93 वर्ष पूर्व 1930 में यही सितंबर माह था जब छत्तीसगढ़ के नवयुवा युुवती और ग्रामीणों में देश प्रेम का भाव उफान पर था। सत्याग्रहियों ने अंग्रेजी शासन की नीति का पुरजोर विरोध करने कमर कस लिए थे। धमतरी के लमकेनी गांव के युवा मिंंधु कुम्हार और रतनु यादव (11 सितंबर 1930) राजनांदगांव बदराटोला गांव के युवा रामाधीन गोंड (21 जनवरी 1939) ऐसे ही सत्याग्रही थे जिनके साहस को फिरंगियों की गोलियां भी नहीं डीगा पाए। ये सभी शौर्य के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए।
25 सितंबर 1930 को वीरगति को प्राप्त हुए तत्कालीन महासमुंद तहसील के कौड़िया ग्राम के लक्ष्मीनारायण तेली जो हाथ में तिरंगा झंडा लेकर भारत मां की जयकारे करते हुए आगे बढ़ रहे थे। फिरंगी पुलिस को उनका यह साहस सहन नहीं हुआ और लाठियों से बेदम पिटाई की जिससे लक्ष्मीनारायण वही शहीद हो गए। मगर हाथ में राष्ट्रध्वज को थामा ही रहा। इनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया और छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में देश प्रेम की अलख जगा गए जिससे अंग्रेजी शासन के प्रति विरोध उग्र होता चला गया।
तिल्दा के युवा चित्रकार धनेश साहू जी ने हमारे अनुरोध पर लक्ष्मीनारायण तेली के बलिदानी गाथा को अपने कला के माध्यम से उकेरने का सफल प्रयास किया जिसके लिए हम उनका आभारी हैं।
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