नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ महान योगी दार्शनिक धर्मनेता युग प्रवर्तक आचार्य थे । इनका प्रादुर्भाव 9 वी सदी में पेशावर या गोरखपुर में हुआ था । यह जिज्ञासुएवं भ्रमणशील स्वभाव वाले थे और इन्हीं वेदों उपनिषदों स्मृतियो एव संस्कृत साहित्य का ज्ञान होते हुए की उन्होंने अपने मत का प्रचार जनभाषा में किया था । यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोधी थे । इन्होंने हठयोग, गोरख संहिता, गोरक्ष गीता, प्राण संकली, सबदी आदि 43 ग्रंथों हिंदी में लिखे हैं तथा अमनस्क, अमरोध शसनम अवधुत गिता गोरक्ष कौमूदी, गोरक्ष शतक सहित 31 ग्रंथ संस्कृत मैं लिखे है ।
हिंदी साहित्य के आरंभिक काल को सिद्ध सामंत काल कहा गया है । सिध्दों कि इस परंपरा में नाथ संप्रदाय का बड़ा महत्व है । इस संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ एक महान योगी गंभीर दार्शनिक प्रभावशाली धर्म नेता युवक युवक प्रवर्तक आचार्य थे । इनका प्रादुर्भाव नवी सदी में पेशावर पश्चिम पंजाबियां गोरखपुर हुआ था । वदन्त गोरखनाथ जाती मेरी तेली उन्होंने स्वयं लिखा है । गुरु गोरखनाथ पर लिखी अधिक पुस्तके हैं । बचपन से ही जिज्ञासु एवं भ्रमणशील स्वभाव वाले गोरखनाथ ने भारतीय प्राचीन ग्रंथों वेदों स्मतियों पुराणों एव संस्कृत साहित्य का गहन अध्ययन किया । वह संस्कृत के महापंडित थे । उन्होंने अपनी उच्च दार्शनिकता से ब्राह्मण रूढ़िवादियों को छोड़कर बाकी सब को परिष्कृत करने का यथासाध्य श्रम किया । इसीलिए उन्होंने जन्म भाषा को ही प्रचार का माध्यम बनाया ।
ऐसी मान्यता है कि गोरखनाथ अत्यंत सुंदर व्यक्ति थे वह ऊंच नीच का भेद नहीं मरती थी हमें यह यह स्वीकार करने में संकोच नहीं है कि संत रविदास को संभवत गुरु गोरखनाथ से ही यह परंपरा मिली होगी । वह सभी के प्रति समान दृष्टि रखते थे उनमें अपनापन भाव था ।
योगी थै किंतु निरस नहीं । वह कवि थे । उनका काव्य योग में है परंतु अनेक स्थलों ऐसे ही जो उनकी प्रतिभा को दिखाते हैं । छात्रों का पर्याप्त अध्ययन करने वाले गुरु गोरखनाथ के ग्रंथ अमरोघ शसनम में स्पष़्ट होता है । वेएक अक्खड योगी थे इसीलिए सौ साल से उन्हें कोई भाई नहीं था ।
वह जहां भी जाते जन जन उनसे प्रभावित हो जाता था । गुरु गोरखनाथ नहीं हिंदी में लगभग 43 ग्रंथ लिखे हैं जिनमें हठयोग, गोरक्ष संहिता, गोरक्ष गीता, प्राण संकली, सबदी, अति अत्याधिक प्रसिद्ध है । वैसे ही संस्कृत में लिखे 31 ग्रंथ लिखे जिनमें अमनस्क, अमरौध शसनम, अवधुतगीता, गोरक्ष कौमुदी, गोरक्ष श्तक अत्यधिक प्रसिद्ध है । वैभव मुखी प्रतिभासंपन्न न थे । हमारे तेली समाज के ऐसे महान संत गोरखनाथ को सादर नमन ।
रचनाएँ
डॉ॰ बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित ४० पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है। डॉ॰ बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम १४ ग्रंथों को असंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया है।[कृपया उद्धरण जोड़ें] पुस्तकें ये हैं-
सबदी
पद
शिष्यादर्शन
प्राण सांकली
नरवै बोध
आत्मबोध
अभय मात्रा जोग
पंद्रह तिथि
सप्तवार
मंछिद्र गोरख बोध
रोमावली
ग्यान तिलक
ग्यान चौंतीसा
पंचमात्रा
गोरखगणेश गोष्ठी
गोरखदत्त गोष्ठी (ग्यान दीपबोध)
महादेव गोरखगुष्टि
शिष्ट पुराण
दया बोध
जाति भौंरावली (छंद गोरख)
नवग्रह
नवरात्र
अष्टपारछ्या
रह रास
ग्यान माला
आत्मबोध (2)
व्रत
निरंजन पुराण
गोरख वचन
इंद्री देवता
मूलगर्भावली
खाणीवाणी
गोरखसत
अष्टमुद्रा
चौबीस सिध
षडक्षरी
पंच अग्नि
अष्ट चक्र
अवलि सिलूक
काफिर बोध