तेली साहू समाज के गौरव

        सामाजिक अस्मिता की स्वीकृति उसके सा स्मरणीय गौरव से ही संभव है चाहे वह प्राचीन हो अथवा अर्वाचीन। नि:संदेह हमारी वृति, हमारी प्रकृति हमारी कृति ने हमें अपनी ही जाति के पद पर सम्मानित किया जो अक्षुण्य है, जिसके ही शक्ति थलप्रभाव पर हम आत्मविभोर होकर गौरव एवं मान प्राप्त करते है। इसीलिए हमारा प्राचीन इतिहास हमारी कृति स्मारणीय गौरवपूर्ण हैं तो वर्तमान उसी आधार पर प्रगति के सोपान हैं, विभिन्न शंकावतों विसंगतियों से जूझते हुए हमने आत्मसंबल प्राप्त किया। इन्हीं गौरव को आज आत्मावलोकन स्मरण कर प्रगति की ओर गतिमान होना आवश्यक हैं। यही तो जाति, स्वजाति स्वाभिमान हैं।

       अत: आइए कुछ विशेष संदर्भो घटनाओं निर्माण किवा संघर्ष की गाथा का सिंहावलोकन करें। जो हमारे हैं या हम उनसे है। यही एकात्म हैं जाति का ।  

        हम अपने इस सामाजिक इतिहास का प्रारंभ उत्तर प्रदेश से करें। गोरखपुर की स्थापना गुरू गोरखनाथ ने 1000 ई. में की थी। बुलंदशहर में शिलालेख प्राप्त हैं जिसमें 466 ई. पूर्व बैंकों का तैलिक श्रेणी समूह रहा है। आगरा वह स्थान है जहां गंतेली का महल हैं साथ ही जहांगीर के प्रधान सेनापति मददूशाह तेली ने मददूशाही रूपया चलाया था। कन्नौज कानपुर में इत्र का कारखाना 1600 ई. में निर्मित है। लखनऊ के पास ही कवियत्री खनिया का तेलीबाल है। श्रावस्ती को वात्रीशास्त्र के लोग अपना जन्म/प्रांरभ स्थान मानते हैं। झांसी का इतना परिचय पर्याप्त है कि माता कम माई ने यहां जन्म लेकर सम्पूर्ण समाज को कृतार्थ किया। विक्रमादित्य सेनापति हेमू ने दिल्ली के सिंहासन पर आसीन हो प्रशासन चलाया था। जिसने भारतीय इतिहास बदला था।  

        बिहार में सम्प्रति झारखण्ड के साथ प्राचीन इतिहास के धरोहर हैं। पटना वही स्थान है जहां गुप्त वंश ने 500 ई. पूर्व शासन स्थापित किया। नालंदा में विश्वविद्यालय की स्थापना बालादित्य ने की थी। वही भगवान बुद्ध की श्रद्धाभक्ति में समर्पित मूर्ति तेलिया भाण्डार वर्तमान में ऐतिहासिक धरोहर है। धनवाद में तेलीवाड़ा, तेलिया डीह प्रसिद्ध हैं वहीं हजारीबाग का तेलियन मंदिर दर्शनीय है ।

        पश्चिम बंगाल प्रदेश में कोलकत्ता में मेघनाथ साहा अनुसंधान केन्द्र में शोधकार्य होते है। महाराज श्रीशचंद, कासिम बाजार की दानशीलता से सभी परिचित है। साहिबंगल में तेली गढ़ी विश्वविद्यालय स्थापित है गंगा सागर धाम में तेली ट्रस्ट हैं। वर्तमान बंगलादेश में स्थित मेहरपुर वही स्थान है जहां महारानी अन्नपूर्णा स्वर्णमयी देवी प्रतिदिन एक हजार तोला सोना दान करती थी। वहां ही उन्होने गोसई कालेज स्थापित किया निसंदेह असम क्षेत्र के सभी सात प्रदेशों में साहू तेली जाति की पहचान लुप्त प्राय है तथापि त्रिपुरा में तेल के प्रमुख व्यापारी साहू हो रहे हैं वही इम्झाल में तेली पट्टी हमारे अस्तित्व को रेखांकन हैं।

        नवोदित स्थापित उत्तरांचल प्रदेश के देहरादून में तेली साहू राजवंशों में 5 सौ साल तक शासन किया हैं। इसी क्रम में हिमांचल प्रदेश के धर्मशाला एवं शिमला में अनेक तैली समिति एवं संगठन वर्तमान में भी सक्रिय है। यद्यपि जम्मूकश्मीर में सामाजिकता का स्पष्ट प्रमाण लक्षित नहीं है तथापि इतिहास में प्रमाणित तथ्य है कि यहां मुसलमान तेली रहे। हैं जिनका मुख्य व्यवसाय तेल का व्यापार करना ही रहा है। पंजाब हरियाणा में हमारी विरल आबादी है जहां सेठी तेली का अस्तित्व मिलता है।

        राजस्थान वही क्षेत्र है जिसे बिहार से विस्थापित व्यापारिक साहुओं ने अपना कार्यक्षेत्र बनाया। नागोर में घासीवास तेलीपाड़ा, धर्मशाला स्थित है वही चितौड़गढ़ का क्षेत्र में तो दानवीर भामाशाह का यथोगाथा वर्णित हैं। देश में भक्त स्वामीचरण दास को कर्मभूमि झालवाड़ में महादानी तेली परिवार निवासी था । गुजरात प्रदेश में महात्मा गांधी का जन्म स्थल पोरबंदर तो राष्ट्रीय धरोहर हैं। इस क्षेत्र में गोधी, मोदी एवं सूरत क्षेत्र में लाट तेली राज्य रहा है। यहां कुछ घांची तेली मुसलमान भी है। पाकिस्तान के पेशावर में ही गुरू गोरखनाथ का जन्म हुआ था। यहां लाटेचा तेलियां का सघन क्षेत्र है। मध्यप्रदेश तो भारत के केन्द्र में स्थित हैं। ग्वालियर में तेलिन सती का प्राचीन मंदिर हैं। समीपस्थ नरवरगढ़ वही है जहां नरवर छोड़ने/त्यागने की घोषणा माता कर्मा बाई ने की थी वही पर उन्होंने जन हितार्थ पुलों का निर्माण भी कराया था। भिण्ड के तेलीपाड़ा में तेली संघ के प्रथमशदी का लेख भी मिला है पास में ही गंगेयराज के द्वारा बनवाया गया 9 वीं शदी का मंदिर तथा गंगोला लाल भी विद्यमान है। चंदेरी के पास ही महाबली धनुवा (आल्हखण्ड में) की समाधि है। नरसिंहगढ़ से तैलिक संघों का वर्णन किया गया है। कटनी में तारण तेली शाखा के स्वजातिजन है। भोपाल में गिन्नौरो मंदिर के महंत बने थे। वहीं पर समाज द्वारा संचालित मंदिर एवं धर्मशाला भी स्थित है। धार क्षेत्र में तेली द्वार एंव तेलिन का पहाड़ प्रसिद्ध है। जबलपुर संगठित क्षेत्र है।

        नवोदित राज्य छत्तीसगढ़ में राजिम क्षेत्र में पवित्र संगम है जहां स्वतंत्रता से पूर्व नदी तट में बैठकर समाज के लोग न्याय निर्णय स्वजातिय मामलों का समाधान निकालते निर्णय देते एवं इसे सर्वोच्च न्यायालय का स्तर मान्य रहा है। राजिम में ही सती राजिम माता का मंदिर है तथा उनके द्वारा जनहितार्थ, दर्शनार्थ समर्पित भगवान राजिम लोचन की प्राचीन प्रतिमा एवं मंदिर है। रायपुर में दो बार राष्ट्रीय सम्मेलन हो चुके हैं। यह राजनैतिक मार्गदर्शन केन्द्र भी है। जिसके कारण छत्तीसगढ़ से हमारे समाज के अनेक विधायक एवं सांसद आदि प्रेरणा प्राप्त कर विजयी हुए है। कुछ दूर में ही महासमुंद के पास बागबाहरा नामक स्थान हैं। जहां के मुनगासेर ग्राम से सर्वप्रथम आदर्श विवाह 1975 में हुआ जिसका प्रचार प्रसार सम्पूर्ण भारत में किया गया । संसार में बीबीसी लंदन से भी प्रसारित हुआ। निसंदेह तभी से भी समाज में लोकप्रिय आदर्श सामूहिक विवाह का प्रेरणास्त्रोत है।

        बिलासपुर के समीप पीथमपुर में कृलेश्वरनाथ की प्राचीन शिव प्रतिमा है जिसके प्राप्तकर्ता संथापक साहू हैं। रायगढ़ में बाबा योगी सत्यनारायण साहू जी वर्तमान में भी निराहार मौनव्रती है जिनकी पर्याप्त यशोगथा हैं। राजनांदगांव के सिधोला ग्राम में चमत्कारवती देवी भानेश्वरी माता का मंदिर स्थित है। इस अंचल का प्रथम धर्मशाला स्थित हैं। कांकेर में केशकाल घाटी में तेलिन सत्ती का मंदिर है जहां हर प्रकार का वाहन रुकते हैं और सर्व जन निर्विहन यात्रा का आशीष प्राप्त करते है।

        उड़ीसा राज्य के जगन्नाथपुरीधाम में आज पर्यंत मां कर्माबाई की खिचड़ी प्रसाद मिलता हैं। सोनपुर में तेलनदी के किनारे 5 वी शदी में सोने का विशाल मंदिर भी बनवाया गया था। अंगुल में वैदयराज नेपालचंद साहू की औषधि से सर्वजन स्वस्थ हुए है।

        महाराष्ट्र के रामटेक में स्थित तेली मंदिर तो 5 सौ वर्ष पुराना ही है। नासिक में शककालीन तैलिक ट्रस्ट प्रसिद्ध है। पूना में संत जगनाडे महाराज का जन्म स्थान है वही सतारा के पास पेशवा सेनापति ताई तेलिन का कार्यक्षेत्र रहा है। कोल्हापुर का नाम ही 1 हजार कोल्हू की स्थापना रहा है। शिरड़ी धाम के पास सिगनापुर में शानिदेव की प्रतिमा पर भक्तजन तेल अर्पण करते हैं। आन्ध्रप्रदेश तो गांडला शाखा के साहूओ का प्रभाव क्षेत्र रहा है तेलंगाना क्षेत्र में 5 वीं शदी में तेली राजाओं की राजधानी रही है। वारंगल में भी राजधानी रही हैं तैलिक राजाओं की। वहीं कईया से प्राप्त तापपत्र में | 16 वीं शदी में व्यापार हेतु साहूओं को विशेष अनुमति प्राप्त हुई थी काकीनाडा में तेली धर्मशाला है जहां अयोध्यावसी तेलियों का निवास रहा है।

        कर्नाटक प्रदेश निसंदेह वैभव सम्पन्न क्षेत्र रहा है तेलियों, के लिए। मैंसूर में कन्नौज निवासी तेलियों के चंदन के अनेक बाग रहे हैं। बादामी तो तेली राजाओं की राजधानी हो रहा है। धारवाड़ में तेली मंदिर अनेक हैं। उसी तरह बीजापुर में 7 वीं सदी का प्राचीन शिलालेख में उल्लेख है। वही समीपस्थ लक्षेश्वर में तेली संघों के विधान को स्पष्ट करने वाली 10 वीं शदी का शिलालेख प्राप्त हुआ है।

        केरल प्रदेश में वनियार साहू निवासी रहे हैं। तेलीचेरी एक छोटा बन्दरगाह भी है।

        मदुराई में तेली कुल देवी वाम्डी देवी का प्राचीन मंदिर है जो सैकड़ों वर्ष पूर्व बनवाया गया था तिरुचिरापल्ली में पार्वती जन्मोत्सव के समय ही तेलीजन शादी का मुहूर्त मानते हैं वहां प्राचीन लोककथा प्रचलित है। कांचीपुरम् के पास तेली मंदिर, जैन मंदिर है जहां तेली बैंक | द्वारा दस टन सोना था स्तम्भ भेट अर्पित है।

दिनांक 20-06-2019 00:25:02
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संत संताजी महाराज जगनाडे

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