अकबर महान के प्रभाव से हेमू को इतिहासकार विस्मृत कर गये जो उन दिनों दिल्ली राज्य या हिंन्दुस्थान की गद्दी के लिए एक मात्र प्रतिद्वन्द्वी था । शेरशाहा की मृत्यु के बाद उनके वंशजो में उत्तीरधिकारी का युद्ध हुआ । मो. आदिल शाह दिल्ली का राजा बना । वह हेमू से बहुत प्रभावित था । कहा जाता है कि व्यापार के सिलसिले में हेमू यदाकदा मिला करता था । यद्यपि हेमू के बचपन के बारे में अधिक सूचनाये प्राप्त लहीं हैं किन्तु कनर्र्ल टाड ने राजस्थान के इतिहास में इसका उल्लेख किया है । उसके अनुसार हेमू का वास्तविक नाम हेंमचन्द्र था । बडे पुत्र होने की वजह से वह पिता के व्यवसाय में सहायक था । प्रसिद्ध अंग्रेज इतिहासकार व्ही. ए. स्म्थि ने अकबर दी ग्रेट मुगल में उसे घूर बनिया कहा है । वैश्य परिवार नमक का व्यापार करता था । संभावयता गुड तेल का व्यवसाय भी उन्हीं के हाथों था ।
कहा जाता है कि छोटे गठीले शरीर रौबदार व्यक्तित्व विनर्म व्यवहार नने मो. शाहआदिल ो प्रभावित किया और उसने हेमू को अफगान (शूरवंशीय) सेना का सेनापती बना दिया । वही राज्य का वित्त एवं व्यवसायिक मंत्री भी बना दिया । सेनापती हेमू ने शूरवंश के विश्वास की रक्षा की । उसने अपने राजा के हित में बीस लडाईयां जीती तथा एकमात्र प्रतिद्वंद्वी इब्राहीम खान शूर को हाराकर मो. शाह आदिल को दिल्ली की गद्दी सौंप दी ।
इस मध्य अल्पवयस्क चौदह वर्षीय अकबर अपने संरक्षक बैरमखान के कुशल मार्गदर्शन में हिन्दुस्थान की गद्दी का स्वप्न देखने लगा । अकबर का सेनापति तर्जी बंग एवं आदिल का सेनापति हेमू था । वीर सेनापति हेमू ने ग्वालियर होते हुए आगरा की और कूच किया (उन दिनों आगरा राजधानी थी ) तथा मुगल सेनापति तर्जी बेग को हराकर एक हजार घोडे पकड लिये । वर्ही बहुत सा बहुमुल्य माल भी हाथ लगा । और दिल्ली का राज्य जीत लिया । यही वह अवस्था है । जहां बुद्धिमानों की महात्वकांक्षा परवान चढ सकती है । अनुभवी सेनापति हेमू ने अवसर को पहचाना । उसने स्वत: को दिल्ली का राजा घोषित किया । प्रशासन एवं सेना उसके हाथ में थी । व्ही.ए. स्मिथ के अनुसार (दी ग्रंट मुगल पृष्ठ 37) उसे राजा विक्रमादित्य की उपाधि से विभूषित किया गय था । मुस्लिम इतिहासकार बदायूनी के अनुसार अपने नाम के सिक्के भी चलाये थे । इस प्रकार से तैलिक जाति का यह गौरव पुरूष शूरवंश (मो. शाह आदिल) एंव मुगल वंश (अकबर महान) को चुनौती देते हुए दिल्ली की गद्दी पर बैठा । मध्यकरलीन भारत में वे प्रथम एवं एकमात्र हिन्दू राजा हुए जिन्होंनें दिल्ली की गद्दी पर अपना अधिकार जमाया ।
एक तरफआंतरिक मोर्चा (राज्य व्यवस्था) और दूसरी तरफबाह्य मोर्चा (अकबर से युद्ध) हेमू के जीवन के चुनौती पूर्ण क्षण थे । हिन्दुस्थान की गद्दी का महत्वकांक्षी अकबर युद्ध के लिए तैयार था । पानीपत के ऐतिहासक मैदान में दोनों सेना आमने सामने हुई और पानीपात का यह द्वितीय युद्ध 5 नव्हबंर 1556 को शुरू हो गया । बदायूनी ने हेमू की इस ब्यूह रचना को हाथियों का पर्वताकार समूह बताया है इस प्रकार हेमू ने अपने चतुर सैन्य संचालन करते हुए मुगल सेना में भगदड मच गई, अकबर का स्वप्न ध्वस्स हो गया।, बैरमं खां की कूटनिती असफल हो गई । न्तिु हाय दुभाग्य, इाी मध्य हाथी पर आरूढ हेमू की आंख मे शत्रु का तीर घूस गया । वह विचलित हो गया बेहोश हो कर गिर पडा महावत ने हाथी को युद्ध स्थल के सुरक्षित बाजू निकाल लिया । हेमू के बेहोश हो कर गिरते ही अफगान सेना नेतृत्व विहीन हो कर भागने लगी । हाथी मुडकर आपनी ही सेना को रौदने लगे । और इस प्रकार पानीपत के मैदान में हारा हुबा बेहोश हेमू अकबर के सामने बंदी के रूप में पेश किया गया । भार का इतिहास बदलते थम गया । इधर बैरम खां के निर्देशन में बालक अकबर ने अपनी तलवार से हेमू की गर्दन काट डाली । उसकी गर्दन काबुल भेद दी गई णछ दिल्ली के दरवाजे पर लटका दिया गया । इस प्रकार े हेमू की पराजय से जहां दिल्ली वर शूरवंश का अधिकार समाप्त हो गया । वहीं अकबर के लिऐ मानें दिल्ली की गद्दी सुरक्षित हो गई । एक समान्य व्यापारी से दिल्ली पर बैठने वाला राष्ट्रवीर हेमू का शौर्य अद्वितीय है । सही समय में उपयुक्त निर्णय लेना एवं अपने बाहुबल से सेना पर प्रभाव जमाये रखना हेमूशाह, हेमू उर्फ हेमचंद्र जैसे अद्वितीय गौरव पुरूषों के लिए ही संभव है ।