महाभारत के अंदर तेली धर्म नामक तत्व दर्शी का उल्लेख किया गया है उसमें कहा गया है कि जो तेल का व्यवहार करते थे उन्हें तेली नहीं कहा जाता था। बल्कि वैश्य कहा जाता था। इसका मतलब यह है कि तब तक तेली जाति नहीं बने थे। वाल्मीकि ने भी रामकथा के अंदर किसी भी प्रकार से तेली जाति का कोई भी उल्लेख नहीं किया है। पद्म पुराण के उत्तराखंड में विष्णु गुप्त नाम तेल व्यापारी की महानता के बारे में जरूर उल्लेख किया गया है। यानी कि तेली समाज तेली जाति का नामोनिशान यहां से देखने को मिलता है।
ईशा के प्रथम सदी के प्राप्त शिलालेखों के अंदर तेलियों के बारे में कुछ उल्लेख देखने को जरूर मिलते हैं। । इस ईशा के बाद गुप्त वंश का उदय हुआ और इस गुप्त वंश ने करीबन 500 साल तक पूरे भारत को अधिपत्य में रखा है। इस गुप्त वंश के अंदर ही राजा समुद्रगुप्त और हर्षवर्धन के काल को साहित्य कला के विकास के लिए माना गया है। इस वंश या फिर इस काल में ही कई तरह की स्मृतियां और पुराणों की रचना की गई है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि गुप्त वंश ही तेली वंश है। इस तरह का संकेत तिहासकार ओमेली एवं जेम्स ने किया है। इसी काल के अंदर यानि की पांचवी सदी में ही हिंसा न करने पर अधिक जोर दिया गया है। इसके अलावा इसी काल से हल चलाने की प्रक्रिया शुरू हुई। तेल पेरने को हिंसक कार्यवाही इसी काल में माना जाने लगा। जिसकी वजह से वैश्य वर्ण में विभाजन प्रारंभ हुआ।
हल चलाकर तिलहन उत्पन्न करने वाले तेली जाति को स्मृतिकारों ने शुद्र वर्ण कहा। इतना ही नहीं, तिलहन के दाने में जीव होने तथा तेल पेरने कोभी हिंसक कार्यवाही कहा गया। सबसे पहले तेल का उत्पादन गुजरात महाराष्ट्र राजस्थान जैसे क्षेत्रों में ज्यादा हुआ करता था। जहाँ पर लोगों को घांची के नाम से जाना जाने लगा। कुछ लोगों ने घानी उद्योग को बंद करने की साजिश भी की और जिन लोगों ने इस घानी उद्योग को बचाने के लिए शस्त्र उठाया उनको घांची छत्रिय के नाम से बुलाया जाने लगा।
जिन्होंने केवल तेल व्यवसाय किया वे तेली वैश्य, तथा जिन्होंने सुगंधित तल का व्यापार किया वे मोढ बनिया कहलाये। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पूर्वज मोढ बनिया थे। जिन्होंने हल चलाकर तिलहन उत्पादन किया। तेली जाती की उत्पत्ति का वर्णन विष्णुधर्म सूत्र, वैखानस स्मार्तसूत्र, शंख एवं सुमंतू मै है।