मतरी शहर से लगभग 3 कि.मी. दूरी पर तेलीन सत्ती गांव है। कुछ तथ्य पुरातत्व विभाग से तो कुछ ग्रामीणों द्वारा जानकारी मिली वह नीचे अंकित हैं। 15वीं, 16वीं शताब्दी में सातबाई नामक एक अविवाहित लड़की जो कि किरनबेर साहू जाति का एक प्रसिद्ध गोत्र (किरहा बोईर) गोत्र की थी। भनपुरी ग्राम में रहती थी। सात भाईयों की इकलौती बहन थी। इसलिये ये लोग सातो बाई का विवाह करके दामाद को अपने ही घर में (धरजिया) रखना चाहते थे। दामाद ढूंढ लिया गया, कुछ दिन दामाद घर में रह गये थे। दाम्पत्य जीवन सुखमय था। पति भी सातो जैसे पत्नी पा करके अपने घर को भूल चुका था। घर जमाई तो बना था वही सातौ के सभी भाई उसे अपने परिवार का दसरू मानकर स्नेह एवं सम्मान देते थे। कहा जाता है कि सातो के इस वैभव एवं सुख को कुछ मनचले न सह सके और उन्होंने एक नीच योजना बनाई। एक दिन कुछ अज्ञात लोगों ने दस को मारकर खेत के मेड़ ( सीमा में गाड़ दिया। सातों के भाई तथा सातों बाई दसक को सुध खोजना देना शुरू किये । आरिवर सात को ही जगल के बीच वाले खेत के भेड़ में एक मानव अंगुली दिखाई दिया। यह हिम्मत के साथ उस अंगुली को पकड़कर आसपास की मिट्टी को हटाना शुरू किया। कुछ समय पश्चात् एक पुरुष भुजा निकल आई सातौ बाई जान गई कि वह उसका पति ही है। वह शव को जमीन से निकाल ली। पति शोक में डुवी सातों ने निश्चय किया कि मैं भी पति के साथ सती हो जाऊंगी और फिर वह लकड़ी इकट्ठा की। यह काम वह जल्दी में इसलिए कर रही थी कि वह इलाका उस जमाने में जंगल था ।लकड़ी इकट्ठा कर वह एक चिता बनाई उस पर अपने पति के साथ सातौथाई सती हो गई। तादात्म भादस्थापित हो गया। उसने नारी जाति को गौरवान्वित किया । लोग यदा कदा उधर आते तो सातो की याद बरबस आती, ऐसा लगता कि वह उसी सती स्थान की ओर बुला रही है। श्रद्धावनत ही लोग मन ही मन कुछ कामना करते और आश्चर्य कुछ दिनों बाद उनकी कामनाओं की सफलता का भाव दिखने लगता । अब तो सर्वत्र प्रचार भी होने लगा। लोग मानता (मनौती) मनाने लगे। प्रत्यक्ष फल भी मिलने लगा इसीलिए चमत्कार को नमस्कार की और भी लोगों का आवागमन शुरू हो गया, राजा को सपना दिखा। आदेश मिला कुछ दिन बा तैलिन सती के नाम से वही पर मेला लगता रहा। तब धमतरी के राजा ने वहां तीन कुआ खोदवा दिये थे वह कुआ अभी तेलिन सती के तालाब के अंदर है। मेला लगते लगते तेलीन सत्ती गांव बन गया। कभी भी तेलीन सती आवे तो पूछियेगा कि गांव वाले उस स्थान को जहा कि सातो सती हुई थी बहुत मान्यता है । सती उसी प्रकार तैलीन सती ग्राम में होलिका दहन भी नहीं होता। आसपास के लोग वहां मनौती मांगने आते हैं। लोगों को मन वांछित फल भी मिलता हैं। शायद ही कोईदिन ऐसा बिता होगा जब वहां 5 नारियल न फूटता हो । यहाँ भखारा परिक्षेत्र साहू समाज द्वारा उस स्थान पर अब एक छोटी सी समाधि बना दिया है तथा प्रत्येक रामनवमी के दिन यहां तैलीन सती का मेला लगता है। प्रतिदिन तेलीन सती माता की जय जयकार होती है। इसकी अलग से आरती भी लिखी जा चुकी है। इसके समाधि पर कोई भी विवाहित महिला नहीं जाती है। गांव वालों का विश्वास है कि पुरुष के रहते सती पर जाना ठीक नहीं है। किसी को बच्चा पैदा हुआ कि सत्ती में नारियल फोड़ना, धार्मिक कार्य है । सती का स्नेह तब भी अपने परिवार, भाईयों के साथ। यही कारण है किसी तीज त्यौहार में यदि पूजा की सामग्री सत्ती समाधि में नहीं पहुंची तो ग्राम के कुछ अनहोनी अवश्य होगी। अनेक प्रमाण मिलते हैं। इसीलिए उसके भाई के परिवार वाले प्रत्येक पर्व तीज, हरियाली, राखी में थे सती को नहीं भूलते हैं। अब यह परम्परा बन चुकी है। इसी प्रकार प्रत्येक त्यौहार में गांव वाले इस स्थान की पूजा करते है।