कमल कृतघ्न वे लोग जो करते पूर्वजों का सम्मान नहीं दिशाहीन वह जाति जिसमें गौरव स्वाभिमान नहीं। साहू समाज को एक सूत्र में पिरोने और संगठन के रूप में आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य करने वाले नींव के पत्थर स्व. श्री उदयराम साहू जी आजीवन समाज के वैचारिक उन्नति और संगठनात्मक मजबुती हेतू कार्यरत रहे। अपनी जाति एवं पूर्वजो के गौरव का एहसास कराने वाली उपरोक्त पंक्तियों के रचयिता थे स्वं उदयराम जी छत्तीसगढ़ साहू संघ के वर्तमान भव्य स्वरूप के आधार स्तंभ रहे उदयराम जी ने तैलिक साहू सम्पर्क पत्रिका के माध्यम से साहू समाज को वैचारिक उन्नति प्रदान की। श्री उदयराम जी आजीवन आदर्श समाज और समाजोत्थान के लिए मार्ग प्रशस्त करने में लगे रहो। 1970-80 के दशक में हमारे समाज के 90 प्रतिशत स्वजातीय बंधू समाज के कुल देवी, देवता एवं महापुरूषो से अनभिज्ञ थे, श्री. उदयराम जी ने अपने लेख एवं पत्रिका के माध्यम से उसे जन-जन के मानस मंडल तक पहुँचाया, तैलिक साहू सम्पर्क पत्रिका के माध्यम से किये गये सामूहिक प्रयास के फलस्वरूप हमें अपने समाज के संत-माताओं और महापुरूषों के जीवन गाथा और सत्कर्मों से परिचित हो पाये है। सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ के लिए सामाजिक कार्यक्रम जिस कार्यालय से संचालित होते रहे हैं श्री बनऊराम साहू किराना दुकान, शारदा चौक, रायपुर ।
प्रारंभ से ही व्यापार में संलग्न श्री बनऊराम साहू एवं श्रीमती अलोपा साहू के सम्पन्न परिवार में श्री उदयराम साहू का जन्म 6 जून 1936 को हुआ। पिता श्री भजन गाते एवं लिखते भी थे अतः साहित्यिक एवं व्यापारिक प्रतिभा विरासत में मिली। बी.ए. प्रथम वर्ष) तक शिक्षा प्राप्त श्री उदयराम ने 'कमल' उपनाम साहित्यिक नाम से छत्तीसगढ़ी गीत, भजन लेखन बचपन से ही प्रारंभ कर दी थी। आपके द्वारा संचालित अनेक भजन मंडलियों आज भी क्रियाशील है। पत्रिका का प्रकाशन सन् 1975 से प्रारम्भ हुआ था, लेकिन उनकी सामाजिक यात्रा का शुभारंभ सन् 1946 में ही हो गया था, उन्ही के शब्दों में सन् 1946 में उस समय हिन्दी भाषा की पढ़ाई हेतु जा भाषा पुस्तक पाठ्यक्रम में थी उसमें एक पाठ दानवीर भमाशाह का भी था। इस पाठ में दानवीर भामाशाह की जीवनी दर्शाते हुए उन्हें एक महान दानी और देशभक्त निरूपित किया गया था, जुलाई से नवम्बर तक उस पुस्तक का अध्येता रहा। भामाशाह का पाठ अन्य सामान्य पाठों की तरह ही पढता रहा, संयोग वश उसी वर्ष दिसम्बर 1946 में मेरे शहर रायपुर में ही अखिल भारतीय तैलिक वैश्य महासभा का राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित हुआ। यहां के प्रसिद्ध माधव राव सप्रे शाला मैदान में यह कार्यक्रम सम्पन्न हो रहा था यह वह काल था, जब हमारे लोग बहुत अधिक अर्थ सम्पन्न नहीं थे , छत्तीसगढ़ के आयोजन हेतु स्वजातीय बन्धुओं से योगदान स्वरूप 1 पायली चॉवल और चार आने नदि की अपील प्रत्येक सदस्य से सहयोग देने हेतु लिखित पाम्पलेट में की गई थी उस अधिवेशन के माध्यम से जो समाज प्रेम और समाज सेवा की ज्योति उदयराम जी के मन में पैदा हुई वह आज भी मृत्यु उपरांत हम सभी के अन्दर जागृत हैं।
सन् 1946 में मात्र 9 वर्ष की अल्पायु में समाज के लिये कुछ कर गुजरने की जो भावना प्रकट हुई उसे निरतर अपनी लेखनी और सामाजिक दौरों से आलोकित करते रहे। सन् 1965 के आसपास इन्होने आदरणीय डॉ. सोमनाथ साहू, श्री प्रहलाद साहू, स्व, जीवनलाल साव, स्व. गोविंद गुरूजी, स्व. बिसौहाराम साहू, डॉ. सुखदेव राम साहू, श्री देवकुमार साहू, ऐसे कितने नाम है जिन लोगों के साथ गांव-गांव में सामाजिक दौरे किये। इस सामाजिक यात्राओं का एक हिस्सा साईकिल और पदयात्रा के माध्यम से पूरा होता था यात्रा व्यय की राशि स्वयं के पास से लगाते थे।
सामाजिक संगठन को मजबूती और विकास को नया आयाम देने का ये प्रयास समय के साथ-साथ बढ़ता चला गया और इसी कड़ी में वो समय भी आया जब सामाजिक विचारों को दूरस्थ अंचल और समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता महसूस की जाने लगी तब सन् 1975 में साहित्यिक रूचि रखने वाले सह सदस्य डॉ. सुखदेव साहू (सरस), श्री देव कुमार जी, स्व. श्री बिसौहा जी ने साहू सम्पर्क पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। सन् 1978 माह अप्रैल-मई में प्रकाशित साहू, सम्पर्क की एक मूल प्रति के अनुसार सम्पादक- श्री बिसौहाराम साह एवं प्रवध सम्पादक श्री उदयराम साहू थे। उस समय तत्कालीन रायपुर जिला साहू संघ के संरक्षण में स्नेही प्रकाशन समिति रायपुर द्वारा इस पत्रिका का प्रकाशन किया जाता था।
स्व. श्री जीवनलाल साव, डॉ. सोमनाथ, गोविंद गुरूजी, बिसौहा गुरूजी, भू.पु.मंत्री श्री कृपाराम साहू (सब्जी मंडी वाले), प्रहलाद गुरूजी, स्व. अजय कुमार साहू, डॉ. सुखदेव राम साहू सरस, श्री देव कुमार साहू, डॉ. चन्द्रिका साहू (राजिम), भू.पू.मंत्री श्री चन्द्रशेखर साहू, स्व. उदयराम साहू, स्व. डॉ. मनराखन लाल साहू. (दुर्ग), नारायणराव अम्बिकापुर, स्व. भगत टेलर ये वो नाम है जो किसी परिचय के मोहताज महीं है ये वो नींव के पत्थर है। जिनकी छाती पर छत्तीसगढ़ प्रदेश साहू संघ रूपी भवन अपनी संपूर्ण बूलदी के साथ खड़ा है, से सभी यो आधार स्तंभ हैं जिनके मजबूत कंधों पर और वर्तमान भामाशाह व्यवसायिक परिसर एवं साहू, छात्रावास, टिकरापारा टिका हुआ है समाज में व्याप्त रूढ़िवादी परम्परा, कुरीतियों को न सिर्फ उजागर किया बल्कि अपनी लेखनी के माध्यम से उसे दूर करने का प्रयास भी किया, समाज में शिक्षा का स्तर ऊचा उठाने हेतू निरंतर प्रयत्नशील रहे फलस्वरूप कर्मा शिशु मंदिर रासागर पारा, रायपुर का निर्माण हुआ जो वर्तमान में उच्चतर एवं माध्यमिक विघालय का संचालन कर रहा है। भामाशाह व्यवसायिक परिसर एवं साहू छात्रावास टिकरापारा में आपके तन मन धन से समर्पण आपकी रचनात्मक क्रियाशीलता का परिचायक है, आपके 1984 में समाज वीर अलरण से सम्मानित यिा गया। समाजिक पत्रिका के निरन्तर सम्पादन एवं प्रकाशन में सक्रिय सहभागिता हेतु पवित्रधाम श्री संगम राजिम में 09.02.2014 को सामजिक सेवा सम्मान से समाज गरिय प्रकाशन द्वारा राज्य स्तरीय सम्मान से गौरवान्वित किया गया। आया है सो जायेगा, राजा रंक फकीर ये विधि का विधान है इसके आगे हम सब नतमस्तक है।