर प्रतिहार सत्ता का उदय हुया । प्रतिहारों के सत्तारूढ होने के कारण पराजित तैलपों के वंशजों को सामाजिक नाना प्रतिबन्धों से अनुशासित किया गया । प्रतिहागरों के द्वारा तैलपों के लिए बनाई गई नीतियों का आगे अनुसरण किया गया जिससे उनकी आर्थिक सामाजिक पतना हुआ । उपरोक्त कथन बडे बुजुर्गो द्वारा अपने पुरखों के द्वारा अनुश्रुतियों से अपने पीढिओ को अवगत कराते रहे