Sant Santaji Maharaj Jagnade
महासमुंद - मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ एक गरीब पिछडा प्रदेश है । इसके बावजूद हम तरक्की की राह पर बहुत तेजी से बढे हैं । किसान, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं और समाज के हर र्ग के सहयोग और योदगदान से हम चार गुनी रफ्तार से विकास कर रहे हैं ।
मुख्यमंत्री डॉ. सिंह यहां रविवार को साहू समाज द्वारा आयोजित युवक - युवती परिचय सम्मलेन और सामूहिक आदर्श विवाह, समारोह में बोल रहे थे ।
उड़ीसा राज्य के अंगुल जिला के पंमहला गांव के किसान मजदूर पविार में नेपालचंद साहू का जन्म मई 1926 में हुआ ये कृषि मजदूरी एवं भेडबकरी चराने का भी काम करते थै ।वे गिरी शिखर जंगल में प्रतिदिन जाया करते थे । बारह वर्ष की उम्र में वहां जनावर चराते हुए एक बार उसे जोर से बुखार आ गया । इसी मध्य एक श्वेतवस्त्र धारी बुढे बाबा ने कहा कि मेरे साथ आओं में तुम्हे वह वृक्ष दिखाता हूं जिसकी पत्ती को तुम जिस पिडित व्यक्ति को दे दोगे उसके सेन से उसकी सभी प्रकार की बिमारी दुर हो जायगे । तब से किसी भी रोग से ग्रसित व्यक्ति को वही पूर्ण देता, पिलाता पे रोगमुक्त होने लगे ।
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अखिल भारतीय तैलिक साहू महासभा की स्थापना 24 दिसम्बर 1912 को बनारस में हुई तथा प्रतिवर्ष बैठक होती रही । राष्ट्रीयता की भावना एवं राष्ट्रीय नेताओं के सम्यक मार्ग दर्शन से प्रेरित विभिन्न जातियों भी अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए प्रयत्नशील ही । छत्तीसगढ में भी साहू समाज से राष्ट्रीयता की मुख्य धारा में भी साहू समाज से राष्ट्रीयता की मुख्य धरा में जुडने के लिए उत्साहित रहा । इसी पप्रिेक्ष्य में संपूर्ण छत्तीसगढ में वृहत स्तर पर सर्वप्रथम 1912 में गोकुलपुर बगीचा धर्मतरी में श्री जगतराम देवान की प्ररेणा से अधिवेशन हुआ ।
कोलकाता - अखिल भारतीय तैलिक साहू महासभा के राष्ट्रिय महामंत्री रजनीश गुप्ता और महेश साहू दिल्ली से आए थे । इन लोगों की उपस्थिति में उदय साव को पश्चिम बंगाल तैलिक साहू सभा (युवा प्रकोष्ठ) का अध्यक्ष, सुधीर गुप्ता को महामंत्री और अनिल जी को कोषाध्यक्ष के रूप में मनोनित किया गया ।
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चोलवंशी शासन काल में तमिलनाडू राज्य में नवयुवक कोवालन ने अप्सरा के समान सुन्दरी कण्णगी से शादी की थी । यह सुखी एवं वैभवपुर्ण व्यापारिक तेली परिवार था । इसी मध्य कोवालन राजनर्तकी माधवी पर मोहित हो गया और अपना सभी धन संपत्ती न्यौछावर किया । मोहपास भंग होने पर पुन: कण्णगी के पास आया । पारिवारिक व्यवस्था के लिए रत्नजडित पायल बेचते समय चोरी का मिथ्या लाछन लगाकर राजज्ञा से धड अलग कया गया ।