माँ कर्माबाई का जीवन परिचय, Maa Karma Devi Jivan Parichay साहू तेली समाज की आराध्य देवी
जन्म:- पाप मोचनी एकादशी संवत् 1073 सन् 1017ई0 माँ कर्मा आराध्य हमारी, भक्त शिरोमणी मंगलकारी। सेवा, त्याग, भक्ति उद्धारे, जन-जन में माँ अवतारे।।
परम् आराध्य साध्वी भक्ति शिरोमणी माॅ कर्माबाई देश-विदेश में आवासित करोड़ो-करोड़ो सर्व साहू तेली समाज की आराध्य देवी कर्माबाई की गौरव गाथा जन-जन के मानस में श्रद्धा भक्ति के भाव से विगत हजारों वर्षो से अंकित चली आ रही है। इतिहास के पन्नों पर उनकी पावन गाथा तथा उसने सम्बन्धित लोकगीत किंवदतिया और आख्यान इस बात के प्रमाण है कि माॅ कर्मबाई कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। माॅ कर्माबाई का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी नगर में चैत्र कृष्ण पक्ष के पाप मोेचनी एकादशी संवत् 1073 सन् 1017ई0 को प्रसिद्ध तेल व्यापारी श्री राम साहू जी के घर में हुआ था।
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रायगड जिल्हा कोकणस्थ तेली समाज सेवा संस्था हि रजि.
४० वर्षा पूर्वीची असुन त्यात सर्व कोकणस्थ तेली बांधव आहेत .(रायगड जिल्हा पुर्ति मर्यादित नसून सर्व कोकणस्थ तेली बांधवसाठी आहे),
जालौन । दिनाँक 09/05/16 को साहू समाज समिति जालौन द्वारा सामूहिक विवाह एवं छात्र-छात्रा अभिन्नदन समारोह आयोजित किया गया । जिसमें मुख्यअतिथि कैलाश साहू पूर्व विधायक झाँसी /प्रदेश अध्यक्ष उत्तर प्रदेश तैलिक साहू महासभा थे ।
तैलप तृतीय का पुत्र सोमेश्वर चतुर्थ (1181-1189 ई) चालुक्य वंश का अन्तिम शासक हुआ । वह पराक्रम से कल्याणी को पुन: जीतने में कामयाब रहा । लेखों में उसे चालुक्याभरण श्रीमतत्रैलोक्यमल्ल भुजबलबीर कहा गया है । सभ्भवत: भुजबलबीर की उपाधि उसने कलचुरियो के विरुद्ध सफलता के उपलक्ष्य में ही धारण की थी । एक लेख में उसे कलचुरिकाल का उन्मूलन करन वाला (कलचूर्यकाल निर्मूलता)कहा गया है । इस प्रकार सामेश्वर ने चालुक्य वंश की प्रतिष्ठा को फिर स्थापित किया । कुछ समय तक वह अपने साम्राज्य को सुरक्षित बचाये रखा । परन्तु उसके राज्य में चारो ओर विद्रोह हो जाने के कारण स्थिति को संभाल नहीं सका । 1190 ई. के लगभग देवगिरी के यादवों ने परास्त कर चालुक्य राजधानी कल्याणी पर अधिकार कर लिया ।
कल्याणी केचालुक्यों का स्वतंत्र राजनैतिक इतिहास तैल अथवा तैलजप द्वितीय (973-997 ई.) के समय सेप्रारभ्भ हाता है । उसके पर्व हमें कीर्तिवर्मा तृतीय, तैल प्रथम के नाम लिते है । इनमे तैलप प्रथ तथा विक्रमादित्य चतुर्थी के विय में भाी हमें यह जानकारी प्राप्त होतीहै, ये भी राष्ट्र कुट नरेश लक्ष्मणसेन की कन्य बोन्थादेव्री के साथ सम्पन्न हुआ और इसी से तैलव द्वितीय का जन्म हुआ । नीलकण्ठ शास्त्री अनुसार ये सभी शासक ीजापुर तथा उसकें समीपवर्ती क्षेत्र में शासन करते थें जो इस वंश की मुल राजधानी के पास में था ।