साहू समाज का इतिहास अतिगौरवशाली रहा है। देश के स्वतत्रता आन्दोलन से लेकर स्वतत्रंता उपरान्त भी देश के विकास, निर्माण एवं दिशा देने में इस समाज का सराहनीय योगदान रहा है। उदाहरण के तौर पर यह बताना आवश्यक है कि भारत के प्रथम स्वतत्रता संग्राम में अन्य जाने - अनजाने विभूतियों के साथ ननुआ तेली का सक्रीय योगदान रहा जिन्हे 08 दिसम्बर, 1857 में अंग्रेजों ने प्राण दण्ड दिया। 13 दिसम्बर, 1919 के जलियावालाबाग कांड में 23 वर्षीय स्व० श्री खैरदीन तेली को अंग्रेजों ने गोलियों से भून डाला। चौरी-चौरा काण्ड के अमर शहीदों में भगवानदीन तेली का नाम प्रमुख था। इन्ही अविस्मरणीय विभूतियों में गाजिन भक्तिन तेली, भक्त माँ कर्मा बाई, धर्मगुरू गोरखनाथ, जगन्नाथ महाराज, दानवीर भ्रामा शाह, शाहू जी महाराज, संताजी जगनाडे महाराज, ज्ञानवीर तुलाधार, संत मोदी बाबा, स्वामी चरणदास, जोगी परमानन्द, सोमैया जैन, संत टुकडोजी महाराज, रणवीर हेमचन्द्र साहू (हेमू) एवं दुर्गादास राठोर, सती बिहुला, देवी कन्नडी, राष्ट्रपिता महात्मा गाधी एवं स्व० दीनबन्धु साहू तथा स्व० श्रीमती केसर बाई क्षीर सागर पूर्व अध्यक्ष आदि बहुत से नाम प्रमुख है। फिर भी देश की वर्ण व्यवस्था एवं सामन्तवादी विचारधारा वालों ने साहू समाज के लोगों को पद दलित कर इस प्रकार रखा कि वे सिर न उठा सके। इतना ही नही इन्हें विभिन्न प्रकार से बहुत अपमानित भी किया, जिसका जीता जागता उदाहरण यह किम्बदंती है कि. “कहा राजा भोज कहा भोजआ तेली। यही नही लोग यहां तक कहते रहे कि यदि सुबह तेली का मुह दिख जाता है तो दिन भर खाना नही मिलता है। जैसे-जैसे विकास हुआ और समाज में जागृति आयी लोगों में अपमान न सहन करने की ज्वाला भड़की और लोगों के मन में यह भाव आया कि आपस में सुसंठित होकर प्रत्येक क्षेत्र में चौमुखी विकास करना चाहिए। अन्ततः यह सपना साकार हुआ और हमारे पूर्वजों ने अपना खून पसीना बहाकर सन् 1912 में अखिल भारतीय तैलिक साहू महासभा का गठन किया। महासभा में 1912 से 1994 तक काफी कार्य किये गये और 742 से अधिक शाखा के लोग एकत्र हुए, लेकिन समाज के कुछ स्वार्थी तत्वों ने अपने अहम के कारण समाज को संगठित न कर विगठित कर दिया और लोग अपनी-अपनी ढपली और अपनी-अपनी राग अलाप कर समाज को अलग-अलग गुटों में विभाजित कर दिया। साथ ही समाज से चन्दे के रूप में धन प्राप्त कर एवं जन शक्ति का दुरूप्रयोग कर रहे है। वर्तमान में राष्ट्रीय स्तर की पांच महासभायें चल रही है जिनका आपस में कोई तालमेल नही है। एक मात्र शीर्ष महासभा को छोडकर सभी संस्थाओं में परिवारवाद, भाई-भतीजावाद व्याप्त होने के कारण एवं नियमित कार्यवाही न होने के कारण संस्थायें मृतप्राय हो गयी है। वर्तमान में समाज में एक जुटता न होने के कारण कोई भी राजनैतिक दल चुनाव में टिकट देने एवं संगठन में रखने हेतु घास नही डाल रहा है। फल स्वरूप जो लाभ समाज को मिलना चाहिए वह नही मिल पाया। समाज के सभी संस्थाओं के राष्ट्रीय पदाधिकारियों से अपील है कि अपने अहम एवं व्यक्तिगत स्वार्थ को त्याग कर पहले की तरह अपने शीर्ष संस्था अखिल भारतीय तैलिक साहू महासभा में विलय कर ले एवं संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए समय-समय पर विराट सम्मेलन, अधिवेशन, रैलियां, धरना प्रदर्शन कर अपने समाज के संगठित शवित का प्रदर्शन करें जिससे विभिन्न पार्टियों को एहसास हो की पूरे भारत वर्ष में हमारी आबादी लगभग 12 करोड़ है जो संगठित है और निर्णय ले कि जो पार्टी शासन एवं सत्ता में संख्या के अनुसार भागीदारी देगा उसी को हम वोट देंगें अन्यथा विधानसभा, लोकसभा एवं अन्य चुनाव क्षेत्रों के बहुतायत भाग में हमारी संख्या इतनी है कि हम जीत तो नहीं सकते लेकिन दूसरी बडी पार्टियों को हराने की स्थिति में अवश्य है। हमें अपने से कम जनसंख्या वाली जातियों जैसे मुस्लिम, राजभर, भुर्जी, यादव, कुर्मी इत्यादि जातियों से सबक लेना चाहिए जो अपनी संख्या के अनुपात से अधिक शासन एवं सत्ता में भागीदारी रखते है और अपनी संगठन क्षमता के आधार पर अपनी मांगों को शासन से मनवा लेते है।
हमारी शीर्ष महासभा यद्यपि कि सामाजिक है लेकिन समाज को आगे बढाना, उसके चौमुखी विकास करने, शासन एवं सत्ता में संख्या के अनुरूप भागीदारी सुनिश्चत करने के लिये राजनैतिक क्षेत्र में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज के युग में राजनीति ही सत्ता की कुजी है जिसके माध्यम से हम आगे शिखर तक पहुच सकते है। हमें यह भी संकल्प लेना होगा कि अपने समाज का व्यक्ति चाहे जिस पार्टी से चुनाव लड़ रहा हो उसके विरूद्ध समाज के दूसरे व्यक्ति को उस क्षेत्र में चुनाव नही लड़ने देंगें और सभी लोग अन्य जातियों की तरह अपनी जाति के उमीदवारों को वोट देने का संकल्प लें। इसके लिए आवश्यक है कि संस्था में अखिल भारतीय स्तर, प्रदेश स्तर एवं जिला स्तर पर महासभा में ही राजनैतिक प्रकोष्ठ बनाया जाये और उसमें उन्ही व्यक्तियों को रखा जाये जो राजनैतिक क्षेत्र में पहले से कार्य कर रहे हो एवं राजनीति करने के इच्छुक हो। उन्हें यह अधिकार दिया जाये कि समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों में जहां चुनाव होना है उसके काफी पूर्व से ही प्रयास कर राष्ट्रीय अधिवेशन, सम्मेलन, रैलियां, धरना एवं प्रदर्शन कर अपने संगठित शक्ति का एहसास करायें।
किसी भी समाज को आगे बढ़ाने में नवयुवकों का योगदान सराहनीय एवं अग्रणीय रहा है क्योंकि कोई भी क्रान्ति बिना युवा सहयोग के सफल नही होती है। अतएव युवाओं में जोश फूकने एवं क्रान्ति लाने हेतु राष्ट्रीय स्तर, प्रान्त स्तर, एवं जिला स्तर पर शीर्ष संस्था में युवा प्रकोष्ठ का गठन किया जाये और उसका नेतृत्व जुझारू, कर्मठ, साधन सम्पन्न, विकासशील विचारों वाला एवं समय देने वाले युवक को दिया जाये जो प्रत्येक स्तर पर अपनी टीम का गठन बिना किसी भेद-भाव एवं निस्वार्थभाव से करें और हर कुर्बानी देने को तैयार रहे। साथ ही युवा वर्ग को संगठित कर समय-समय पर अधिवेशन, रैली, धरना प्रदर्शन कर अपने समाज के संगठित शक्ति प्रदर्शन करें।
बच्चों, परिवार एवं समाज को सफलता के शीर्ष पर पहुचाने में महिलाओं का विशेष योगदान रहा है क्योंकि महिला एवं पुरूष जीवनरूपी गाड़ी के दो पहियें है और धार्मिक दृष्टिकोण से भी महिलायें अागिनी कहलाती है यही नही भगवान शंकर को भी अर्द्धनारीस्वर कहा गया है। फिर भी समाज पुरूष प्रधान होने के कारण महिलाओं को बाल-बच्चों के पालन-पोषण एवं घर की जिम्मेदारी सौपकर इतिश्रृति कर देता है जबकि अन्य जातियों जैसे ब्राहमण, क्षत्रिय, कायस्थ, यादव, मुस्लिम आदि में महिलायें शासन एवं सत्ता में काफी आगे है। हमारे समाज में महिलायें जागरूक नही है, उनमें हीन भावना व्याप्त है। वे सम्मेलनों, अधिवेशनों, रैलियों, धरने प्रदर्शन में बढ़-चढ़ कर भाग नही लेती है फलस्वरूप सत्ता राजनीति में आरक्षण का लाभ भी उन्हे नही मिल पाता है। समय की पुकार है कि शीर्ष संस्थाओं में महिला प्रकोष्ठ का गठन किया जाये और इसकी जिम्मेदारी पढ़ी-लिखी, साहसी एवं समय देने वाली महिला को सौपी जाये जो विभिन्न क्षेत्रों में महिला सम्मेलन, अधिवेशन, रैली, धरना प्रदर्शन कर अपने संगठन शक्ति का प्रदर्शन कर अपनी मांगों को मनवाने में सफल होकर समाज को आगे बढ़ाने में योगदान देते हुए शासन सत्ता में सहभागिता सुनिश्चत करें। महिलाओं में आज-कल असुरक्षा की भावना ज्यादा पैदा हो गयी है क्योंकि उनके साथ उत्पीड़न, छेड़खानी, लूट-पाट, छिनैती एवं दुराचार की वारदात ज्यादा होने लगी है। इससे निपटने के लिये महिलाओं को प्रेरित करने की आवश्यकता है कि वे समयानुसार लक्ष्मी के साथ दुर्गा का रूप धारण करें और उसके खिलाफ अत्याचार से निपटने का साहस जुटा सके। इसके लिये महिला बिग्रेड भी बनाया जाना चाहिए जो अत्याचार एवं उत्पीड़न के विरूद्ध धरना प्रदर्शन करें।
महान समाज सेवी एवं चिंतक स्व० दीनबन्धु साहू की सोच थी की समाज के प्रबुद्ध वर्ग जैसे डॉक्टर, इन्जीनियर, अधिकारी, प्रोफेशर, प्रबन्धक, वकील एवं अन्य पढ़ा-लिखा वर्ग इत्यादि जो हीन भावना के कारण महासभा के कार्यक्रमों में भाग नही ले पाते एवं इससे जुडना नही चाहते है। उन बुद्धजिवियों के लिये महासभा के अधीन ही स्नेही समाज नामक संस्था (जो आज-कल स्नेही इण्टर नेशलन के नाम से चल रही है) बनाया जाये और ऐसे वर्ग को एक जुट किया जाये जो समाज में परस्पर स्नेह, मधुर सम्बन्ध, सौहार्द, सम्पन्नता एवं राष्ट्रीय एकता जागृत करें एवं “परहित सरिस धर्म नही भाई" के सिद्धान्त पर चले। स्नेही इण्टर नेशलन का कार्य समाज के गरीब एवं निराश्रित लोगों की सेवा कर उनका सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक व नैतिक विकास करना है। इस क्लब के माध्यम से गरीब विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, गरीब महिलाओं को विभिन्न सहायता, निशुल्क मेडिकल कैम्प, नेत्र सिविर, बाढ राहत कार्य में सहयोग संस्था के आर्थिक स्थिति के अनुसार दिया जाना चाहिए। मेरी अपील है कि ऐसे प्रबुद्ध वर्ग जो स्नेही क्लब में है, जो जहा है, जिस पद पर है, वहा रहकर अपने समाज के लोगों की सहायता करें। यद्यपि स्नेही क्लब कुछ प्रान्त एवं कुछ जिलों तक सीमित है अतएव आवश्यकता है कि इसका व्यापक फैलाव किया जाये जिससे सभी जिलों में इसकी शाखा स्थापित की जा सके। जिससे त्वरित गति से सभी जनपदों के गरीबो एवं निराश्रितों की सहायता की जा सके। हमारा समाज आर्थिक, सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से अब काफी आगे बढ़ चुका है लेकिन इच्छा शक्ति का अभाव है। आइये हम सब लोग संकल्प ले कि हमारे समाज का कोई व्यक्ति धनाभाव के कारण भूखा न सोवें, गरीब एवं निर्धन लड़के एवं लड़किया शिक्षा से वंचित न रहे एवं गरीब लड़के एवं लड़कियां शादी से भी वंचित न रह सके। यह समाज की सबसे बडी सेवा है।
हमारे समाज में समय-समय पर लगातार बैठकों का आयोजन, अधिवेशन, सम्मेलन, रैलियां, धरना प्रदर्शन, सम्मान समारोह एवं प्रतिभा सम्मान इत्यादि का आयोजन बहुतायत होता है लेकिन मीडिया के माध्यम से इसका प्रचार-प्रसार नही हो पाता जिससे इसका प्रभाव न तो समाज के लोगों के ऊपर पड़ता है और न ही शासन प्रशासन तथा विभिन्न पार्टियों पर। जिससे जागरूकता में कमी आती है और शासन प्रशासन पर दबाव नही बन पाता। आवश्यकता है एक मीडिया प्रकोष्ठ के गठन की जो समाज के दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को प्रचारित एवं प्रसारित करें। यद्यपि क्षेत्रीय एवं कुछ राष्ट्रीय पत्रिकायें समय-समय पर प्रकाशित होती है लेकिन उनका नियमित मासिक एवं त्रैमासिक प्रकाशन नही हो पाता और उसमें सामाजिक क्रिया कलापों, रचनात्मक लेखों, सामाजिक सूचनाओं और समाज के आगे बढ़ने की रणनीति एवं सुझाव का अभाव रहता है। आवश्यकता है जितने भी क्रिया कलाप हो रहे हो उसके प्रकाशन विभिन्न समाचार पत्रों में कराने की एवं जो पत्रिकायें प्रकाशित होती है उनमें क्षेत्रीय सूचनाओं के साथ-साथ यथा सम्भव सम्पूर्ण भारत के कोने-कोने की सूचनाओं के समाहित करने की।
कोई भी संस्था बिना धन एवं बिना समय दिये सूचारू रूप से नही चलती है अतएव आवश्यकता है संकल्प लेने की कि समाज का प्रत्येक सक्षम व्यक्ति अपने व्यस्ततम समय का कुछ क्षण एवं अपने आय का कुछ अंश समाज को नियमित रूप से दान करें जैसे मुस्लिम समुदाय में प्रत्येक दिन जकात निकालने का प्रचलन है। राजा भ्रतृहरि का कहना है कि धन की तीन गतियां होती है पहला दान देना, दूसरा अपने परिवार, मित्रों एवं समाज पर खर्च कर उसका सदुपयोग करना या तीसरा अपने आप नष्ट हो जाना। जो न तो दान देते है और न ही अपने धन का सदपयोग करते है उनका धन निश्चित ही तीसरे गति को प्राप्त हो जाता है। शास्त्रों में भी लिखा है कि शरीर की शुद्धि सेवा से, मन शुद्धि ध्यान से एवं धन की शुद्धि दान से होती है। अतएव समाज के सभी सक्षम लोगों से अनुरोध है कि अपने समय में से कुछ पल एवं धन क कुछ अंश समाज में नियमित रूप से धन दान करें। जिससे कि समाज का उद्देश्य पूरा हो सके।
अन्त में समाज के सभी बहनो एवं भाईयों से समाजहित में अनुरोध है कि उठिये, जागिये, हीनभावना का परित्याग कीजिये, आलस छोडिये, अपने आपको झकझोरिये और समाज एवं राजनीति के मुख्य धारा से जुडिये। अपने ऊपर विश्वास कीजिए की आप सबल, योग्य, बुद्धिमान, धनवान एवं सक्षम है। आपसी अहम एवं वैमनस्य तथा छोटी-छोटी बातों को भुलाकर एक मात्र शीर्ष संस्था अखिल भारतीय तैलिक साहू महासभा के अन्तर्गत एक झण्डे के नीचे आकर समाज सेवा का व्रत लीजिए और समाज को आगे बढ़ाईये। हम सभी की हार्दिक इच्छा एवं समय की पुकार है कि हम सभी को एक प्लेटफार्म पर आना ही होगा। बिना एक हुए हम संगठित एवं सफल नही हो सकते। तो आइये संकल्प लीजिए कि जितना जल्दी हो सके हम एक प्लेटफार्म पर आ जाये और जो संस्था या व्यक्ति अपने अहम एवं स्वार्थ के कारण इसका विरोध करें उसका बहिष्कार एवं निन्दा की जाये क्योंकि उनके लिये यह पंक्ति उपयुक्त है कि "जो भरा नही है भावों से, बहती जिसमें रसधार नही, वह ह्दय नही है पत्थर है, जिसमें स्वजाति का प्यार नही।"
"जय तेली साहू समाज, जय भारत"