महासमुंद जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर स्थित है गांव गुनगासेर । यह वही ऐतिहासिक गांव है, जहां 15 मई 1975 को साहू समाज के मुखिया और ग्रामीणों ने मिलकर एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया, जो इतिहास के पन्नों में आना गौरवशाली बन चुका है। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि सन् पचहत्तर में क्षेत्र में भीषण अकाल की स्थिति थी। किसान दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे थे। ऐसे में विवाह योग्य बेटे-बेटियों का हाथ पीला करना किसी चुनौती से कम नहीं थी। तब सुशिक्षित और चिंतनशील साह समाज के तत्कालीन मुखिया लोगों ने ग्राम भीखापाली (तेंदूकोना) में सामाजिक सम्मेलन कर सामूहिक आदर्श विवाह आयोजन का प्रस्ताव रखा। मुनगासेर में सामूहिक आदर्श विवाह का आयोजन करने का प्रस्ताव इस सम्मेलन में सर्वसम्मति से पारित हुआ। तब यह अविभाजित मध्यप्रदेश राज्य के रायपुर जिले के दूरस्थ अंचल का एक छोटा सा गांव था। यहां हजारों लोगों के लिए भोजन और आवास की व्यवस्था करना और सामूहिक आदर्श विवाह का आयोजन किसी चुनौती से कम नहीं था। साहू समाज के तत्कालीन जुझारू और कर्मठ पदाधिकारियों ने इस चुनौती को स्वीकार किया और शांतिकुंज हरिद्वार तथा गायत्री परिवार के संयोजन में वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच 27 जोड़ों (54 युवकयुवतियों) ने आदर्श विवाह कर दाम्पत्य जीवन में प्रवेश करने के लिए अपनी सहमति दी।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व गायत्री परिवार के तत्कालीन कर्मठ कार्यकर्ता पं ज्वालाप्रसाद शर्मा और गायत्री परिवार बागबाहरा के नरेन्द्र दुबे को इस सामूहिक आदर्श विवाह को संपन्न कराने आचार्य की जिम्मेदारी साहू समाज के कर्ता-धर्ता मुखिया लोगों ने सौंपी। वैदिक संस्कृति और छत्तीसगढ़ी वैवाहिक परंपराओं के मेलजोल से संभवत: भारतवर्ष में पहली बार सामूहिक आदर्श विवाह का आयोजन 15 मई 1975 को मुनगासेर (बागबाहरा) में आयोजित हुआ। जो न केवल आसपास बल्कि, पड़ोसी राज्य उड़िसा, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश में भी कौतुहल का विषय रहा। इन राज्यों से बड़ी संख्या में तैलीय वंश के अलावा अन्य समाज के लोग आदर्श विवाह देखने मुनगासेर पहुंचे थे। इस विवाह के मूल में दहे प्रथा को खत्म कर एक आदर्श समाज को स्थापना और शादी ब्याह में होने वाली फिजुलखर्ची पर रोक लगाना था। यह किसी समाज द्वारा किया गया अद्वितीय प्रयोग था। जिसका रेडियो प्रसारण बीबीसी लंदन से किया गया और तत्कालीन इससे समाज का गौरव बढ़ा। कालांतर में इस आदर्श विवाह का समुचित प्रचार-प्रसार नहीं होने पाने और नई पीढ़ी द्वारा इसे आत्मसात नहीं करने से यह आदर्श सोच और सामूहिक विवाह केवल इतिहास बनकर रह गया। इस बीच वर्ष 2000 में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना होने और मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत सामूहिक आदर्श विवाह को बढ़ावा देने तथा गरीब बेटियों के हाथ पीले करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा अनुदान दिए जाने से सामूहिक आदर्श विवाह की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है।