सुनील गुमान साहु, राष्ट्रीय मुख्य महासचिव युवा अमरावती महाराष्ट्र)
मनुष्य इस संसार में अकेले आता है और अकेले ही जाता है, रह जाती हैं उसके पीछे उसकी यादें व परिवार के सदस्य, परिवार के लिये किये गये अच्छे-बुरे काम, उसकी धन, दौलत, दुकान, मकान और समाज के गरीब व पिछड़े व्यक्ति तक यदि उसने अपने जीवन का, अपने टेलेन्ट का, अपनी कमाई का, अपने समय का दान दिया हो तो सच्चे अर्थों में वही मनुष्य लोगों के दिलों में सदैव जिन्दा रहेगा।
बंधुओं समाज के गरीब घरों में झाँककर देखने के बाद आपके हृदय में सामाजिक भावना जागृत होकर यदि कर्तव्य बोध आ गया तो समझ लेना आपने समाज सेवा की दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया। किसी गरीब बेटी के ब्याह में मदद के रूप में गेहूँ, चावल, अनाज, कपड़े विवाह के खर्च में थोड़ा सहयोग किया तो मानों वही सच्ची समाजसेवा है। मंचों से भाषण करना, सुनना ही समाजकार्य नहीं वरन जीवन में वैसा आचरण करना ही उसका सच्चा स्वरूप है। किसी गरीब समाजबंधु के पुत्र कि पढ़ाई में किताब खरीदकर दीजिये तो सही, आपक दिल में आपको साक्षात भगवान का दर्शन होगा।
समाज का कोई बंधु किसी सरकारी कार्यालय में आपको दिखने के बाद आपने सही में सच्चे मन से उसे मदद करने के लिये आगे आयें तो यही सच्ची समाजसेवा है। दवाखाने में समाज के किसी भी सदस्य को देखने के बाद यदि आप उसे सच्ची दिलासा, धीरज देते हो तो वही सच्ची समाजसेवा है। राजनीति में अपने समाज बंधुओं को मदद करना सच्चे मन से उसे साथ देना यही सामाजिक भावना का सम्मान कहा जायेगा।
समाज के संत, समाज सुधारकों की जयंती-पुण्यतिथि के कार्यक्रमों में, सामुहिक विवाह, परिचय सम्मेलनों में स्वयं उपस्थित रहकर कार्यक्रमों को सफल बनायें यही समाज कार्यों में सहकार्य है आपका किसी भी समूह, समाज के निर्माण में योगदान देने वाले सदस्यों की मानस बुद्धि ही उसके रीति रिवाजों की परिचायक, यानी की समस्या को गगात्री समझनी चाहिय।
हमारे समाज के इतिहास पर हमें गर्व करने का अवसर मिलता है। वहीं कई बार समन्वय के अभाव में हम पिछड़ेपन जैसे शब्दों को चिपकाये घूमते हैं। क्योंकि इतिहास का गौरवपूर्ण क्षण पिछड़ेपन में बदल गया। वो कौन सा काल था जब हमें गर्व से अपमान में ढकेला गया। इसकी खोज होनी चाहिये थी। चिंतन होना था। हम नहीं बैठे सोचने को क्या कभी तथाकथिक विचारों को, चिंतकों ने अपनी एकता का परिचय देकर समाज को एक जैसा एक स्वरूप संदेश देने का प्रयत्न किया है। क्या कभी उन सुधारवादियों ने एक नया मौलिक स्वरूप, नयी योजनायें सामने रखकर पुरानी रूढ़ीवादियों पर प्रहार किया है। क्या कभी राष्ट्र के बुद्धिजिवियों ने समाजहित में कुछ संदेश दिये हैं। क्या कभी समाज में राजकीय नेताओं ने मौका परस्ती का त्याग समाजहित में कर एकजुटता दिखाकर समाज के सर्वांगीण विकास की योजना को कार्यरूप दिया है। आस-पास में रहनेवाले समाज बंधुओं के प्रति अपनापन की भावना से सहकार्य किया है।
कभी नहीं, ऐसा नहीं हो पाया, नहीं हो सका क्यों कोई भी समाज अपनी बुनियादी नीतिगत फैसलों को लागू नहीं कर सकेगा हमें समाज के सदस्यों को पहले इंसानी कर्तव्यों का बोध कराना होगा तत्पश्चात् समाजप्रेम अपने आप जागृत होगा। जिस प्रकार बीज बोने के पूर्व किसान जमीन को खोदकर नरम बनाकर प्रजनन योग्य बनाता है। उसी प्रकार हमें भी बंजर जमीन को पहले इस योग्य बनाना पड़ेगा की हम समाजसेवा रूपी बीज उसमें बो सके। तत्पश्चात् फसल की बात आयेगी। कभी-कभी तो हम विकसित क्षेत्र में पदार्पण करने की ओर अग्रसर है और कहीं-कहीं हम पिछड़े पन को दूर करने की बातें करते है।
जिस प्रकार कुछ मुट्ठीभर राजनैतिक शक्ति साम्राज्य कर रही हैं। हम इतनी बड़ी तादाद में भी छिन्न-भिन्न होकर राजकीय पतन की अवस्था में हैं। क्यों कि एकता खंडित होती रहती है। आखिर कब थमेगा ऐसा विचार परिवर्तन; जो कि समय पर ही होता है (क्यों नहीं हम एक विचार के साथ हो पाते ... क्यों नहीं हम एक विचार खुशी से अपने सामाजिक कार्यों के साथ जुड़ जाते.... क्यों नहीं हम अपना एक विचार बना पाते आखिर क्यों कब थमेगा यह सब ... शायद हमारी दस पीढ़ी और बीत जायेगी तब भी नहीं शायद । फिर क्यों नहीं हम जल्द इसका इलाज ढूंढ लें.... आखिर क्या करना चाहिये ऐसा जो हम सबको एक सूत्र में बांध जाये। जो लोग टुकड़ों में खन्डित होकर अपने-अपने विचारों को ही सम्पूर्ण और सही मानकर एकत्रीकरण नहीं कर पा रहे उन्हें क्यों नहीं बुद्धिजीवी वर्ग: उस-उस संगठन, समिति समझाय का अब बहुत हो चुका है समय निकला जा रहा है सर्वव्यापी सर्व हितचिंतक विचार समाज के सामने पेश कर कश्मीर से कन्याकुमारी तक एकमत, एकपक्ष, एक सुर-ताल में हम अपने कदम बढ़ायें और अपना विकास, ध्येय, आजादी, उद्योग, धन्दा, व्यवसाय, विश्वास, ज्ञान सभी कुछ पा जायें।
हमारी कृति एक सी हो, कथनी करनी एक सी हो यदि विचार एक होंगे सब एक होगा। सभी एक होंगे। यदि समाज में पूरे हिंदुस्तान में जनसंख्या के हिसाब से; समाज के यदि 5% समाज बंधु सर कफन बांध यह प्रण करें की हमें प्रचारक जैसा जीवन बिताना है, तो समाज के उत्थान, विकास हमसे कही नहीं भागेगा। सभी को अपने-अपने कर्तव्य का बोध होना चाहिये यह सब विचारकों चिंतकों की ही जवाबदारी नहीं बल्कि सभी को इसे मान्यता देनी चाहिये। जिस प्रकार हमें अपने स्वयं के धंधे, व्यवसाय की चिंता; बगैर बताये रहती है उसी प्रकार क्यों नहीं समाज हित की चिंता रहती। क्या उसे बताना जरूरी है।
अनेक विषयों पर चिंतन सारे देश में शुरू है। सभी दूसरे समाजों में भी चिंतन हो रहा है। परिवर्तन से कोई भी अछूता नहीं रहेगा इसलिये कहता हूँ हम जागें सारा समाज जागेगा, देश जागेगा, इंसानियत जागेगी, ब्रम्हाण्ड जागेगा सारे विश्व में नवनिर्माण की सराहना होगी।
हे प्रिय समाज बंधु अपने सारे दुख मुझे दे दो लेकिन आप समाज हित में सोंचो और लग जाओ समाजकार्य में। आज से ही कर लो प्रण इस मन में, कोई भी भाई-बहन विकास से अधूरे नहीं रहेंगे। आपका विकास होगा तो उनका भी विकास आप करोगे ही। निश्चय कर लो अब हमें पिछड़ेपन जैसा शब्द हमारे समाज के साथ नहीं जोड़ना पड़ेगा। सरकारी ओहदों पर कार्यरत मेरे भाईयों - बहनों से मेरी नम्र विनती हैं कि कोई भी समाज बंधु आपको परेशान करने नहीं आता है। वरन वह अपने प्रिय समाज बंधु को देखकर खुशी से अपने दिल का हाल बताना चाहता है। आपके पास आनेवाले भाई-बहनों को अपनी समझदारी का परिचय देकर समाज प्रेम से सरोबोर कर दो। आप ही उनके लिये इस आधुनिक काल के राजा हैं। आपके तंत्र से उसके कार्य कर समाज में आप सम्मानित ही होंगे। दुआ मिलेगी,समाज की शक्ती मिलेगी, विश्वास बढ़ेगा, प्रेम बढ़ेगा, आदर होगा, पूछ-परख बढ़ेगी, अपनापन निर्माण होगा।
समाज मे अनमोल रत्नों की खान भरी हुई है। हमारे समाज में साहित्यकारों ने समाज दर्पण में अपना प्रमुख रूख दर्शाया है। इन्हीं साहित्यकारों से समाज की दिशा विकास की ओर मुडती है । ये जहाज के उस चप्पू की तरह है जो तेज बहाव में भी अपना काम कर जहाज को सही दिशा देने में मददगार होते हैं। इनकी भी समस्यायें आप सबकी हमारी ही हैं। इन्हें प्रोत्साहित कर इनके मनोबल को बढ़ाना हमारा कर्तव्य है। हमें चाहिये इनकी रचनाओं को पढ़े/प्रसारित करें/ प्रकाशित करें/ प्रचलित करें/समय पर इनकी रचनाओं का संकलन कर समारोह में छपवाकर प्रकाशित करें।
समाज में उभरने वाले लेखकों, कवियों को मंच दे। उनका विश्वास बढ़ेगा। नये सामाजिक पेपरों को अपने घरों में स्थान दें। समाज की पत्र-पत्रिकाओं को अपने घर का अनिवार्य सदस्य बनायें। समाज के प्रति जानकारी बढ़ेगी, सुधार होगा, विकास में सहभागी होने का अवसर समाज की पत्रिकाओं के माध्यम से मिलेगा।
मेरे जान से भी ज्यादा प्यारे भाईयों और बहनों मैं कोई नेता नहीं जो लोक लुभावन नितियों की घोषणा करूँ। मैं एक छोटा सा समाजहित चाहने वाला समाजकार्य करनेवाले प्रत्येक सदस्य का साथी हूँ उनके आस-पास ही खड़ा हूँ। मेरे जैसे विचार अनेकों के मन में, बल्कि हजारों के मन मे उमड़ रहे होंगे। देर किस बात की है उठाईये कलम और हमें अपने विचार/ संदेश/ निति/फैसले/निर्णय से जल्द से जल्द अवगत कराईये।