साहू समाज द्वारा निर्मित कर्मा माता मंदिर स्थापना के 21वीं वर्षगांठ के शुभ अवसर पर साहू समाज पोंड़ तथा संयोजक ब्रह्मानंद साहू द्वारा मनाया गया जिसमे मुख्य अतिथि श्री ताम्रध्वज साहू जी (गृहमंत्री छत्तीसगढ़ शासन),अध्यक्षता श्री धनेंद्र साहू जी (विधायकअभनपुर),अति विशिष्ट अतिथि डॉ ममता साहू जी (राष्ट्रीय महिला अध्यक्ष), विशिष्ट अतिथि श्री चंद्रशेखर साहू जी, श्री देवनाथ साहू, श्री भेखराम साहू, श्री कुंदन बघेलजी, श्री मेघनाथ साहू, श्री परदेशीराम साहू,चंद्रकला ध्रुव, श्रीमति देवनंदिनी साहू, श्री ओमप्रकाश साहू, डॉ उत्तम साहू सभी का बहुत बड़ा योगदान रहा..
नगर पालिका केकड़ी के नवनियुक्त अध्यक्ष कमलेश साहू ने कहा कि समाज के उत्थान व विकास को लेकर कोई कमी नहीं रहेगी। समाज को आगे बढ़ाने में कोई कसर रही रहेगी। अध्यक्ष साहू शनिवार रात सावर में साहू तेलियान समाज की ओर से आयोजित अभिनन्दन कार्यक्रम में बोल रहे थे।
तेली समाजामध्ये खान्देशात सामाजिक सेवा देणारे विविध क्षेत्रातील मान्यवरांचा लवकरच " समाज सारथी " पुरस्कार देऊन सन्मान करण्यात येणार आहे. लवकरच या शानदार सोहळ्याचे आयोजन करण्यात येईल. समाजाच्या तळागाळापर्यंत सामाजिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक क्षेत्रात योगदान देणाऱ्या सामाजिक कार्यकर्त्यांचा यामध्ये " समाज सारथी " पुरस्कार देऊन गौरव करण्यात येईल
संताजी ब्रिगेट तेली समाज महासभा चा वतीने मुख्य जिल्हाध्यक्ष सौ.कविता ताई ठाकरे यांच्या भंडारा जिल्हा निवास्थानी समाजातील ज्येष्ठ श्रेष्ठ समाजसेवकांनच्या उपस्थितीत, ध्यान ज्योती सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथी निमित्त त्यांच्या जीवनाच्या स्मृती चा जागर करून आजच्या जीवनात त्यांच्याकडून काय प्रेरणा घेऊ शकतो या विचारावर प्रबोधन करतांना. सौ. कविता ताई ठाकरे यांनी सांगितले अनंत अडचणीला मात देऊन, आपले संपूर्ण आयुष्य स्त्रियांच्या न्याय हक्कासाठी झगडणाऱ्या स्त्री शिक्षणाचा पाया रचणाऱ्या पहिल्या महिला शिक्षिका
विद्वान अभी तक यह मानते हैं कि सिंधु सभ्यता काल जिसे पूर्व वैदिक काल भी कहा जाता है, सप्त सैंधव प्रदेश (पुराना पंजाब, जम्मू कश्मीर एवं अफगानिस्तान का क्षेत्र) में, जो मुनष्य थे वे त्वचा के रंग के आधार पर दो वर्ग में विभाजित थे । श्वेत रंग वाले जो घाटी के विजेता थे 'आर्य'' और काले रंग वाले जो पराजित हुये थे 'दास' कहलाये। विद्वान आर्य का अर्थ श्रेष्ठ मानते हैं क्योंकि वे युद्ध के विजेता थे। ये मूलत: पशु पालक ही थे। कालांतर में इन दोनों वर्गों में रक्त सम्मिश्रण भी हुआ और वृहत्तर समाज वर्गों में बंटते गया, जो संघर्ष की जीविविषा है।