आर. पी. साहू. दिल्ली प्रदेशअध्यक्ष राष्ट्रीय तैलिक साहू राठौर चेतना महासंघ
आज साहू राठौर समाज के सम्मुख सर्वांगीण विकास की कठोरतम चुनौती है। जैसा कि जग जाहिर है कि सभी विकास के तालों की एक कुंजी है और वह है राजनैतिक विकास एवं सामाजिक प्रतिष्ठा। राजनैतिक विकास के बारे में सभी पूर्णतयः जानते हैं, अतः इस पर बात बाद में करेंगे पहले सामाजिक प्रतिष्ठा की बात करते हैं। सामाजिक प्रतिष्ठा से यहाँ व्यक्तिगत रूप से समाज में प्रतिष्ठा का आशय नहीं है। यह तो कोई भी अपनी हैसियत, गुणों आदि की ताकत से प्राप्त कर लेता है। बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा से आशय यह है कि जब हमारे समाज का इतना विकास हो जाये कि अन्य समाज के लोग हमारे समाज को विकसित, प्रतिष्ठित एवं ताकतवर मानने लगें। उदाहरण स्वरूप क्षत्रिय समाज, ब्राह्मण समाज, दलित समाज, यादव समाज या मौर्या समाज को ले लें। इन समाजों का कोई भी व्यक्ति चाहे स्वयं में कमजोर, गरीब एवं अति साधारण व्यक्ति ही क्यों न हो, सभी समाज के लोग उसे इसलिये प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं कि वह एक ऐसे समाज का है जो प्रतिष्ठित समाज है और यदि इन समाजों का कोई व्यक्ति किसी अच्छे पद, हैसियत, अधिकारों से सुसज्जित है तो वह हो जाता है सोने पर सुहागा। इस समाजों के प्रति, इन समाज के लोगों के सम्मुख किसी प्रकार की अपमानजनक भाषा, मुहावरे या कहावतें नहीं प्रयोग की जातीं और जो कहावतें या मुहावरे थे भी वह विलुप्त हो गये हैं तथा इन समाजों के व्यक्ति अपनी जाति एवं पहचान गर्व से बताते हैं तथा अन्य समाजों के लोग भी इनको एवं इनकी जाति को सम्मानित तरीके से सम्बोधित करते हैं।
इसके ठीक विपरीत हमारे समाज के किसी भी साधारण व्यक्ति को अन्य समाजों के बीच कैसी प्रतिष्ठा है यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि कुछ लोग लोग कितने घृणित दृष्टि से व्यवहार करते हैं। एवं अनेकानेक अपमानित करने वाले मुहावरों एवं कहावतों का खुल्लम खुल्ला प्रयोग करते हैं । यहाँ तक कि विज्ञापनों, फिल्मों एवं लोक गीतों में भी इन कहावतों का प्रयोग होता है जो अपने समाज के व्यक्ति को कहीं भी नीचा दिखाने के लिये काफी होता है। हमारे समाज के जो लोग अपनी व्यक्तिगत ताकत से किसी अच्छे पद पर हैं, किसी अधिकार से सुसज्जित हैं, अच्छे व्यवसायी या विद्वान हैं, उन्हें भी वह सम्मान व ताकत अन्य समाज के समकक्ष लोगों के बीच नहीं प्राप्त होता है और अन्य समाज के लोग हमारी जाति की वजह से हमें कुछ न कहें, इस डर से हम या तो अपनी जाति को छुपाते हैं या फिर उतने आत्मसम्मान के साथ हम अपने बारे में बोल नहीं पाते हैं और अन्य समाज के लोग हमें एवं हमारी जाति को उतने सम्मानित ढंग से सम्बोधित नहीं करते
अतः यदि हमें सर्वांगीण विकास करना है, शिक्षा को उपयोगी एवं फलदायी बनाना, है व्यवसायों को सुरक्षित रखना है, प्रशासनिक सेवाओं में जाना है तो सर्वप्रथम राजनैतिक भागीदारी प्राप्त करनी ही होगी। राजनैतिक भागीदारी प्राप्त करने के लिए हमारे समाज के अग्रणी, सम्पन्न, बौद्धिक लोगों को ही आगे आकर एक ऐसी कार्य योजना, एक ऐसी विचारधारा को समाज के सम्मुख रखकर लोगों को साथ लेकर चलना होगा तथा अन्य साधारण लोगों को तो बस अग्रणी लोगों की बातों का पालन भी करना होगा।
राजनैतिक भागीदारी के लिए जहां एक ओर राजनैतिक सोच विकसित करना होगा, वहीं राजनीति में पद एवं अधिकार प्राप्त करने के लिए हमें धन की व्यवस्था भी करनी होगी जो कि अति अनिवार्य है। क्योंकि ऐसा अक्सर देखने में आता है कि जो लोग धन से सम्पन्न है वह राजनैतिक विचारधारा में नहीं हैं और जो इस विचारधारा में हैं वह अर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हैं। यही एक खाई इतनी विकराल है कि इस पर विजय प्राप्त हो जाय तो हमारी राजनैतिक भागीदारी सुनिश्चित हो जायेगी।
इसके लिए मैं समाज के अग्रणी नेताओं से निवेदन करना चाहूँगा कि वे लोग केवल दो साल तक अन्य कार्यों को थोड़ा कम करके हर राज्य में राज्य की सामाजिक जनसंख्या, आर्थिक सम्पन्नता एवं राज्य के आकार को ध्यान में रखते हुए कम से कम एक करोड़ से लेकर पांच करोड़ तक का राजनैतिक कोष समाज के चंदे से बनायें। इस राजनैतिक कोष का उपयोग राजनैतिक कायों के लिए ही करें। यदि एक बार यह कोष बन गया तो फिर आजीवन किसी भी कार्य के लिए कभी भी चंदा मांगने की आवश्यकता नहीं होगी बशर्ते कि इस कोष का उपयोग राजनैतिक कार्यों के लिये ही करें। इस कोष का उपयोग एवं प्रबंधन आधुनिक एवं मौद्रिक प्रबंधन के सिद्धान्तों के अनुसार किया जाय जिसकी रूप रेखा बाद में सर्वानुमति से तैयार की जा सकती है।