आज की इस भागमभाग दौड़ में लोग नई-नई सामानों को खरीद कर अपना शक एवं आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं। ऐसे में जो समान उपयोग के लायक न रहे वह कचरे में तब्दील हो जाती हैं। यह जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है। ऐसे में उसी उपयोग विहीन दस्त को एकदम नये स्वरूप में प्रस्तुत करके लोगों को बरबस ही इस कला से अपनी ओर अकर्षित करती है। ऐसे यक्तित्व की धनी सुश्री राजश्री साहू को इस कला में महारत हासिल हैं। श्री घनश्याम साहू व श्रीमती कविता साहू की सुपुत्री राजश्री साहू ने बहुत ही कम उम्र में अपने आप को स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर रही हैं।
प्रशिक्षण के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने की पहल:
बैचलर ऑफफाईन आर्ट से पढ़ाई करके अपने बचपन की शौक को अपनाकर आत्मनिर्भर होने के साथ अन्य युवक-युवतियों के लिए प्रेरणा का काम कर रही है। इस कला को सिखाने के लिए एक साल में कई क्लासेस लेकर शिक्षित करते हुए स्वरोजगार की दिशा में सार्थक पहल कर रही है। रायपुर, दुर्ग-भिलाई, राजनांदगांव सहित विभिन्न शहरों में सिखाने का काम कर रही है। चैरिटी संस्था के आमंत्रण पर क्लासेस लेकर प्रशिक्षण देने का भी काम करती है। सन् 2009 से घर पर हॅथी वलासेस के माध्यम से प्रशिक्षण का काम कर रही है। राष्ट्रीय फाईन आटंस की क्लास सन् 2012 से भिलाई में शुरू कर युवाओं को इस कला से परिचित कराकर उनको स्यरोजगार के लिए मदद कर रही है। क्लासेस के अंतर्गत पेन्टिग, कैलीग्राफी (राइटिंग सुधार), वॉल पेटिंग के साथ वैस्ट मटेरियल से थेस्ट सामान बनाने की प्रशिक्षण दे रही है। मयूरत अटर्स के जरिए केट-केटे मूर्तियों की नई स्वरूप में बनाने की भी विधि सिखा रही है।
कला के लिए मिला सम्मान :
सन् 2011 में वेस्ट मटेरियल पर छतीगढ़ राज्य स्तर टेलेट में प्रथम पुरस्कार, सन् 2014 में आयोजित राष्ट्रीय फाईन आट्र्स प्रतिस्पर्धा कलकता में प्रथम सर्वोतम पुरस्कार अर्जित किए। सन् 2016 में सामाजिक समरसता सम्मान धमतरी के कार्यक्रम में आपको दिया गया। इसके अतिरिक्त विभिन्न अवसरों में आपको सम्मानित किया जाता रहा है।
प्रेरणा :
माता-पिता को सर्वप्रथम अपना आदर्श मानते है। जिन्होंने सम्मान के साथ जीवन जीने की सीख दी। कला के क्षेत्र में गुरु श्री राजेश बसक को अपना आदर्श बताती है, जिन्होंने इस कला से परिचित कराकर आत्मनिर्भर जीवन जीने में सहयोग किए।