7 जनवरी " राजिम भक्तिन माता " की जयंती है, छत्तीसगढ़ के लाखों श्रद्धालु जो जानते और मानते हैं राजिम में एकत्र होते हैं | यह परंपरा सन १९९२-९३ से निरंतर जारी है और श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है | पुराने बुजुर्गों के अनुसार पूर्व काल में भी " बसंत पंचमी या रथ अष्टमी " के दिन समाज के प्रमुख लोग पितईबंद के अमरैया में एकत्र होकर भक्तिन माता की शोभायात्रा निकालते थे जो बंद हो गया था | उसी परंपरा को पुनः १९९३ में में ७ जनवरी को प्रारंभ किया गया था और यह कोई शास्त्रीय तिथि नहीं है | शास्त्रों मेंराजिम भक्तिन माता का कोई उल्लेख भी नहीं है लेकिन इतिहासकारों ने जनश्रुतियों का संकलन कर " राजिमलोचन मंदिर " में लगे कलचुरी राजा जगपाल देव ( जो वास्तव में रतनपुर के कलचुरी राजा के सामंत थे ) के शिलालेख के साथ भक्तिन माता की कहानी को जोड़ा था | जिसमें ३ जनवरी ईसवी सन ११४५ को शिलालेख उकीर्ण कराया जाना उल्लेखित है | हमारे देश में सभी कथा-कहानी ऐसे ही बनते हैं और सैंकड़ों वर्ष में विकसित होते हैं |
एक न्यूज़ चैनल ( IBC 24 ) में विगत दिनों इस जयंती पर हुए चर्चा में समाज की और से महिला प्रवक्ता के वक्तव्य अनुसार आज का आयोजन साहू समाज का सत्ता के लिए शक्ति प्रदर्शन न होकर विशुद्ध सामाजिक कार्यक्रम ही है लेकिन प्रवक्ता के अनुसार छत्तीसगढ़ में ४६ लाख साहू समाज की आबादी के लिए १५ विधायकों की मांग की चर्चा भी होगी तथा ओ बी सी समाज के लिए २७% आरक्षण भी माँगा जाएगा | लोकतंत्र में सभी को अपनी मांगे रखने का अधिकार मिला हुआ है इसलिए जयंती पर्व में आयोजित सामाजिक कार्यक्रम में भी नेता लोग अपनी बात रखेंगे ही |
मेरी रूचि सामाजिक कार्यक्रम में है जिधर मैं मित्रों का ध्यान आकर्षित भी कराना चाहता हूँ | छत्तीसगढ़ सरकार ने विगत बजट सत्र में राजिम भक्तिन माता के भव्य मंदिर के निर्माण के लिए एक करोड़ रूपए स्वीकृत किया था | अच्छा होता यदि उस नवनिर्मित परिसर या निर्माणाधीन परिसर में भी कार्यक्रम आयोजित होता |