आदर्श - सामूहिक विवाह कार्यक्रम की रूपरेखा कब और कैसे बनी । इसका रोचक इतिहास है । सन 1857 के गदर की असफलता के बाद भारत माता की स्वतंत्रा की चाहत रखने वाले क्रांतिकारियों ने गंभीरतापूर्वक भारतीय जनता के निष्प्राण हो जाने के कारणों पर चिंतन किया था । कुछ क्रांतिकारियों को युरोप साम्यवादी आंदोलन ने प्रभावित किया तो कुछ को महात्मा गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के प्रयोग ने प्रभावित किया । सभी चिंतक इस बात पर एक मतेन थे कि भारत की जनता को जाति प्रथा ने ही निष्प्राण और तड बना रखा है । साम्यवादी और गांधीवादी आंदोलनों में सवर्ण (उच्च वर्ग ) तो बढ चढकर हिस्सा ले रहे थे किंन्तु मध्य एवं निम्न वर्ग तटस्थ और मूक -दर्शक ही बने रहेे, यद्यपि डॉ् बी. आर अंबेडकर ने निम्म वर्ग को नेतृत्व देने का पुरजोर प्रयास किया था फिर भी उनका आंदोलन राष्ट्रीय स्वरूप नहीं ले सका और कुछ जातियों के बीच ही सिमटकर रह गया था ।
स्वतंत्रता प्राप्ती के पश्चात संविधान में समता और समानता की प्रमुख नागरिक अधिकारों में स्थान मिलने के बाद कुछ चिंतको ने जड हो चुके मध्य और निम्न वर्ग के ्राण फुंकने का प्रयास किया, जिनमें सर्वाधिक मुखर और र्चा में डॉ. राम मनोहर लोहिया रहे । उन्होंनें एशिया के सामाजिक परिपेक्ष मे युरोपीयन साम्यवादी दर्श में भारतीय जीवन पद्धति को शामिल कर समाजवादि अंदोलन की नवीनतम वधारण रखी और मंत्र दिया पिछडा पावे सौ. में साठ । दूसरी और आनंदमार्गियों ने भी जाति प्रथा के अस्तित्व को अस्वीकार कर, सामूहिक अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित किया किन्तु उन्हें अधिक सफलता नही मिली । युग निर्माण योजना के संस्थापक पं. श्रीराम र्मा आचार्य ने भी नारियों के सन्मान और सुरक्षा को सामूहिक विवाह को आवश्यक प्रतिपादित किया ।
सन 70 के दशक में महासमुंद के समाजवादी चिंतक स्व जीवन लाल साव, भूमिहीन खेतिहर आंदोलन के साथ - साथ सामाजिक गतिविधियों में रूची लेना प्रारंभ किये और उन्हें सन 1974 में रायुपर जिला साहु संघ का अध्यक्ष चुना गया । स्व. जीवनलाल साव एवं स्व. नाथूराम साहू जो, पं. श्रीराम शर्मा के अनुयायी थे. इन दोनों ने समाज में कुछ नया करने का भाव लेकर, चिंतन प्रारंभ किया और इसी चिंतन से आदर्श - सामूहिक विवाह का अभिनव कार्यक्रम प्रारंभ हुआ । इन दोनों चिंतकों का श्री जैत राम साव (लालपुर) , श्री आशाराम साव (देवरी) श्री भेऊ राम (बकमा) श्री. देवनारायण (कसेकेरा), श्री. कृष्णाम (मुनगासरे) जैसे जुझारू कार्यकर्ता मिले । प्रारंभ हुआ डॉ. राम मनोहर लोहिया और पं. श्रीराम शर्मा के अलग -अलग दर्शन का मिला - जुला कार्यक्रम ।
प्रारंभ मे इस कार्यक्रम का प्रयास साहू समाज में ही किया गया, धीरे धीरे हमति बनने लगी, जोडे तैयार होने लगे, तब पानी- अंछरा की परंपरा का निर्वहन करते हुए, अन्य समाज के जोडों को भी शामिल करने का प्रयास किया गया किन्तु जातिवादी संकीर्ण सोंच भारी पडा और अन्य समाज के जोडे शामिल नहीं किये जा सके ।
कार्यक्रम का प्रथम आयोजन का स्थान मुनगासेर और तिथी अक्षय तृतीया (145 मई 1975) तय हुआ । इसी बच स्व. जीवन लाल साव के नेतृत÷व में चलने वाले किसान आंदोलन लेव्ही नीति के विरोध में उग्र होने लगा और. 13 फरवरी 975 को आरंग कांड हो गया । स्व. जीवन लाल साव गिरफ्तार कर लिये गेय और उन पर महसा मेंटनेंस आफइंटरनल सिक्यूरिटी एक्ट) का कानून लागाकर जेल भेज दिया गया । उनकी अनुपस्थिती में स्व. नाथूराम जैतराम साव एवं आशाराम सव के नेतृत्व में प्रथम एतिहासिक आयोजन मुनगासेर में अक्षय ृतीया के दिन सम्पन्न हुआ, जिसमें 27 जोंडोें का विवाह संपन्न कराया गया, लगभग 30 हजार लोगों ने वर - वधुओं को आर्शीवाद प्रदान किया । स्व. जीव लाल साव को समाज की अपील के बाद भी पेरोल पर नहीं छोडा गया, अंतत: उन्होनें रायपुर के केंद्रीय जेल सेही आर्शीवाद संदेश दिया.
स्व. जीवन लाल साव एवं स्व नाथूराम साहू ने जिस आदर्श -सामूहिक विवाह का कार्यक्रत बनाया था वह दहेज विरोधी या फिजुलखर्ची रोकने का था । भारत केसंविधान में वर्णित समता और समानता पर आधारित समाज के नव निर्माण का कार्यक्रम था । साहू एवं अन्य मध्य निम्न वर्गीय समाज में दहज प्रथा थी ही नहीं, और न ही फिजूलखर्ची करने के लिए धन था, किन्तु इय कार्यक्रम से ईर्षी रखने वालों ने दुष्प्रचार कर यिक्रम के मूल अवधारणा का ही दिशा परिवर्तन कर दिया ।
आदर्श - सामूहिक विवाह भारतीय समाज को साहू समाज की देन है जिसे देश भर के कई जातियों सहित अल्पसंख्यको ने भी वीकार किया है । मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ सरकार ने वर्षो से निर्धन कन्या विवाह योजना और मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के रूप में स्विकार किया है और प्रतिवर्ष हजारों तोडों का विवाह तो होता है किन्तु समता और समानता का सपना अधूरा रह जाता है ।
सन 1993 रायपुर के उत्साही कार्यकर्ताओं नें संत माता कर्मा आश्रम समिती ा गठन कर मूल अवधारणा के साथ आयोजन करना प्रारंभ किया, जिसमें अन्य जातियों के जोडों को भी शामिल किया जाता है । सभी जाति समुदाय के लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ प्रसाद ग्रहण करते है । समिति पिछले 20 वर्षे से लगातार समारोह आयोजित करते रही है । समिती के समर्पित कार्यकर्ता श्रीमती विद्देवी साहू, श्री. संतराम साहू, श्रीमती चित्ररेखा, डॉ. हेमलाल, एडवोकेट रूपेश, हिमत्त लाल, ऑड. खेमू हिरवानी, श्री. चेतन साहू, श्रीमती सरिता, मिलन देवी इत्यादि सतत प्रयत्नशील रहे है।
विगत दिनों संपन्न कर्मा जयंती के पावन पर्व पर आयेजित 69 जोडों के समारोह में वर वधुओ सें 8 वां वचन लिया गया कि वे भ्रूण परीक्षण नहीं करायेंगे और बेटी अचाओं अभियान को जन जजन तक ले जायेंगे । उत्साही कार्यकर्ता अब नये अभियान की और अग्रसर हो रहे हैं, जिसके अंतर्बत एक गांव की सभी बेटियों का विवाह एक हि दिन, एक ही मंच पर हो और विवाह का सारा खर्च भी गांव वाले मिलकर उठायें । आशा हैं अस अभियान से नारी सम्मान के साथ - साथ, समता एवं समानता पर आधारित समाज का नव निर्माण होगा ।
जय राजिम ..... जय कर्मा .....