Sant Santaji Maharaj Jagnade
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अखिल भारतीय तैलिक साहू महासभा की स्थापना 24 दिसम्बर 1912 को बनारस में हुई तथा प्रतिवर्ष बैठक होती रही । राष्ट्रीयता की भावना एवं राष्ट्रीय नेताओं के सम्यक मार्ग दर्शन से प्रेरित विभिन्न जातियों भी अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए प्रयत्नशील ही । छत्तीसगढ में भी साहू समाज से राष्ट्रीयता की मुख्य धारा में भी साहू समाज से राष्ट्रीयता की मुख्य धरा में जुडने के लिए उत्साहित रहा । इसी पप्रिेक्ष्य में संपूर्ण छत्तीसगढ में वृहत स्तर पर सर्वप्रथम 1912 में गोकुलपुर बगीचा धर्मतरी में श्री जगतराम देवान की प्ररेणा से अधिवेशन हुआ ।
कोलकाता - अखिल भारतीय तैलिक साहू महासभा के राष्ट्रिय महामंत्री रजनीश गुप्ता और महेश साहू दिल्ली से आए थे । इन लोगों की उपस्थिति में उदय साव को पश्चिम बंगाल तैलिक साहू सभा (युवा प्रकोष्ठ) का अध्यक्ष, सुधीर गुप्ता को महामंत्री और अनिल जी को कोषाध्यक्ष के रूप में मनोनित किया गया ।
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चोलवंशी शासन काल में तमिलनाडू राज्य में नवयुवक कोवालन ने अप्सरा के समान सुन्दरी कण्णगी से शादी की थी । यह सुखी एवं वैभवपुर्ण व्यापारिक तेली परिवार था । इसी मध्य कोवालन राजनर्तकी माधवी पर मोहित हो गया और अपना सभी धन संपत्ती न्यौछावर किया । मोहपास भंग होने पर पुन: कण्णगी के पास आया । पारिवारिक व्यवस्था के लिए रत्नजडित पायल बेचते समय चोरी का मिथ्या लाछन लगाकर राजज्ञा से धड अलग कया गया ।
राजस्थान अंचल के हमीरपुर जिलान्तर्गत प्रमुख नग महोबा में धनीराम नामक व्यक्ति तेली समाज के ही थे । कवि जगनिक कृत आल्हखणड (आल्हा) में इसका उल्लेख है । वह आत्याधिक शक्तिशाली था, ही शस्त्र विद्या में निपुण था । बचपन से ही कुश्ची में अजेय योगद्धा रहा, परिणाम स्वरूप राजा ने पने प्रिय पुत्र का प्रमुख अंगरक्षक बना दिया । अंगरक्षक के रूप में धनीराम ने अपने प्राण की परवाह किए बिना स्वामी की रक्षा की । जान बचाई ।
9 वी सदी मे दक्षिण कोशल में तैलप एवं चालुक्य एवं कल्चुरी वंश ऐसा माना जाता है कि परमार वंशीय राजा मुंज के साथ तैलपो का अनेक बार युद्ध हुआ । जिसमें 6 वी बार राजा मंजु तैतलों से पराजित हुआ । तैलयो की संभवतया कलचुरियों का साथ दिया था । जिनका उल्लेख किया जाता है । कि वे कोकल्य द्वितीय के पुत्र गांगेयदेव तेलांगान हुए जिसे ही आक्रोश अथवा विरोधवशं गंगूतेली कहा गया है ।