9 वी सदी मे दक्षिण कोशल में तैलप एवं चालुक्य एवं कल्चुरी वंश ऐसा माना जाता है कि परमार वंशीय राजा मुंज के साथ तैलपो का अनेक बार युद्ध हुआ । जिसमें 6 वी बार राजा मंजु तैतलों से पराजित हुआ । तैलयो की संभवतया कलचुरियों का साथ दिया था । जिनका उल्लेख किया जाता है । कि वे कोकल्य द्वितीय के पुत्र गांगेयदेव तेलांगान हुए जिसे ही आक्रोश अथवा विरोधवशं गंगूतेली कहा गया है ।
चेदिराज गांगदयदेव ने सन 1015 से 1041 तक शासन किया । वे अत्यंत महात्वाकांक्षी राजा थै । राज्य विस्तार के प्रयत्न में उन्होंने मानवा के राजा भोज पर आक्रमण किया था । पारिजातमंजरी एवं प्रबंध चनतामणी ग्रंथ के अनुसार इस युद्ध में राजा भोज ने गांगेयदेव तेलंगन को पराजित किया । इससे दुखी होकर राजा गांगेयदेव ने अपने पुत्र कृष्णदेव को गद्दी सौपदी और गंगातट पर मोक्ष प्राप्ति हेतु प्रस्थान किया राजा कृष्णदेव ने अपने पिता के अपमान का बदला लिया । उसने राजा भोज को पराजित तो किया और उसने उसे जिवनदान भी दिया इस पराजय को मालवा की प्रजा राज परिवार सहन नहीं की पाया, फलस्वरूप पने अवसाद एवं पीडा को आत्म संतोष वश कहां राजा भोज और कहां गंगूतेली कहावत गढकर अत्याधिक प्रचारित किया ।