अंग्रेज इतिहासकार श्री आर. व्ही. रसेल एवं राय बहाद्दुर हीरालाल ने वृहद ग्रंथ में तेली जाति का वर्णन किया है । इसमें उत्पति संबंधित चार कथाएं दी गई है :-
1) एक बार भगवान शिव महाल (कैलाश पर्वत) से बाहर गये थे । महल की सुरक्षा की सुरक्षा के लिए कोई द्वारपाल नही थे, जिसके कारण माता पार्वती चिंतित हुई और आपने शरीर के पसीने की मैल से गणेश जी को जन्म देकर महल के दक्षिण द्वार पर तैनात किया । भगवान शिव, जब महल लौटे तब गणेश जी ने उन्हें नही पहचाना और महल में प्रवेश से रोक दिया, जिससे क्रोधित होकर,. भगवान शिव ने गणेश जी का सिर तलवार से काटकर मस्तक को भस्म कर दिया । जब रक्तरंजीत तलवार को माता पार्वती देखी ओर अपने पुत्र की हत्या की बात सुनी, तब वे दुखी हुई । माता पार्वती ने भगवान शिव से अपने पुत्र को जीवित करने का अग्रह किंया किन्तु भगवान शिव ने मस्तक के भस्म हो जाने से जीवित कर पाने में असमर्थता बताई किन्तु अन्य उपाय बताया कि यदि कोई पशु दक्षिण दिशा मे मुंह किया मिला जाये तो गणेश जी को जीवित किया जा सकता है । उसी समय महल के बाहर एक व्यापारी अपने हाथी सहित विश्राम कर रहा था और हाथी का मुंह क्षिण दिशा में थे । भगवान शिव ने तत्काल हाथी का सिर काट गणेश जी के धड से जोडकर जीवित कर दिये । हाथी के मर जाने से व्यपारी दुखी हुआ तब भगवान शिव ने मुसल एंव ओखली से एक यंत्र बनाया (कोल्हू) और उससे तेल पेरने की विधि बताई । व्यपारी उस यंत्र से तेल पेरने लगा, वही प्रथम तेली कहलाया ।
2) अंग्रेज इतिहासकार, श्री क्रूक ने मिर्जापर में प्रचलित कहानी को उल्लेखित किया है कि एक किसान के परास 52 महुआ के वृक्ष और 03 पुत्र थे । किसन ने अपने तीनों पुत्रों से इस संपत्ति का बंटवारा कर लेने कहा, तीनों पुत्र आपस बातचीत कर वृक्षों का बंटवारा न कर उत्पाद का बंटवारा कर लिया । जिसे पत्ती मिला वह पत्तिसों से भट्टी जला कर अन्न भुनने का काम किया और भडभुजा कहलाया । जिसे फुल मिला वह फूलों से रस निकालकर शराब बनाया, और कलार कहलाया । जिसे फल मिला वह फल से तेल निकाला और तेली कहलाया ।
3) मंडला के तेली व्यपारियों ने लेखक को बताया कि वे राठोर राजपूतों के वंशज है, जिन्हे मुसलमान शासकों ने पराजित कर, तलवार छिनकर निर्वासित कर दिया था ।
4) निमाड के तेली व्यपारियों ने लेखक को बताया कि वे गुजरात के मोड बनिया के वशंज है, जिन्हे मुसलमान शासको ने तेल पेरने का कार्य दिया था ।