गुरू परमानंद के आदेश पर जिलास्तर में साहू समाज को संगठित कर सही दिशा में चलाने के संकल्प के साथ सक्रिय हुए। श्री साव की सक्रियता के कारण सन् 1974 में आरंग के अधिवेशन में उन्हें निर्विरोध जिला अध्यक्ष चुना गया। समाजवादी विचारधारा के अनुरूप श्री साव ने रीति-रिवाजों में बदलाव के अनेक सुझाव प्रस्तुत किये जिसे समाज ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। इनमें सबसे महत्वपूर्ण 'आदर्श सामूहिक विवाह'। श्री साव के इस अभिनव प्रयोग को ग्राम मुनगासेर में अक्षय तृतीया के दिन 15 मई 1975 को भव्य समारोह आयोजित करने का निर्णय लिया गया। दुर्भाग्य से इस अभिनव कार्यक्रम के प्रणेता श्री जीवन लाल साव निर्धारित तिथि 15 मई 1975 के पूर्व मीसा । कानून के अंतर्गत जेल में बंद थे। श्री साव की अनुपस्थिति में उनके साथियों ने कार्यक्रम संपन्न कराया। जिसमें हजारों की संख्या में स्त्री-पुरूष, वर्ण-योनि के कटघरे को लांघकर सामूहिक विवाह एवं भोज में शामिल हुए समय के साथ श्री जीवन लाल साव के इस अभिनव प्रयोग का प्रभाव दिखने लगा। संपूर्ण छत्तीसगढ़ में साहू समाज द्वारा सामहिक आदर्श कार्यक्रम का आयोजन सफलता के साथ किया जा रहा हैं। राजनीतिक संघर्षों से समाज को बदलने के कार्य के साथ-साथ सामाजिक संगठनों के माध्यम से भी व्यवस्था परिवर्तन के लिए सक्रिक्ष्य भूमिका निभाते रहे हैं।
समाजवादी चिंतक श्री जीवन लाल साव का जन्म दिनॉक 21 अप्रैल 1927 को महासमुन्द जिला के पिथौरा से 16 किमी. दूरी पर स्थित गॉव बिराजपाली में स्व. श्री पल्टू राम साव व स्व. श्रीमति कुलवंतीन बाई के ग्यारहवें संतान के रूप में हुआ। कक्षा चौंथी में होने वाले प्राथमिक प्रमाण पत्र परीक्षा में पूरे रायपुर जिले से प्रथम स्थान प्राप्त कर पूरे क्षेत्र का मान बढ़या था। पिता की इच्छा के अनुसार उच्च शिक्षा के लिए छत्तीसगढ़ महाविद्यालय रायपुर में लेकर बी.ए. एवं एल.एल.बी की उपाधि प्राप्त की। महाविद्यालयीन शिक्षा के दौरान श्री जीवन लाल साव प्रोफेसर जयनारायण पाण्डे से डॉ. राममनोहर लोहिया के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को समझे और उनके समर्थक ठाकुर प्यारेलाल सिंह, डॉ. खूबचंद बघेल जैसे प्रखर सेनानियों के संपर्क में आये। जिनके प्रेरणा से सन् 1948 से 1955 के मध्य असंगठित तेंदूपत्ता मजदूरों को संगठित कर ठेकेदारी प्रथा के विरूद्ध आंदोलन चलाया। इस दौरान डॉ. राम मनोहर लोहिया एवं श्री जय प्रकाश नारायण द्वारा स्थापित सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय रहे।
कालांतर में पी.एस.पी. विभाजित हो गयी और डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी गठित हुई, जिसमें छत्तीसगढ़ के सभी प्रमुख समाजवादी नेता शामिल हुए। सन् 1966 में 26, 27 एवं 28 फरवरी को महासमुन्द में इस नई पार्टी का अधिवेशन हुआ, जिसके व्यवस्था की जिम्मेदारी श्री जीवन लाल साव को दी गई थीं। डॉ. राममनोहर लोहिया भी इस अधिवेशन में शामिल होने महासमुंद पधारे थे। लम्बे आंदोलन ने श्री जीवन लाल साव को प्रभावशाली वक्ता, कुशल संगठक तो बना दिया था, सन् 1965 से 75 तक महासमुंद तहसील समाजवादी आंदोलन का केन्द्र बन गया था।
सन 1972 के विधानसभा चुनाव में श्री जीवन लाल साव को पिथौरा से सं.सोपा, से प्रत्याशी बनाया गया जिसमें जमींदार श्री भानु प्रताप सिंह से चुनाव में हार मिली। इस मिली पराजय से वे डॉ. राममनोहर लोहिया के सबसे लोकप्रिय नारा ''सं.सो.पा. ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साद'' को असफल होते देखा।
जीवन लाल साव को 25 वर्षों के संघर्षपूर्ण जीवन की समीक्षा करने का अवसर मिला। वे डॉ. राममनोहर लोहिया के कट्टर अनुयायी थे, किन्तु उनके आंदोलनों में जातिवादी तत्वों की घुसपैठ हो चुकी थी। इस परिस्थिति में रास्ता बदलने का निर्णय लिया। 09 सितम्बर 1975 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री प्रकाशचंद्र सेठी के समक्ष आत्म-समर्पण कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली।
आपातकाल के बाद हुए विधानसभा चुनाव में श्री साव को महासमुंद से प्रत्याशी बना गया जिसमें उनको पराजय मिली। सन् 1980 में कांग्रेस के कार्यकाल में राज्य स्तरीय 20 सूत्रीय कार्यक्रम क्रियान्वन समिति में सदस्य तथा सड़क परिवहन प्राधिकरण का सदस्य नियुक्त किया। 1983 में म.प्र. लोक सेवा आयोग के सदस्य बने। श्री जीवन लाल साव को श्री अर्जुन सिंह से संबंधों के कारण पर्याप्त सम्मान मिला। जीवन लाल साव ने सेवा निवृत्ति के पूर्व ही लोक सेवा आयोग की सदस्यता त्याग कर पुनः राजनीति में सक्रिय हो गये। उन्हें राज्य स्तरीय लघु वनोपज व्यापार सलाहकार समिति का प्रांतीय उपाध्यक्ष बनाया गया। अपने अनुभवों का उपयोग वनोपज नीति बनाने में लगाया, जो तेंदूपत्ता नीति के रूप में जाना जाता हैं।