जैनेन्द्र कुमार गुप्त, लखनऊ, प्रान्तीय युवा अध्यक्ष, उ०प्र० साहू वैश्य महासभा, विकास नगर, लखनऊ
भारतीय संस्कृति एवं बौद्धधर्म के प्रसार-प्रसार में तैलिक समाज की अहम् भूमिका रही है। ऐतिहासिक व सामाजिक भूमिका के परिपेक्ष्य में तैलिक जाति के लोगों का इतिहास तथा उनकी रचनात्मक भूमिका निम्नवत है
1. बौद्धधर्म का व्यापक प्रचार तैलिक वंशजों के द्वारा किया गया ।
2. नालन्दा विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार की स्थापना सन् 515 में गुप्तवंश के बालादित्य' ने किया था जो तेलहाड़ा (बिहार शरीफ) का निवासी था।
3. नालन्दा में तैलिक दानवीर द्वारा भगवान बुद्ध की आदमकद प्रतिमा की स्थापना की थी जिसे 'तेलिया भण्डार' कहा जाता है।
4. हजरत ईसा के जन्म से 3000 वर्ष पहले चेटटी, चेट्टिय्यारों (तैलिकों) के समुद्री जहाज चलते थे जिनका व्यापार विश्वव्यापी था।
5. काशी के तुलाधार तैलिक ने जांजलि ब्राह्मण को ज्ञानोपदेश दिया। तुलाधार ब्रहा ज्ञानी व ईमानदार थे इसीलिए इनकी ईमानदारी पर ही तराजू का नाम 'तुला' रखा गया है।
6. जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में भी तैलिकों का महत्वपूर्ण योगदान है। तैलिक कुल शिरोमणि दानवीर भामाशाह तथा उनके भाई ताराचंद शाह जैन धर्मावलम्बी थे।
7. सौमैया सम्प्रदाय के प्रवर्तक जैत संत तरण तारण साह महाराज ने चौदह ग्रन्थों की रचना की। इनकी 'गुना में समाधि बनी है।
8. इतिहासकार डा० आल्टेयर के अनुसार हिन्दुओं के चारों धामों में निरन्तर दीपक जलाये जाने की व्यवस्था तैलिक पंचायतें किया करती थीं।
9. वर्तमान सनातन धर्म में मूर्ति पूजा तैलिकों द्वारा प्रारम्भ की गई। तेलघानी यन्त्र (कोल्हू महादेव) की पूजा महादेव शंकर भगवान के रूप में की जाती है। 'जय तेलीघानी शंकर वरदानी' का जयघोष तैलिक व्यवसायी करते थे।
10. चालुक्य महाराजा सोमेश्वर प्रथम द्वारा सन् 1040 के लगभग में बनवाया गया ग्वालियर का "तेलांगन-तेली मन्दिर" बहुत प्रसिद्ध है।
11. तेली जाति की भक्त मां कर्माबाई का भव्य मन्दिर दतिया, झाँसी, सागर इत्यादि स्थानों पर आज भी है।
12. रायपुर में “राजिम माता का मन्दिर" है। इस मन्दिर में राजिम माता तेल पेरने वाले कोल्हू पर भगवान विष्णु की पूजा करती हुई विराजमान हैं।
13. नाथ सम्प्रदाय के सुप्रसिद्ध सिद्धि प्राप्त योगी बाबा गोरखनाथ जी ने 'जाती मोरो तेली' कहकर स्वयं अपना परिचय दिया है।
14. आल्हा में वर्णित प्रधान सेना नायक "धनुआ का नाम रणवीर में गिना जाता है जो तेली समुदाय का था ।
15. साहित्य के क्षेत्र मे मराठी के संत सन्ता जी महाराज जगनाडे और उड़िया के गोविन्द साह तथा कावयित्री खगनियों का नाम उल्लेखनीय है ।
16. दक्षिण भारत के तमिलनाडु का प्रसिद्ध ग्रन्थ 'कुरल' के रचनाकार तैलिक जाति के तिरूवल्लुवर हैं जिनके नाम पर ग्रंथ का नाम 'तिरुक्कुरल' है। यह ग्रन्थ जनमानस में लोकप्रिय है।
17. पिछड़े वर्ग आन्दोलन के शहीद चुल्हाई साहू जी छपरा के रहने वाले थे इन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में शोषित और दलित जातियों के उत्थान व जागृति हेतु मुहिम चलाया।
18. भारत के प्रथम वित्तमन्त्री “पष्मुठाम चेट्टी साहू समाज के रत्न थे।
19. बस्तर के तेलन्धार घाटी में टेकन की लाट, नल कच्छ में तेलन की टेकरी, उदयपुर में तैलिक सराय, नूरा बाद में तैलिक पुल तथा कलकत्ता में तैलिक काँटा प्रसिद्ध धरोहर हैं।
20. लखनऊ का तेली बाग, इलाहाबाद का तेलियरगंज, रायबरेली व बनारस का तेलियाना, दिल्ली का तेलीबाड़ा व अन्य शहर में तेली जाति पर रखे मुहल्लों के नाम तेली समुदाय की बाहुल्यता व सम्पन्नता का प्रतीक है।
21. मोहनदास करमचन्द गांधी भी तेली समुदाय से हैं। इस सम्बन्ध में उल्लेख है कि वाराणसी कांग्रेस के राष्ट्ररत्न शिव प्रसाद गुप्त ने प्रख्यात कर्मकाण्डी महामहोपाध्याय पं० विद्याधर से कराया। अनुष्ठान का समापन महात्मा गांधी से करने का आग्रह किया तो पं० विद्याधर व अन्य पण्डितों ने यह आपत्ति की कि तेली जाति के गांधी अधिष्ठान के यजमान नहीं हो सकते । परन्तु शिव प्रसाद गुप्त का तके था कि गाधी जी हिन्दू धार्मिक विचार के महापुरुष हैं । राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन जैसे महान पुनीत कार्य में अपना जीवन अर्पित किए हए हैं । इनसे उपयुक्त व्यक्ति और कौन हो सकता है? उन्होंने समापन अनुष्ठान का यजमान गांधीजी को ही बनाया ।