भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़राज्य के तेली परिवार में 29 अप्रैल, 1547 को हुआ था। इनके पिता भारमल थे, जिन्हें राणा साँगा नेरणथम्भौर के क़िले का क़िलेदार नियुक्तकिया था। भामाशाह बाल्यकाल सेही मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार रहे थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगानेमें भामाशाह सदैव अग्रणी थे। उनको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था। दानवीरता के लिए भामाशाहका नाम इतिहास में आज भी अमर है। धन-संपदा का दान भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्त्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ था ।
मेवाड़ के इस वृद्ध मंत्री ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जितकी थी। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रतापका सर्वस्व होम हो जाने केबाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा उन्हें अर्पित कर दी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुए और उनसे मेवाड़ के उद्धार की याचना की । माना जाता है कि यहसम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे 11 वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था । महाराणा प्रताप 'हल्दीघाटी का युद्ध' ( 18 जून, 1576 ई.) हारचुके थे, लेकिन इसके बाद भी मुग़लों पर उनके आक्रमणजारी थे। धीरे- धीरे मेवाड़ का बहुतबड़ा इलाका महाराणा प्रताप के कब्जे में आनेलगा था।
तैलिक वैश्य जाति का गौरवपूर्ण कार्य इतिहास के धरोह है जिस समय के झंझावातो ने बिखरने का प्रयास किया । वर्ग संघर्ष की परीघि में धकेलने का भी उपक्रम हुआ । समुचित प्रबंधक के महत्वपुर्ण शक्ति की अद्वुत उर्जा ने नेतृत्व के अभाव अथवा पराभव ने तैलिक वैश्य जाति के सुकार्यो को भी गणना, इतिहास ने नही की । निसंदेह यह हमारे लिए आत्मचिंन्तन का समय है कि वर्तमान मै हम हमारी पहचान को स्वजातीय गौरव को समक्ष रखकर अपनी अस्मिता को और प्रदीप्त करे वह भी वर्तमान के संघर्षपूर्ण अस्तित्व रक्षा के साये में अपनी चमक प्रकाश को आपने तैलिक निस्वार्थ एवं जनहितार्थ कार्यो को आगे बढाते हुये ।
इतिहास के इन्ही सोपानो में ये अग्रतिम नाम है राष्ट्र भक्त दानवीर भामाशाहा इनके ही अनुपम दान त्याग औ कार्यकुशल प्रबंध ने महाराणा प्रताप के स्वभिमान की रक्षा की । यह केवल भामाशाह ही नहीं भारतीय सभ्यता और संस्कृती का वंनीय उदाहरण है ।