साहू मधुप गुप्ता, एडवोकेट अशोक नगर (म०प्र०)
किसी भी देश, समाज, जाति और समुदाय विशेष की संरचना, युगीन परिवर्तन, पुनरोत्थान एवं विकास में उसके युवा वर्ग की अहम् भूमिका होती है। जिसका युवावर्ग दिशाहीन, उद्देश्य-विहीन, आत्मलिप्त और निराश होगा उस देश और समाज का वर्तमान भी उसके अतीत से बदतर होगा और भविष्य दुखमय, पराधीन एवं अन्धकार पूर्ण होगा। इसलिये युवा वर्ग को निराशा के अंधेरों से निकाल कर सही दिशा में उसका मार्गदर्शन करना उतना ही आवश्यक है जितना कि उसको हर प्रकार के कुप्रभावों से बचाना आवश्यक है।
युवा वर्ग की चिन्ता कीजिए - युवा वर्ग ऊर्जा का अपार भंडार, शक्ति का उफनाता लावा, प्रतिभा का कोष और मात्रा में आबादी का आधा भाग होता है। इसलिये वह सकारात्मक या निषेधात्मक रूप से समाज को प्रभावित किये बिना नहीं रह सकता। अतः युवा वर्ग के विषय में चिन्तन करना और उसके मार्ग दर्शन के लिये समय निकालना व्यक्तिगत रूप से एवं सामूहिक रूप से नितान्त आवश्यक है।
पिछले दशकों में हमारे युवा में चेतना आयी है - देश के किसी भूभाग में जिन परिवारों में सामाजिक चेतना के संस्कार थे उन परिवारों के युवा वर्ग में वह समाज चेतना सहज ही पल्लवित- पुष्पित हुई है। कतिपय परिवारों के युवक-युवती घर से बाहर अध्ययन के लिये निकले और उन्होंने दूसरे समाजों में घुल-मिल कर सामाजिक जागरुकता का संस्कार ग्रहण किया। यही कारण है कि शिक्षा, कला, साहित्य, राजनीतिक, मान-प्रतिष्ठा और संगठन के मामले में जो प्रगति आजादी के बाद हमारे समाज ने की है उसका काफी कुछश्रय युवा वर्ग को ही है।
मंथरगति से समाज विकास संतोष का विषय नहीं है - अन्य समाजों की तरह हमारा समाज भी लगभग 70 प्रतिशत की तादात में अभी भी ग्रामों में निवास करता है। इतना ही नहीं ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य वर्ग की अगड़ी जातियां जमींदार, जागीरदार व पंच पटेल बन गये और हम पर राज्य करते रहे और हम हर प्रकार की आर्थिक एवं सामाजिक पराधीनता को भाग्य के रूप में स्वीकार करते चले गये। इन सभी कारणों से हमारे समाज का विकास बड़ी धीमी, मन्थर-गति से हुआ है जो संतोष करने लायक कदापि नहीं है।
केवल आर्थिक विकास ही विकास नहीं होता- यदि हमारे 5 प्रतिशत भाइयों ने शहर में परचूनी, अनाज की दुकान खोल दी या पक्का मकान बना लिया और स्कूटर कार से भी सैर सपाटे करने या परिवार में एक भाई शिक्षक, एक पटवारी या चपरासी की चौकरी पा गया तो भी यह आर्थिक प्रगति पूरे समाज के लिये ऊँट के मुँह में जीरे के समान नगन्य है। जब तक हर ऑफिस में हमारे स्वजातीय अफसर-बाबू और हर नगर में डॉक्टर, इंजीनियर, वकील,जज,पत्रकार, साहित्यकार, रेडियोटी०वी० उदघोषक, विद्वान और सत्ता में सांसद, विधायक, मिनिस्टर, सरपंच, पंच आदि हर प्रान्त और जिलों में न होंगे, तब तक हमारी प्रगति शून्य ही मानी जायेगी।
समाज का चतुर्मुखी विकास तूफानी रफ्तार से होना चाहिये- किसी भी समाज का स्तर ऊँचा करने के लिये उसका आर्थिक और बौद्धिक विकास समानुपात में होना चाहिए। यदि एक परिवार में 5 भाई हैं तो एक कृषक एक राजनेता, एक प्रोफेसर, एक व्यापारी, एक डॉक्टर या इंजीनियर होना ही चाहिए। भले प्रत्येक भाई का अलग मकान/बंगला न हो किन्तु प्रत्येक को उच्च शिक्षा प्राप्त होना ही चाहिए। लड़कियों को प्रयत्न पूर्वक उच्च शिक्षा दिलाना चाहिए, शासकीय या कम्पनी आदि में सर्विस दिलाना चाहिए और दहेज को महत्व न दे कर उच्च शिक्षा प्राप्त पुत्र-वधुओं घर में लाना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों को समाज-संगठन से जुड़ना ही चाहिए क्योंकि घर परिवार के प्रत्येक व्यक्ति में सामाजिक जागरुकता नितान्त आवश्यक है।
युवा वर्ग में सामाजिक जागरूकता लाना सरल है और आवश्यक भी - चौदह से पैतीस वर्ष की आयु वालों को युवा मानकर प्रत्येक लड़का, लड़की में समाज चेतना या सामाजिकता लाने का क्रमबद्ध आन्दोलन हर नगर गांव में चलना ही चाहिए। विलक्षण प्रतिभा और संस्कारों का धनी व्यक्ति तो हर उम्र में युवा ही होता है और वह हर क्षण श्रेष्ठ, सार्थक जीवन जीने के लिये प्रयत्नशील रहता है। फिर भी युवा वर्ग का सामाजिक वर्गीकरण किया ही जाना चाहिए।
सामाजिक जागरूकता के कुछ उपाय - स्थानीय, प्रान्तीय या राष्ट्रीय स्तर पर जो भी थोड़े से संस्कारवान समाज सेवी, लेखक, विद्वान या राजनेता हैं, वे सामाजिक कार्यों, लेखनी, प्रवचन, भाषण द्वारा युवा वर्ग में सामाजिक चेतना लाने के लिये पंचवर्षीय योजना बना कर पूर्ण निष्ठा पूर्वक निःस्वार्थ भाव से परस्पर तालमेल के साथ कार्य करें।
2. स्वार्थ, भ्रष्टाचार और हिंसात्मक राजनीति युवा वर्ग को की बजाय संगठन भावना, लोकोपकार भावना, समता-सहकार और सामूहिक प्रगति को महत्व देने के संस्कार युवा वर्ग में प्रत्यारोपित किये जायें तो युवा में सहज ही स्वस्थ राजनैतिक चेतना आयेगी जिससे समाज और देश दोनों का सच्चा विकास संभव होगा।
3. देश में विभिन्न भाषाओं में छपने वाली व्यक्तिगत और संस्थागत पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से युवा वर्ग में सामाजिक जागरूकता लाने का प्रभावशाली आन्दोलन चलना चाहिए। समाज चेतना लाने का महत्वपूर्ण कार्य पत्र-पत्रिकाओं का उद्देश्य होना चाहिए।
4. स्वजातीय राजनेताओं का नैतिक कर्तव्य है कि वे समाज द्वारा प्रदत्त मान-पत्रों, थैलियों, स्वागत सत्कारों के चमम-दमक समारोहों से ऊपर उठकर समाज द्वारा बनाई जाने वाली महापुरूषों की जयन्तियों, सामूहिक-विवाह सम्मेलनों अथवा सामाजिक कल्याणकारी कार्यक्रमों में भाग लेकर युवा वर्ग में समाज चेतना के सुसस्कार, समाजोत्थान की भावना और संगठन के विचार देने का ठोस कार्य करें।
5.लाखों की तादाद में हमारा शिक्षित समुदाय है। वह यदि समाज व विकास की भावना से आन्दोलित होकर समाज सुधार का बीड़ा उठाये और अपनी कलम से युवा में सामाजिक चेतना, प्रगति के लिये सामाजिक लेखन द्वारा पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से तथा ग्राम, शहरों में कैम्प लगा कर या संगोष्ठियाँ लेकर आगे आये तो युवा हमेशा के लिये समाज चेतना के संस्कारों से पूर्ण हो जायेगा।
6. हमारे समाज के कवि, लेखक, विद्वान युवा वर्ग में समाज चेतना लाने की महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। समाज की सैकड़ों पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से रचनायें लिखकर समाज चेतना की मशाल जला सकते हैं। समाज उनका इस कार्य के लिये हमेशा ऋणी रहेगा।