राष्ट्रीय साहू युवा विकास महासमिति जिला इकाई नरसिंहपुर के तत्वधान में जिला कार्यकारिणी के पदाधिकारियों का शपथ ग्रहण क्षेत्र की प्रतिभाशाली विद्यार्थियों समाज सेवीयो को सम्मानित करने के उद्देश्य से साहू समाज नरसिंहपुर का एक दिवसीय सद्भावना समारोह का आयोजन किया जा रहा है । कार्यक्रम शुक्रवार दिनांक 14 दिसंबर 2018 को सुबह 11 बजे तहान ग्राम दहलवाड़ा (गाडरवारा) जिला नरसिंहपुर में आयोजित होगा ।
भक्तिन माता राजिम के त्याग को लोग याद करते हैं।
राजिम की सांस्कृतिक ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धि के पीछे एक महान नारी का आत्मोत्सर्ग अनन्य सेवा भाव श्रम एवं साधना का फल जुड़ा हुआ है, भले ही इसे आज विस्मृत कर दिया गया हो अथवा जाति विशेष का कर्तव्य मान प्रबंधक वर्ग निश्चित हो गये हो पर जिस नारी ने निस्वार्थ भाव से अपना सब कुछ अर्पित कर दिया हो उसे नाम की कोई लालसा नहीं थी. उसने आराध्य का साथ मांगा था और अपना प्राणोत्सर्ग भी उन्हीं के श्री चरणों में किया था, आज भी अपने प्रिय भगवान के सामने इस सती की समाधि विद्यमान
राजिम छत्तीसगढ़ क्षेत्र का पवित्र ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। अपने पुरातन इतिहास की गौरवमयी परम्परा को आत्मसात किये यह धरोहर भगवान विष्णु की नगरी है । छत्तीसगढ़ के लाखों नरनारियों को माघ पूर्णिमा से शिवरात्री तक सांस्कृतिक एकता के पवित्र बन्धन में आबद्ध किए रहती है। यहां माह पर्यन्त विशाल मेला का आयोजन किया जाता है ।
अपने आप में उत्तर तथा दक्षिण भारत की संस्कृति को सजाए राजिम संगम के पुण्य को बांटती है और आज भी हर छत्तीसगढ़ीया कहा जावो बड़ दूर हे गंगा कहकर अपने सभी पवित्र धार्मिक कार्य इसी त्रिवेणी संगम (महानदी सेंदूर एवं पैरीनदी) में पूर्ण करता है ।
प्रतिवर्ष के अनुसार ही वर्ष भी साहू समाज परिषद झिरिया के तत्वधान में वार्षिक सम्मेलन मां कर्मा जयंती दानवीर भामाशाह जयंती एवं महिला सशक्तिकरण का आयोजन दिनांक 1-5-2016 दिन रविवार को ग्राम दरगहनं सलोनी में किया गया है । सभी समाज बंधुओं से यह आवेदन किया गया है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में पधार कर इस कार्यक्रम को सफल बनाए ।
विद्वान अभी तक यह मानते हैं कि सिंधु सभ्यता काल जिसे पूर्व वैदिक काल भी कहा जाता है, सप्त सैंधव प्रदेश (पुराना पंजाब, जम्मू कश्मीर एवं अफगानिस्तान का क्षेत्र) में, जो मुनष्य थे वे त्वचा के रंग के आधार पर दो वर्ग में विभाजित थे । श्वेत रंग वाले जो घाटी के विजेता थे 'आर्य'' और काले रंग वाले जो पराजित हुये थे 'दास' कहलाये। विद्वान आर्य का अर्थ श्रेष्ठ मानते हैं क्योंकि वे युद्ध के विजेता थे।