स्वर्गीय दुलारसिह दाऊ जी के मंदराजी नाम पर एक कहानी है। बचपन में बड़े पेटवाला एक स्वस्थ दुलारसिंह आंगन में खेल रहा था। आंगन के ही तुलसी चौरा में भद्रासी की एक मूर्ति थी। नानाजी ने अपने हंसमुख स्वभाव के कारण बालक दुलारसिंह को मद्रासी कह दिया था और यही नाम प्रचलन में आकर बिगड़ते-बिगड़ते मुद्रासी से मंदराजी हो गया।
दाऊ जी का जन्म 1 अप्रैल 1911 में राजनांदगांव से 7 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम रवेली के संपन्न मालगुजार परिवार में हुआ था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा सन् 1922 में पूरी की थी। गांव में कुछ लोक कलाकार थे। उन्ही के निकट रहकर ये चिकारा और तबला बजाना सीख गए थे। वे गांव के समस्त सामाजिक एवं धार्मिक पर्यों में होने वाले कार्यक्रमों में भाग लेते रहे थे। जहां कहीं भी ऐसे कार्यक्रम आयोजित होते थे तो वे पिताजी के विरोध के बाद भी रात्रि में होने वाले नाचा आदि कार्यक्रमों में अत्यधिक रुचि लेते थे। उनके पिता स्व. रामाधीन दाऊ को दुलारसिह की ये रुचि बिल्कुल पसंद नहीं थी इसलिए हमेशा अपने पिताजी की प्रताड़ना का सामना भी करना पड़ता था। चूंकि इनके पिता जी को इनकी सांगीतीय रुचि पसंद नहीं थी। अतएव पिता जी ने इनकी रुचियों में परिवर्तन होने की आशा से मात्र 14 वर्ष की आयु में ही दुलारसिंह दाऊ को वैवाहिक सूत्र में बांध दिया किन्तु पिताजी का यह प्रयास पूरी तरह निष्फल रहा। आखिर बालक दुलारसिंह अपनी कला के प्रति ही समर्पित रहे। दाऊजी को छत्तीसगढ़ी नाचा पार्टी का जनक कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
1. बचपन से ही रुचि थी और रवेली में ही मैंने यह काम प्रारंभ किया ।
2. सन 1927-28 तक छत्तीसगढ़ में कोई भी संगठित नाचा पार्टी नहीं थी। कलाकार तो गांवों में रहते थे किन्तु संगठित-पार्टी के रूप में नहीं थे। आवश्यकता पड़ने पर तथा संपर्क करके बुलाने पर कलाकार कार्यक्रम के लिए जुड़ जाते थे और कार्यक्रम के बाद अलग हो जाते थे। आवागमन के साधन भी सीमित थे।
3. समाज में जो घटता है उसी में से एक विशेष बिन्दु को केन्द्र में रखकर कहानी और गम्मत हम चुनते
4. हमने गम्मत के माध्यम से तत्कालीन सामाजिक बुराईयों को समाज के सामने उजागर किया। जैसे मेहतरिन गम्मत में पौगवा पंडित गम्मत भी छुआछुत को दूर करने का प्रयास है। ईरानी गम्मत हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रयास है। बुढ़वा एवं बाल-विवाह रोक की प्रेरणा है। मरारिन गम्मत में देवर-भाभी के पवित्र रिश्ते को मां और बेटे के रूप में जनता के सामने रखा। इन्ही गम्मतों में जिन्दगी की कहानी का प्रतिबिम्ब नजर आता है।
5. नाचा पार्टियां तब संगदित नहीं थी। 1927-28 में मैंने नाचा पार्टी बनाई। कलाकारों को इकट्ठ किया कलाकारों में थे परी नर्तक के रूप में गुडरदेही खलारी निवासी नारद निर्मलकर 2. सुकलू ठाकुर लोहारा भर्राटोला निवासी गम्मतिहा के रूप में 3. नोहरदास खेरखा अछोली निवाासी गम्मतिहा के रूप में 4. राम गुलाल निर्मलकर कन्हारपुरी राजनांदगांव निवासी तबलची के रुप में और 5. स्वयं दाऊजी मदराजी दुलारसिंह रवेली निवासी चिकरहाा के रूप में। ये पांच कलाकार ही प्रथम छतीसगढी संगठित रेवली नाचा के आधारस्तम्भ बने।
6. समय बदलता है तो उसका अच्छा और बुरा दोन प्रभाव कलाओं पर भी पड़ा है। लेकिन मैंने लोकजीवन पर आधारित रवेली नाचा पार्टी को प्रारंभ सन् 1950 तक फिल्मी भोंडेपन से अछूता रखा। पार्टी में महिला नर्तक परी, हमेशा ब्रम्हानंद महाकवि बिन्दु, तुलसीदास, कबीरदास एट तत्कालीन शायरों के अच्छे गीत पर भजन प्रस्तुत करते रहे हैं। 1930 में चिकारा के स्थान पर हारमोनियम और मशाल के स्थान पर गैसबत्ती से शुरुआत मैंने की।
7. खड़िया और हड़ताल का उपयोग करते हैं। धीरे धीरे अब रनो पाउडर का भी उपयोग होने लगा है।
8. परिवार वालों में सबसे अधिक मेरे पिताजी इससे नाराज हुए। उसके बाद पत्नी और बच्चों ने भी इस कार्य की उपेक्षा की दृष्टि से ही देखा ।
9. सामान्य रूप से अच्छी रहती है।
10. आजादी की जंग चल रही थी। हमारी नाचा पार्टी ने अंग्रेजी शासन के खिलाफ- स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का साथ दिया। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उत्तेजक संवाद बोलने के कारण इसके प्रदर्शन पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था। राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत गीत भी हम गाया करते थे।