विन्ध उपत्यकाओं से लेकर हिंन्द महासगर तक विस्तृत फैला भू-भाग दक्षिण भारत कहलाता है । इसी विशाल भू-भाग में तैलप क्षत्रियो (तेलियों) का साम्राज्य फैला हुवा था । दक्षिण भार के निवासियो के जीवन मे वहॉ की नदियों का गहरा प्रभाव पडा है । वहाँ की प्रमुख नदिया - नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, तुंगभद्रा तथा कावेरी है । इन नदियो को सम्पूर्ण भारतवासी पवित्र मानत है । इनकी गणना गंगा, यमुना सरस्वती तथा सिंध के साथ करते हुए स्नान के सय इनके आवाहन का विधान धर्म ग्रप्थो में बताया गया है । उक्षिण भारत में अनेक तीर्थस्थल ीी है जिसस यहां का महत्व और बढ गया है । दक्षिण भारत मं अनेक तीर्थस्थल भी है जिसस यहां का ूहत्व और बड जाता है । दक्षिण भारत में यहाँ पर कई भाषायों का प्रयोग होत है । यथा - आंन्ध्र प्रदेश मे तेलगू तथा तमिलनाडु में तमिल, केरल में मलयालम एवं कर्नाटक में कन्नड भाषायों का प्रयोग होता है । इन भाषायों से सम्बद्ध कुछ अन्य बोलियों जैंसे - कोडगु, कुई, ओरनगोन्डी आदि का भी द्रविड क्षेत्र में प्रचलन था । दक्षिण भारत मे आनेों राजवंशों ने राज्य किया - यथा चालुक्य, राजकुट, पल्लव एवं चोल के शासनकाल मे रचित कुछ कृतिया तत्कालिन जनजीवन पर गहरा प्रकाश डालती है । बिल्हण द्वारा रचित विक्रमांकदेवचरित से कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य षष्ट के जीवन चरित से कल्याणी के चालुक्य शासक विक्रमादित्य षष्ट के जीवन चरित तथा उसके समय की घटनाओं पर प्रकाश पडता है । इसके अतिरिक्त इस वंश के जायो तथा उनके सामन्तों के कन्नड भाषा के लखों से तत्कालीन इतिहास से ज्ञात होता है । इन साक्ष्यों में उन्हें पातापी के चालुक्यों का वशंज तथा आयोध्या का मूलवासी बताया गया है । 59 चालुकय राजाओं ने अयोध्या मे राज्य किया, फिर वे दक्षिण चले गये । विक्रमाकदेवचरित में कहा गया है की पृथ्वी से नास्तिकता को समाप्त करने के लिए ब्रह्मा को ही चालुक्यों का आदि पूर्वज वंश के साथ स्थापित करते हुए इसे विक्रमादित्य द्वितीय के छोटे भाई, जिसका नाम अज्ञात है किन्तु जिसकी उपाधि भीम पराक्रम की थी का वयंज बताया गया है ।
कल्याणी केचालुक्यों का स्वतंत्र राजनैतिक इतिहास तैल अथवा तैलजप द्वितीय (973-997 ई.) के समय सेप्रारभ्भ हाता है । उसके पर्व हमें कीर्तिवर्मा तृतीय, तैल प्रथम के नाम लिते है । इनमे तैलप प्रथ तथा विक्रमादित्य चतुर्थी के विय में भाी हमें यह जानकारी प्राप्त होतीहै, ये भी राष्ट्र कुट नरेश लक्ष्मणसेन की कन्य बोन्थादेव्री के साथ सम्पन्न हुआ और इसी से तैलव द्वितीय का जन्म हुआ । नीलकण्ठ शास्त्री अनुसार ये सभी शासक ीजापुर तथा उसकें समीपवर्ती क्षेत्र में शासन करते थें जो इस वंश की मुल राजधानी के पास में था ।
जैसा कि विदित है किकल्याणी के चालुक्य वंश को स्वतंत्रता का जन्मदाता तैलप द्वितय था । वह विक्रमादित्य चतुर्थ तथा बोन्थादेव से उत्पन्न हुआ था । वह विक्रमादित्य चतुर्थ तथा बोन्थादेवी से उत्पन्न हुआ था । पहले वह राष्ट्रकुट शासक कृष्ण तृतीय की आधीनता में बीजापुर में शासन कर रहा था । धीरे - धीरे उसने अपनी शक्ति का और अधिक विस्तार करना प्रारभ्भ किा । कृष्ण तृतीय के उत्तराधिकारियों खोट्टिग तथा कर्क द्वितीय कं समय मे राष्ट्रकुट वंश की स्थिती अत्यन्त निर्बल पड गई । महत्वाकांक्षी तैलप नरेशों ने इसका लाभ उठाया और 973-74 ई. में उन्होंने राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्खेत पर आक्रमण कर दिया । युद्ध में कर्क मारा गया तथा राष्ट्रकूट राज्य पर तैलप का बधिपत्य हो गया । उनकी इस सफलता का उल्लेख खारेपाटन अभिलेख में मिलता है । सके बाद तैलप ने राष्ट्रकुट सामन्तो को आपने - अधीन करने के लिए अभियान चलाया । शिमोगा (कर्नाटक) जिले के सोराब तालुका के सामन्त शान्तिवर्मा, जो पहले राष्ट्रकुट नरेश कर्क के अधीन था, उसने तैलप की आधीता स्वीकार की । गंग सामन्त पांचलदेव की युद्ध मे उसने हत्या कर दी । इस यद्ध में उसे बेलारी के सामन्त भूतिगदेव से सहाय्यता मिली थी । अत: प्रसन्न होकर तैलप ने भुतिगदेव को आहवमल्ल की उपाधि प्रदार किया । वेलारी लेखों से नेलब पल्लव के उपर उसका पूर्ण धिकार प्रमाणित होता है । वनवासी क्षेत्र में सर्वप्रथम कन्नप तथा रि उसके भाई सोभन रस ने तैलप की अधीनता स्वीकार की । बेलगांव जिले में सान्दत्ति के रट्ट भी उसके आधीन हो गये । उसने दक्षण कोंकण प्रदेश की भी विय की । यहाँ शिलाहर वंश का शासन था । दक्षि कोकण के अवसर तृतीय अथवा उसके पुत्र रट्ट को तैलप ने अपने अधीन कर लिया । सेउण के याउव वं शासक भिल्लभ द्वितीय ने भी तैलप क पभु सत्ता स्वीकार की । उसके सेनापती वारप ने लाट प्रदेश को जीता । इस प्रकार तैलप ने गुजरात के अतिरिक्त शेक्ष सभी भागों पर आपना अधिकार जमा लिया जो पहले राष्ट्रकुटों के स्वामित्व में थे ।
चोलो के बाद तैलप नरेश का मालवा के परमार वंश के साथ संघर्ष हुआ । उसका समकालीन परमार शासक मुंज था । इस संघर्ष का उल्लेख अनेक ग्रन्थों, साहित्य तथा अभिलेखों में मिलता है । मेरूतुंग प्रबंन्धचिन्तामणि से ज्ञात होता है कि तैलप ने मंज के उपर छ: बार आक्रमण किया, किन्तु प्रत्येक बार पराजित हुआ । अन्तंत: मंज ने एक सेना के साथ गोदावरी नदी पार कर तैलप के उपर आक्रमण किया । जब उसे मंत्री रूद्रादित्य को इसके विषय मे पता चला तो उसने आग में कूद कर आत्महात्या कर लिया, क्योंकि उसने मंज को गोदावरी पार न करने की सलाह दे रखी थाी । इस बार मुंज पराजित हुआ तथा बंन्दी बना लिया गया । गताया गया है कि कारागार में उसकी निगरानी के लिये तैलप की अधेड उम्र की विधवा मृणालवती को रखा गया था । मुुंज उससे प्रेम करने लगा था । उसने कारागार से निकल कर भागने की गुप्त योजना तैयार की और इसे म1णालवती को बता दिया । किन्तु उसने मुंज के साथ छल किया तथा उसकी योजना का रहस्योदघाटन कर दिया । फलस्वरूप मंज को कारागार में कठोर यातनायें देने के पश्चात तैने उसका सिर काट दिया । कैथोम ताम्रपत्रों में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है । इनके अनुसार तैलप ने उत्पन्न (मुंज) को जिसने हूणों मरावें तथा चेदियों के विरूद्ध सफलत प्राप्त की थाी, बन्दी बना लिया था । गडग लेख से सूचना मिलती है कि तैल ने वीर मंज को तलवार से मौत के घाट उतार दिया था । इसी प्रकार भिल्लम द्वितीय के सामगनेर दानपत्र से पता चलता है कि उसने तैलप की ओर से मुंज के विरूद्ध युद्ध किया था । इसके अनुसार भिल्लम ने युद्ध क्षेत्र मे लक्ष्मी को प्रताडित किया क्योंकि उसने महाराज मुंज का साथ दिया तथा उसे रणरंगभीम की साध्वी पत्नी बनने पर मजबुर किया । यहाँ रणरंगभीम, आहवमल्ल का समानार्थी है जो तैलप दिव्तीय का ही नाम था । इन विवरणों से स्पष्ट हो जाता है कि तैलप ने युद्ध क्षेत्र मे परमार नरेश मुंज को पराजित कर उसकी हत्या कर दी ।
अनेक इतिहासकारों ने तैंलप राजवंश का प्रारंभ्भ कल्याणाी के चालुक्यों की शाखा से माना है । कल्याणी के चालुक्य शासकों - जयसिंह, जगदेकमल्ल, सामेश्वर प्रथम तथा तैलप तृतीय के स्वर्ण सिक्कों में उनके का की आर्थिक समृद्धि की सुचना मिलती है ।
कल्याणी के चालुक्यों का इतिहास साहित्यीक साक्ष्यों में विल्हण कें विक्रमांकदेव चरित, सोमेश्वरकृत मानसोल्लास, अभिदिशिलातिंचितामणि, विद्यमाधव - कृत पार्वती रूक्मिणीम एवं पुरातात्वकि साक्ष्यों में तैलप का सोंगल, अभिलेखसत्याश्रय का दोत्तूर अभिलेख, विक्रमादित्य द्वितीय का कौथम पत्र, मिराज पत्र, सोमेश्वर का सूदी अभिलेख, सोमेश्वर द्वितीय का गवरवाड अभिलेख सोमेश्वर तृतीय का सिकारपूर लेख, सोमेश्वर चतुर्थी का गुरगूड अभिलेख आदि से ज्ञात होता है ।
दक्षिण भारत के इतिहास नामक पुस्तक के आधार पर कल्याणी के चालुक्य (तैलप) राजवंश का वंश वृक्ष इस प्रकार है -
Western Chalukya (973-1200) | |
Tailapa II | (957 - 997) |
Satyashraya | (997 - 1008) |
Vikramaditya V | (1008 - 1015) |
Jayasimha II | (1015 - 1042) |
Someshvara I | (1042 - 1068) |
Someshvara II | (1068 -1076) |
Vikramaditya VI | (1076 - 1126) |
Someshvara III | (1126 – 1138) |
Jagadhekamalla II | (1138 – 1151) |
Tailapa III | (1151 - 1164) |
Jagadhekamalla III | (1163 – 1183) |
Someshvara IV | (1184 – 1200) |