महाभारत के शांतिपर्व के वर्णन अनुसार, ऋषि जाजलि ने कठोर तप कर सिद्धि प्राप्त की, जिस पर उसे गर्व था । ऋषि के अहंकार से नाराज होकर उसके गुरू ने कह दिया कि वाराणसी का तेली समाज वैश्य तुलाधर संसार भर में धर्मात्मा, तपस्वी एवं तत्वदर्शी है । प्रतिस्पर्धी स्वभाव वस ऋषि जाजलि ने धर्मात्मा तुलाधर से भेंट कर पुछा कि अनेक प्रकार के तेलों एवंद्रव्यों का व्यापर करते हुए भी तुम्हें दार्शनिक अंतर्दृष्टि कैसे प्राप्त हुई । धर्मात्मा तुलाधर ने उत्तर दिया मै अपना काम ईमानदारी से करता हॅू । मै सोमरस छोडकर इत्र, दवाएं, तेल, घी, शहद आदि बेचता हूं । ऋषि जाजलि को परंपरानुसार द्रव पदार्थीे के व्यवसाय से होने वाली हिंसा (शहद में मधुमक्खी, जडी - बुटी के लिए वृक्षों को काटना इत्यादी ) का पूर्वाग्रह था । इसके उत्तर में धर्मात्मा तुलाधर ने कहा कि जैसे कृषि कार्य के लिए हल चलाने से अनेक कींडे - मकोडे मर जाते हैं फिर भी कृषि कर्म दोष रहित है उसी प्रकार तेल का व्यवसाय भी दोष रहित है । Dharmatma Teli Tuladhar
संत संताजी अध्यासन - तेली समाज
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