राष्ट्र निर्माण में तेली समाज का योगदान

डॉ. महेंद्र धावडे 

     प्राचीन भारत से लेकर आधुनिक भारत तक विभिन्न सामाजिक संस्थाओं का उदय संगठन उत्थान और सभ्यता तथा संस्कृति के विकास का भी जिक्र महत्वपूर्ण है.  समाज के विभिन्न कॉल करने में हुए संक्रमण यह वह वर्ण व्यवस्था जाति के रीति रिवाज आदि परिवर्तनों की खोज करना तथा नए आयामों को अंजाम देना यह तेल समाज का कुदरती करिश्मा था. 

   हमारा तेली समाज में जन्म होना गर्व की बात है.  जिसमें प्रातः स्मरणीय गौरव पुरुषों ने जन्म लिया है.   हमारी जाति बड़ी शालीन परंपरा वाली नम्र सहनशील स्वभाव वाली रही है  तथा उदार विचार युक्त एवं सभ्य संस्कारों वाली रही है.

     प्राचीन काल से यह जाति राष्ट्रीय धारा से जुड़ी हुई है.  इस जाति में अनेक राष्ट्रपुरुष राष्ट्रमाता राष्ट्रवीर और राष्ट्रभक्त ने अखंड सूरत रोड महाशतक भारत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई है.  इनकी राष्ट्रीय विचारधारा प्यार और बलिदान से राष्ट्र निर्माण को स्वीकार करके  पराधीन होने से बचाने  का प्रयत्न किया है.

      भारतवर्ष के तेली समाज को एक माला में बांधने का काम 2009 के डॉक्टर महेंद्र धावडे  की खोज द्वारा पूरा हुआ है.  इसके पहले भारत में तेली टाइटल से बहुत सारे संगठन कार्यरत थे किंतु राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ तेली संध्या को प्रचारित करने का कार्य तेली समाज इतिहास और संस्कृति ग्रंथ ने किया है.  इस एकता को परिन्तम  आधुनिक भारत में किया हुआ आप सभी जानते हैं किंतु समाज संस्कृति आर्थिक राजनीतिक परिवेश में जिस तरह से आगे आना चाहिए था वह कुंठित  मानसिक प्रवृत्ति होने नहीं होने दिया है.

       भारत की संपूर्ण आबादी में 1931  की जाति जनगणना के अनुसार हथेली तेरे प्रतिशत है.  तेली समाज का मुख्य अतिथि बीजों से तेल निकालना था.  यह व्यवसाय अंग्रेजों की हुकूमत तक अनावृत  शुरू रहा.  अंग्रेजो की नीति और व्यवस्था की वजह से तीलियों का पारंपरिक व्यवसाय का वास हो गया.   आज इस उद्योग पर अकेली मजदूर के रूप में कार्यरत है.

       तेली जाति को सरकारी नौकरियों में और शासन-प्रशासन में भी शामिल करने का कोई उपक्रम तेली समाज संगठनों के पास आज तक दिखाई नहीं देता.  हर दिशा में तेली समाज की प्रगति में बाधा है.  इस समस्या को पार करने के लिए सामाजिक संगठनों समाज के सर्वांगीण विकास के लिए एजेंडा देना चाहिए किंतु समाज की युवा महिला या बुजुर्ग का इस्तेमाल   चुनावी समर तक किया जाता और फिर हासिल कुछ नहीं होता.

      समाज के दीपस्तंभ हर राज्य में है किंतु वहां आज तक उस क्षेत्र को पर्यटन स्थल का दर्जा मिल नहीं सका ? तेली मां पुरुषों का साहित्य राष्ट्रीय राज्य स्तर पर कोई भी सरकार ने आज तक प्रकाशित नहीं किया.   डाक टिकट निकालने से समाज प्रबोधन नहीं होता किंतु उस समाज का साहित्य समाज का आईना होता है.  अगर हमारा आईना ही नहीं होगा तो हम अच्छे या बुरे कैसे लिखेंगे यह समाज में सोचना होगा ?

       राष्ट्रकवि मैथिली गुप्ता की निम्नलिखित पंक्तियां याद आती है......
      जिसको ना निज जाति का निज देश का अभिमान है
       वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है

    आज युग परिवर्तन के साथ आर्थिक शैक्षणिक परिवर्तन के फलस्वरुप तेलियों ने  जीविकोपार्जन हेतु जीवनशैली और कार्य पद्धति बदलनी पड़ रही है. वक्त अनुसार बदलाव स्वाभाविक है. आज भी तेली समाज रूढ़िवादिता आडंबर अंधविश्वास कर्मकांड आदि  को अनावश्यक धो रहा है. 

       हम क्या है और हमारा समाज क्या है हमारा अस्तित्व क्या है आखिर हम है क्या ?  इसका जवाब हम स्वयं खोजने से मिल जाएगा किसी अन्य ?

       कुछ लोगों का कहना है कि एक और संगठन भला क्यों ?   किंतु जितने ज्यादा संगठन होगी वह अपने-अपने ढंग से समाज में चेतना लाएंगे हम दलगत राजनीति क्या कर समाज के उत्थान के साथ स्वयं दलगत राजनीति में रहकर समाज के सर्वांगीण उत्थान के लिए सोच और समझें.

       हमारी संस्कृति सत्य अहिंसा पर निर्भर करती है तथा महात्मा गांधी जयंती आधुनिक भारत की शान है.  हैं आप हम अहिंसा चुनना  है. तब हमारा मन अहिंसा को चुनता है.  इसीलिए हमारा परम कर्तव्य है कि हिंसात्मक विचारधारा को त्याग कर  शांति के पथ पर चलना होगा.
 
     जिन्होंने तेली समाज को पहचानती वह तेत्व का आविष्कार भोले शंकर बौद्ध धर्म में प्रथम दीक्षित होने वाले भूत काल की तपस्या और बिरला सम्राट अशोक घटोत्कच गुप्त बालादित्य तुला ध्वनि गोरखनाथ कवित्री खनिया भामाशाह उपयुक्त अनाथपिंडक तरनतारन सुमैया साइकिल इन कर्मा माता गणेश जी महाराज संत जगनाडे महात्मा गांधी डॉ मेघनाद साहा आदि महानुभाव से समाज  सुसंगठित हुआ है.

      दीनबंधु साहू ने तो संगठन की नींव रख कर केसर काकू क्षीरसागर  ने संभाल कर  रखा किंतु कुछ कारणवश आज तेली समाज का वह जुनून दिखाई नहीं देता वह सिमटता हुआ दिखाई दे रहा है.

        हम कब तक और के द्वारा दी गई भाई साहब की ओर से सफर तय करते रहेंगे यह जानते हुए कि वैसा क्यों केवल सहायता ही दे सकती है कि नहीं अगर गति देना है तो भारत सरकार से एक बुलंद आवाज में मांग करनी होगी कि जातिगत जनगणना 2021 की होनी चाहिए नहीं तो आने वाली  पुस्तिया हमें कभी माफ नहीं करेगी.

 जय भारत 
 आपका अपना भाई 
डॉक्टर महेंद्र धावडे 
तेली समाज इतिहास खोजकर्ता

दिनांक 04-06-2018 21:50:56
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