छत्तीसगढ़ में साहू सामाज़

         मानव केवल सामाजिक प्राणी ही नहीं वह एक चिंतनशीन प्राणी भी है। उसका चिंतन सामाजिक सेने के साव-साव धार्मिक, दानिक, मनोवैज्ञानिक तथा भौतिक भी लेता है। धर्म के संबंध में । प्रारंभ से ही मानव चिंतन करता रहा है। जिस तरह राष्ट्रीय ध्वज हमारे राजनैतिक जीवन का एक प्रतीक हैं जिसकी धारणा मात्र से प्रत्येक नागरिक के मन में श्रद्ध और भक्ति का भाव उत्पन्न होता है ।

        हिन्दू समाज में एक स्त्री की मांग का सिंदूर उसके सौभाग्वती होने और पवित्रता का प्रतीक है इसी प्रकार धार्मिक पुस्तकें या मूर्ति हमारे धार्मिक जीवन का प्रतीक है और ये सब राष्ट्रीय सामाजिक गौरव है। राजा गांगेय राव, सेनानी धनीराम, धर्मात्मा तुलाधार, राष्ट्र गुरू गोरख नाथ, दानवीर भामाशाह, संताजी जगनाड़े, संत माता भानेश्वरी रायगढ़ की धरती पर तपस्वी बाबा सत्यनारायण, लोक मान्यता है कि जो भी त्रिवेणी संगम में स्नान कर भगवान राजिम लोचन का दर्शन करता है वह राजिम माता की तरह शक्ति प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त होता है। राजिम का धार्मिक महत्व चारो धाम के बराबर है।

       झांसी की धरती ने भी देश को बहुत कुछ दिया। जो आज हमारे लिये स्मरणीय है वंदनीय है भी है इसी झांसी ने आज से लगभग 1000 वर्ष पहले संपूर्ण तैलिक वैश्य समाज को एक कल्याणी मां कर्मा भी प्रदान किया है धन्य है झांसी की धरती गौरवांवित है साहू वंश ।

        छत्तीसगढ़ साहू संघ का संगठन का कार्यक्षेत्र एक ग्राम इकाई से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक विद्यमान है हर समाज का अपना एक सपना होता है कि उसके ग्रामीण छात्रों के लिये समीपीय नगरी में छात्रावास हो एवं सामाजिक भवन हो इसी कड़ी में राजनांदगांव का धर्मशाला प्रथम पुष्प था। जिसके बाद रामसागर पारा रायपुर का छात्रावास बना था। आज तो सारे छत्तीसगढ़ में साहू समाज के कर्मा सदन, साहू सदन, कर्मा मंदिर, कर्मा भवन, जैसे नामों की गुंज है। प्रत्येक मानव अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु किसी न किसी प्रकार का कार्य करता है। इस प्रकार व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य किया है जो अन्य व्यक्ति द्वारा प्रभावित होती है भिलाई इस्पात का कारखाना खुलना सम्पूर्ण तासगढ़ के लिये किस आधार बना भिलाई में समस्त छत्तीसगढ़ के एवं मप्र के दूरस्थ क्षेत्रों में भी संयंत्र कर्मी के रूप में साहूओं का भी आगमन हुआ।

       जिससे यहां साहू समाज का संगठन का शुञवात हुआ। इस तरह शिक्षित वर्ग द्वारा स्थानीय संगठन भी बनने लगे जो आगे चलकर प्रदेश इकाई में समाहित हो गये, दसे संघ में गतिशीलता आई। समाज निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रेषित रहा 29 फरवरी 1964 को भीखापाली में महासमुंद तहसील साहू संगठन का सम्मेलन आयोजित हुआ। जिसके अध्यक्ष रामप्रसाद साहू एवं परमानंद साहू सचिव बनाये गये किंतु आगे जवन लाल साव के सशक्त नेतृत्व में सन् 1976 में बागबहरा में पहली बार 27 जोड़े का आदर्श विवाह संपन्न हुआ। | इस बेमिसाल आयोजन को दूरदर्शन के माध्यम से सारे देश ने देखा, समाज के लिये गौरवपूर्ण अवसर था। जिसकी प्रेरणा से अनेक स्थानों पर आदर्श सामूहिक विवाह का प्रचलन धीरे-धीरे अनेक जिलो में एवं अन्य समाजों में भी शुरू हो गया 28 मार्च 2003 कर्मा जयंति का यह ऐतिहासिक दिन था। जबकि रायपुर में 111 जोड़ों को एक साथ दाम्पत्य सूत्र में बांधा गया। धमधा एवं बोई में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के मुख्य आतिथ्य में आदर्श विवाह आयोजित हुआ। । तत्पश्चात निर्धन कन्यादान योजना के तहत छत्तीसगढ़ शासन में शुरू हुआ। समाज की परिकल्पना में समाज की एकता, अनुशासन साहस और सफलता संगठन को महत्व देती है। इकाई से लेकर अखिल भारतीय स्तर पर देखा जा रहा है। अतः आन बान शान से हम कहते है हमारा समाज सशक्त है एक गाड़ी के दो पहिये रहते हैं। जिसमें बराबर की भागीदारी रहती है ।

Sahu Teli Samaj History Chhattisgarh

दिनांक 15-06-2019 17:21:57
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संत संताजी महाराज जगनाडे

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