छत्तीसगढ़ के लाखों नर नारियों को माघ पूर्णिमा की शिवरात्रि तक राजीम नगरी सांस्कृतिक एकता के पवित्र बंधन में अबद्ध की रहती है । यहां महा पर्यंत विशाल मेला का आयोजन किया जाता है । वस्तुतः उत्तर तथा दक्षिण भारत की संस्कृति को संजोए राजिम संगम के पुण्य को चारो और बाटती है और आज भी हर छत्तीसगढ़ कहां जाबे बड़ी दूर है गंगा कह कर अपने पवित्र धार्मिक कार्य इसी त्रिवेणी संगम ( महानदी, सोंढूर, एवं पैरी नदी ) मैं पूर्ण करता है । राजीम की इस सांस्कृतिक एैतिहासिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों के पीछे एक महान नारी की आत्मोत्सर्गं अनन्य सेवा भाव श्रम एवं साधना का फल जुड़ा हुआ है भले ही इसे आज भुला दिया गया हो अथवा जाति विशेष का कर्तव्य मान प्रबंधक वर्ग निश्चित हो गया हो और जिस नारी निस्वार्थ भाव से अपना सबकुछ अर्पित कर दिया हो उसे नाम की कोई लालसा नहीं थी । उसने आराध्य का साथ मांगा था और अपना प्राण उत्सर्ग भी उन्हीं के चरणों में किया था । आज भी अपने प्रिय भगवान के सामने उस सती की समाधि विद्यमान है ।
छत्तीसगढ़ की चित्रेत्पला गंगा (महानदी) की गोद में जन्म लेने वाली भक्त माता राजिम पहली तैलिक वंश शिरोमणि है, प्रमाण के परिपेक्ष्य में हमें राजिम की पवित्र भूमि का भ्रमण करना होगा । आइए पुण्य स्नान काला का लाभ ले सर्वप्रथम ऐतिहासिक पक्ष को दृष्टिगत करें जिसके लिए लेख शिलालेख धातु लेख एवं प्राप्त अवशेषों का सहारा लिया जाता है । राजिम का यह चित्र प्राचीन समय में कमल क्षेत्र के नाम से अभिहित था, उसे ही पद में पूरा कहा जाने लगा कालांतर में श्री संगम भी कई लाया पद्मपुराण के अनुसार देवपुर भी करने लगी महाभारत में चित्रेत्पल्ला गंगा के नाम से क्षेत्र का उल्लेख किया गया है तथा चित्रेत्पल्ला कथेति सर्व रूप प्रणपिणी । भीष्पपर्वे । किंतु आज पर है यह निश्चित ना हो पाया है कि इस कमल क्षेत्र पदमपुर देवपुर या चित्रेत्पल्ला गंगा क्षेत्र का सुपरिचित नाम राजीम कैसे पड़ा ? यह प्रश्न विचारणीय है क्योंकि भगवान श्री कृष्ण का प्रतिमा की संबंध ( राजीव ) भी इसी नाम से है और फिर राजिम का उल्लेख उनकाल में नहीं हुआ है । अंततः इस संदर्भ का अवलोकन उपयुक्त होगा । इस प्रमाण की पुष्टि को हम मुक्ता तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं एक पौराणिक दो ऐतिहासिक एवं तिन किंवदन्ती या जनश्रुति । प्रत्येक प्रमाण में दो-दो संदर्भ जुड़े हुए हैं ।
पौराणिक प्रथम संदर्भधीन भगवान विष्णु के नाम पौराणिक कथाओं के आधार पर ले सकते हैं । इसके अनुसार पदमा फूल कमल के प्रयास से ही भगवान की प्रतिमा के राजीव नाम दिया गया है । भगवान कृष्ण के कमल के पर्यायवाची अनेक नाम पर चली थी तथा राजीव लोचन, कमलनयन, सरसीज नयन, पद्मनेत्र इत्यादि । और कालांतर में राजू का विस्तृत रुप राजीव हुआ है इसका आधार लोगों की धार्मिक भावना से ग्राह्य है, इसीलिए राजीव का राजीव होना संगत नहीं लगता । लोग धर्म भीरु होते है । यहां के लोग तो अपना सर्वस्व लुटा कर भी धार्मिक यात्रा करते हैं ऐसी स्थिति में राजीव लोचन को राजिम लोचन करने की हिम्मत कैसे होगी ? अंतरा राजीव का राजीव विस्तृत रूप कर देना धर्म प्राय जनों के लिए वक्त नहीं है । इतिहासकार का स्व. डॉ. विष्णु सिंह ठाकुर , रायपुर ने अपनी राजिम ग्रंथ में राजीव लोचन को ही आधार माना है उनका पक्ष धार्मिक हो सकता है ।
ऐतिहासिक तत्पश्चात दूसरा पक्ष ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है । जिसके अनुसार ताम्र लेख पर उत्कीर्ण राजमाल शब्द है । यह तांबलर एक राजिम लोचन मंदिर मंडप बत्ती पर चढ़ा हुआ है समुदाय यह जनवरी 1145 हो उत्कीर्ण किया गया है । जिसमें जगतपाल नामक प्रसिद्ध सेनापति अपने राजमाला की श्री वद्धि के लिए के एक नगर बसाया था जिसमें राजीमालपुर कहते थे वही नाम संक्षिप्त होकर राजम से राजीव रह गया है । अंग्रेज इतिहासकार ए. कनिघम राजमाला वंश से ही राजम- राजिम की उत्पत्ति मानी है । दूसरा पृष्ठभूमि यही है कि सोमवंशी राज्य काल में कोई राजीव नयन नामक प्रतापी राजा था । इसी के नाम से यह क्षेत्र राजीम कहलाया ।
जनश्रुति के अनुसार ज्ञात होता है कि राजीव ( राजम) नामक एक तेलीन नाम के नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा । कहा जाता है कि एक समय जब राजनीति नीम तेल बेचने जा रही थी तो रास्ते में पड़े एक पत्थर से ठोकर खाकर गिर पड़ी और सारा तेल लुढ़क कर बढ़ने लगा । बहु राजीव बहुत दुखी हुई । सास व पति द्वारा दी जानेवाली प्रताड़ना से उसका रूद्र प्रतीत हो उठा । जमीन पर लोन के तेल के पात्र को उठाकर उसी पत्थर पर रख दिया और भगवान से रो-रोकर प्रार्थना करने लगी । वह पति और सास द्वारा दिए जाने वाले संभावित दंड से उसकी रक्षा करें । बहुत देर तक रोते रहे नवोदय की व्यथा कुछ कम होने पर भोजन मन से घर जाने के लिए पात्र को जब वह उठाने लगी तो उसे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि तेल पत्र मुख तक लबालब भरा हुआ है । इससे भी अच्छे हो तब हुआ जब वह दिन भर घूम घूमकर तेल बेचती रही पर उस पात्र का खाली होना तो दूर रहा एक बूंद भी कम नहीं हुई । आश्चर्य चमत्कार । राजिम के पति को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि पात्र तेल से भरा हुआ है और अन्य दिनों की अपेक्षा वह अधिक धन लेकर आई है । पति जन्य श्ंका या सास जन्य आक्र इस बात का भी बना । किंतु राजिम के मुख से घटना का विवरण सुनकर अचरज का ठिकाना ना रहा । अभी जागा प्रमाण के लिए दूसरे दिन सास बहू खाली पात्र साथ ले गए । निश्चित स्थान पर जाकर राजीव ने प्रस्तर खण्ड दिखाया । सास ने अपने नए पात्र को रख पुर्व दिनों की भांति वह भी लबालब भर गया । इतना ही नहीं उस दिन ग्राहकों को तेल बेचने के बाद भी वह पात्र भी पूर्व उदाहरण की भांति एक बूंद भी नहीं रीता । संध्या घर आकर उसने पुत्र को सूचना दी । योजना बन गई संकल्प जागा प्रेरणा मिली उस अक्षय फल दाता प्रस्तर खंडू को उठाकर ले ले आना चाहिए । रात्र को एक ही सप्रयास उस पीला खंड को खोदकर निकाला गया आश्चर्य साधारण पीला खंड के स्थान पर चतुर्भुज भगवान विष्णु का श्याम वर्णी श्री विग्रह पाकर उनके आनंद का ठिकाना न रहा वस्तुतः प्रतिमा औंधी पडी हुई थी । इसलिए ऊपरी भाग से केवल प्रष्तर खण्ड ही प्रतीत हो रही थी । उस मूर्ति को घर लाकर श्रद्धा पूर्वक उसकी पूजा की जाने लगी ।