छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के सर्जक- श्री खुमान लाल साहू

        धर्मयुक्त सहाई चित पुरूषों कर्महित रतः।इच्छा बुद्धि प्रयासेन भवति प्राण प्रकाशम् ।। जो पुरूष अपने चित्त को सदा भावनामय तथा धर्म युक्त रखते हुए हितकारक कार्यों में लगा रहता है वह इच्छा बुद्धि और प्रयास से प्राणों को प्रकाशित करने वाला हो जाता है। उक्त कथन का प्रमाणिक अभिधेय है श्री खमान लाल साव ।

         संगीत विरासत में: बचपन से ही बाल मित्रों के साथ तालाब के किनारे वृक्षों के छाव तले, खेत के मेढ़ में गुन गुनाते रहे, सुर मेसुर मिलाते रहे, यही सुर संगम, विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आवाजों - स्वरों का रूपाकार, लोक संगीत की मिठास का नाम है खुमान साय । सन् 2016 में श्री खुमान साव को लोक कला के क्षेत्र में अनुकरणीय एवं सराहनीय कार्य के लिए राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कृत भी हो चुका है। संपन्न कृषक जमीदार दाऊ श्री टीकमनाथ साव पिता श्री का स्नेहासिक्त पुत्र श्री खुमान लाल साय का जन्म 5 सितम्बर 1932 को ग्राम खुरसी टिकुले (चौकी यांधा रोड) जिला राजनांदगांव में हुआ।

        नौ दस की अवस्था में ही ग्रामीण साथियों के साथ सुर मिलाते रहे। लोक संगीत के प्रति पूरे परिवार की रूचि रही इसलिए बालक खुमान का लगाव नाचा - गम्मत को देखने सुनने को उत्साह बचपन से ही रहा । घर से प्राप्त हारमोनियम को बजाना शुरू किया तो वर्तमान पर्यंत यथावत निरंतर प्रगतिमान एवं साध्य बना लिया। यह अनुपम संयोग ही हैं कि 1942 में संबलपुर उड़िसा के प्रसिद्ध संगीत निर्देशक पं. रामसुमरन मास्टर जी का गांव में आगमन हुआ। स्नेह का सन्निध्य मिला और लगातार 5 वर्षों तक संगोत सुर ही प्रायोगिक शिक्षा प्राप्त की। निसंदेह इससे सुर - ताल का सम्यक अच्छा ज्ञान मिला । इसी सुर प्रयोग का अवधान बना श्री सियादास वैष्णव में प्राप्त शास्त्रीय संगीत ।।

        व्यावहारिक निरंतर प्रयोगः- इच्छा प्रबल होना चाहिए किन्तु अभ्यास सघन होना चाहिए। कलाकार खुमान की चाह अय व्यावहारिक प्रयोग की ओर उन्नमुख हुई। इन दिनों सर्वाधिक लोकप्रिय प्रसिद्ध खेली नाचा पार्टी थी जिसके छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले मदराजी दाऊ अर्थात दाऊ दुलार सिंग साहू संचालक थे। संयोग से वे श्री खुमान साव के मौसेरा भाई भी है। उन्होनें खेली नाचा पार्टी में हारमोनियम वादक कलाकार का दायित्व निभाया 1944 में ही। इस क्षेत्र में अब आपका सम्पर्क समर्थ संगीतज्ञों से हुआ। श्री जगेसर देवदास से सुर - ताल एवं श्री भवर सिंह देवांगन से शास्त्रीय संगीत की मात्राओं को भलीभांति समझने सीखने का पर्याप्त अवसर मिला। संगत मिला। प्रेरणास्प्रद आशीष एवं सहयोग मिला। चरेवेति चरेवैति । आगे वढ़ों और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको । यही सिद्धांत आत्मसात किया ।

        राजनांदगांव में संगीत साधनाः 1948 का वर्ष साव जी के लिए अनुपम संयोग किंवा परिवर्तन का सोपान माना जा सकता है। इसी वर्ष आपका विवाह खेमवती साव से हुआ और इसी वर्ष आपने लाखोली राजनांदगांव में सहकर संगीत साधना प्रारंभ किया। इसी वर्ष राजनांदगांव के प्रसिद्ध चित्रकार गायन वादन में ख्याति प्राप्त कलाकार श्री ठाकुर हीरा सिंह एवं तबला वादक कवि श्री रामरतन सारथी के साथ सीखने का पर्याप्त अवसर मिला। अब तक श्री साव जी का हारमोनियम वादन। प्रसिद्धि की ओर अग्रसर था। यह सहज संयोग रहा कि उन दिनों गुजराती समाज के संयोजन में दुर्ग के प्रसिद्ध गायक श्री कुंदन लाल सहगल एवं सी. एच. आत्मा के गीतों को अपने आर्केस्ट्र पार्टी में प्रस्तुत करते थे। उनके सफ्न कार्यक्रमों से श्री सावजी को प्रेरणा मिली आत्मविश्वास जागा। रायपुर से श्री अरूण कुमार जैन (पूर्व कुलपति) एवं श्री सिद्धनाथ, दुर्ग (तबलावादक) आपके कार्यक्रम में सम्मिलित हुए। 1950 में खुमान एण्ड पार्टी संगठित हुई और फिल्मी गीतों पर केन्द्रित सफल कार्यक्रमों की श्रृंखला बन गई कलाकारों का सान्निध्य मिला समर्पण मिला और अन्ततः 1952 शारदा संगीत समिति राजनांदगांव की स्थाना खुमान साव ने की। शारदा संगीत समिति ने तत्कालीन मध्यप्रदेश में सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त की। इनके कार्यक्रमों को देखने - सुनने के लिए अपार भीड़ जुटने लगी। श्री खुमान जी को यश के साथ प्रयोग अभ्यास का पर्याप्त समय भी मिला। 1957 में ही सरस्वती कला मंदिर का गठन किया वे 1955 में सर्वेश्वरदास म्युनिस्पल हाई स्कूल में शिक्षक नियुक्त हुए और अब तो शालेय सांस्कृतिक कार्यक्रमों की पूर्णता मार्गदर्शन - व्यवस्था खुमान साव के ही व्यवस्थापन में सफल होता था।

       संगीत बद्ध मधुरताः 1960 तक श्री साव जो के हाथ के कमाल को इतनी प्रसिद्धि मिल चुकी थी कि बहुत से दर्शक श्रोता सिर्फ इस आकर्षण से पहुंचते थे कि वे खुमान साव का हाथ देखगें, जादू भरा संगीत सुनेंगे। वे कौन सा हारमोनियम बजाते है यह अचरज बना था। शारदा संगीत एवं कला मंदिर अपने उत्कर्ष के शीर्ष में था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आकाशवाणी रायपुर के स्थापना के समय से ही लोकप्रिय छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम सुर श्रृंगार का प्रसारण प्रति बुधवार दोपहर का होता था। दोपहर को जिधर से निकले सुरश्रृंगार का समधुर गीत संगीत गुंजित होता था। यह वास्तव में फरमाइसी छत्तीसगढ़ी गीत कार्यक्रम था जिसमें संगीत निर्देशन श्री खुमान साव का रहा अधिकांश गीतों को संगीतबद्ध माधुर्य श्री खुमान साव ने दिया था जो लोकप्रियता का आधार भी रहा है।

        छत्तीसगढ़ीया आत्म सम्मानः यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1957 - 58 में दाऊ रामचंद जो देशमुख ने काली माटी और कुछ नाटकों का मंचन कुछ कलाकारों के सहयोग से किया। उन्हीं दिनों रायपुर के हबीब तनवीर की अनुभवी नजर ने कलाकारों की अभिनेयता को परखकर दिल्ली आदि में प्रस्तुति दी। छत्तीसगढ़ी लोक सास्कृतिक के श्रेष्ठता को विदेशों तक प्रचारित किया। किन्तु अपनी सुदृढ़ आर्थिक स्थिति पारिवारिक उत्तरदायित्व एवं सम्मान जनक नौकरी के कारण प्रवासी कला अभिव्यक्ति स्वीकार नहीं की। छत्तीसगढ़ का श्रेष्ठ संगीत निर्देशक छत्तीसगढ़ में ही रम गया। आत्म संतोष एवं समर्पण के साथ गुणवान छत्तीसगढ़िया।

         संवेदन शील कलाकार: यहां यह कथन उपयुक्त होगा कि कभी आकाशवाणी रायपुर से प्रथम तीन गीत प्रसारित हुए सोन के चिरैया बोले का रे, मोला मइके देखो साध और सुन के मोर पठौनी परोसन रोवन लगे इनका मधुर संगीत सुखमन साव का रहा और इनसे लोक संगीत का अंत: स्थित कलाकार जागृत हो गया। जिसे 1967 के ग्रामीण बनिहारिन के द्वारा धान काटते हुए चल चल चल मेरे साथी ओ मेरे हाथी चल ले चल खटारा खींचकर को उठे ग्रामीण महिला को देख सुनकर खुमान साय के लोक मन को उदवेलित कर दिया। भावुक मन को चुनौती दी। ग्रामीण महिला और फिल्मीगीत क्यों? करमा ददरिया सुवा जवारा गौरा कहां गए? फिर हमारे छत्तीसगढ़ी लोकगीत को कौन आदर देगा? क्या सब भूल जायेगे। सूर छत्तीसगढ़ी गीत सुनने को मिलना ही चाहिए। खुमान साव के लोक संगीत में रूझान का यही प्रेरक प्रसंग है। जहां अपनी संस्कृति एवं कला के प्रति खुमान का भावुक संवेदना पूर्ण हदय संकल्पित हो गया कि अब से मेरी हारमोनियम फिल्मी गीतों पर धुन नहीं देगी। यदि देगी तो सिर्फ छत्तीसगढ़ी लोक संगीत पर और प्रादेशिक भाषाओं के गीतों की रचना हो मेरा उद्देश्य होगा, लक्ष्य होगा संकल्प होगा।

         सांगीतिक नेतृत्वः 1970 - 71 का वर्ष संगीतकार खुमान साव के जीवन का अविस्मरणीय समय माना जा सकता है । एक ओर लघुरूप में राज भारती पार्टी गोदिया का राजनांदगांव में आगमन और दूसरी ओर दाऊ रामचंद देशमुख का आत्मीय निवेदन अनुरोध कि नए सांस्कृतिक मंच को संगीत की मधुरता से समावेश करना। दाऊ रामचंद देशमुख से साव जी की भेंट ऐतिहासिक एवं स्मरणीय है। वे चदैनी गोंदा जैसी सशक्त सांस्कृतिक संस्था के निर्माण की पूरी योजना बना चुके थे। उन्हें इसके लिए छत्तीसगढ़ी लोकतत्वों से परिपूर्ण प्रभावशाली संगीत - निर्देशक की आवश्यकता रही जिसे श्री खुमान साव ने पूरा किया। श्री साव जी ने पूरी निष्ठा, क्षमता एवं समर्पित योग्यता से चंदैनी गोदा को संगीत से संवार दिया । श्रृंगार किया ।

         सांस्कृतिक मंच चंदैनी गोदा:- 7 नवम्यर 1971 को ग्राम यधेरा जिला दुर्ग में चर्दैनी गोंदा की प्रथम प्रस्तुति हुई । आपार जनसमूह ने इसे देखा - सुना परखा औश्र अप्रतिम सराहना की। 1973 में रायपुर के आर. डी. तिवारी विद्यालय के विशाल मैदान में प्रस्तुति के साथ दो लाख से अधिक भीड़ ने आवागमन अवरुद्ध कर दिया था लोग स्वयं स्फूर्त इस छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच चदैनी गोदा को सुनने के लिए आतुर रहे हर वर्ग के लोग शामिल स्वः अनुशासित एवं शांति से छत्तीसगढ़ी लोक संगीत का आनंद लिए प्रशंसा किए। 1975 तक दाऊ रामचंद देशमुख एवं संगीत सर्जक श्री खुमान साव की उत्कृष्ट कृति चदैनीगोंदा की सफलता चरम पर थी।

         श्री खुमान साथ ने छत्तीसगढ़ी के कवियों की रचना को गीत को संगीत बद्ध किया, जिसके सुमधुर ध्वनि से गीतों को लोकप्रिय बनाया। इसमें निसंदेह सर्वश्री पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, हेमनाथ यदु, रायपुर, पं. दानेश्वर शर्मा, दुर्ग, लक्ष्मण मस्तूरिया रायपुर, रविशंकर शुक्ल, मुकुंद कौशल दुर्ग, भगवती सेन धमतरी, विमल पाठक, भिलाई, लालाफूलचंद श्रीवास्तव रायगढ़, केदार दुबे, विल्हा, हर्ष कुमार बिन्दु, रामरतन सारथी राजनांदगांव आदि का समावेश कर सकते है।

         वही संगीत ध्वनि बद्ध इन गीतों को अपना स्वर दिया श्रीमती कविता हिरकने, श्रीमती माया वैद्य, श्रीमती लता खापर्डे, श्रीमती अनुराग ठाकुर, श्रीमती मंजुला बेनर्जी, श्रीमती संतोष झाझी, भिलाई, श्रीमती साधना यादव, दुर्ग, श्रीमती किस्मत थाई मरकाम, श्रीमती यासंती एवं पदमा देवार, भिलाई, श्रीमती संगीता चौबे, श्रीमती भगवती साहू एवं कु. ज्योति भट्टी आदि। साथ ही सर्वश्री केदार यादव, दुग, दमण मस्तरिया, रायपुर, भैयालाल हेडाऊ, शिवकुमार दीपक, भिलाई, दुष्यंत हरमुख, राजनांदगांव आदि ने गीत गाये। इसी तरह संगीत सह्याक वाद्य वृन्द कलाकार रहे हैं श्री गिरजाशंकर सिन्हा (बैन्जो) श्री संतोष टाक, रायपुर (बासुरी) श्री पंचराम देवदास (मोहरी) श्री महेश ठाकुर (तबलावादान) श्री मदन शर्मा (ढोलक) श्री राकेश साहू (ढोलक)। श्री परमार जी ( धमतरी) के प्रसिद्ध गीत हायरे दुरखोला छतिया मा यान मारे तरसथे चोला एवं सावन म लोर - लोर भादो म घटाघोर इन्हें परिष्कृत कर चंदैनो गोदा में शामिल किया। निसंदेह संगीत, नीत, नृत्य, अभिनय कथा का सर्वोत्तम छत्तीसगढ़ी लोकजीवन को सांस्कृतिक प्रस्तुति का नाम रहा है चदैनी गोंदा।।

         सांस्कृतिक यात्रा के इसी पड़ाव में खुमान साव ने फीचर फिल्मों में भी संगीत निर्देशन किया जिनमें पुन्नी के चंदा, पिंजरा के मैना, मया के बंधना आदि। चंबई प्रयास में भी प्रसिद्ध गायिका श्रीमती कविता कृष्णा मूर्ति को छत्तीसगढ़ी गीत सिखाया चंदैनी गोंदा की ऐतिहासिक यात्रा में अपनी कला अपनी भाषा एवं संस्कृति के प्रति उदात्त गौरव की भावना गी। छत्तीसगढ़ की इस उच्च स्तरीय प्रतिभा के प्रति नतम्रतक हुए। सभी स्तर वर्ग के लोगों को अपना ओर आकर्षित किया।

         1985 में श्री खुमान साव का राजनांदगांव में 5 अप्रैल 1985 को सार्वजनिक नागरिक अभिनंदन किया गया। साथ ही इसके बाद ही आपसी सामजस्य के अभाव कलाकारों के विखराव में अन्तत: खुमान साव को चंदैनी गोदा की व्यवस्था एवं सम्यक संचालन का दायित्व दिया खुमान साद ने पुनः उसी वैभव से चंदैनी गोदा संचालित किया है जो आज पर्यंत प्रतिवर्ष शताधिक कार्यक्रम प्रदेश एवं देश के विभिन्न शहरों एवं ग्रामीण क्षेत्रों में प्रस्तुत कर रहे हैं।

         खुमान लोक संगीत: खुमान साव का मन मानस जिनसे लोक संगीत की चुनौती स्वीकार करते हुए तनता लोकर्पिय बनाया कि वह खुमान संगीत बन गया है चंदैनी गोदा की आत्मा है खुमान साव का संगीत। स्वंय खुमान साव ने यह स्वीकार किया है कि पता ले जारे गाड़ी वाला अरवरी के तुमानार यरोयर आदि के माधुर्य से वे स्वयं मंत्रमुग्ध हो मुझे इस रात को तनहाइयों में आवाज़ न दो कनहे वाध्य हो जाते हैं।

         म्यूजिक इंडिया बंबई से बीसों केसेट्स प्रस्तुत करने वाले श्री खुमान साय ने सम्मान की कभी आशा नहीं की। उन्होने अपने क्षेत्र को लोक संस्कृति को आत्मसात कर पूर्ण दक्षता से प्रस्तुति का समर्पण थाहा है। इसी में वे मग्न है आज भी क्रियाशील है सहभागी है अपनी सर्जना खुमान संगोत में। निसंदेह अपनी स्पष्ट वादिता आत्म सम्मान के लिए वे कोई समझौता पसंद नहीं करते थही नए कलाकारों को पर्याप्त प्रोत्साहन सहयोग करते है। इस उम्र में भी युवा शक्ति का एहसास दिलाने वाले खुमान साव अनुकरणीय उदाहरण है। संगीत कला के प्रति समर्पण का।।

दिनांक 21-06-2019 22:49:04
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संत संताजी महाराज जगनाडे

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