महासमुंद जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर स्थित है गांव गुनगासेर । यह वही ऐतिहासिक गांव है, जहां 15 मई 1975 को साहू समाज के मुखिया और ग्रामीणों ने मिलकर एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया, जो इतिहास के पन्नों में आना गौरवशाली बन चुका है। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि सन् पचहत्तर में क्षेत्र में भीषण अकाल की स्थिति थी।
आज सर्वत्र जिस सामूहिक आदर्श विवाह की जो चर्चा हो रही है। जिसे एक क्रांतिकारी पहल के साथ-साथ विचारक्रांति के रूप में आज देशआ। विदेश में लागू किया जा रहा है। उसे प्रथम बार आज से 42 वर्ष पूर्व जिन स्वप्न दृष्टाओं में साकार किया, उनमें से एक प्रमुख नाम है। स्थ. नाथूराम साहू जी की। तात्कालीन सामाजिक कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में आपका स्थान तत्कालीन सामाजिक कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों में आपका स्थान अग्रगण्य है इस आदर्श विवाह में नींव रखने वाले नीव के पत्थर कहें तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी। वे उस समय मंत्री (सचिव) रहे। इस तरह प्रायः प्रायः सभी कार्यों में इनकी सहभागिता अधिक रही। उनके पिता स्व.
सामाजिक विकास की संकल्प के साथ बचपन से ही सेवा के क्षेत्र में अपनी सेवाएं देते आ रहे है। अध्यक्ष नगर साहू समाज बलौदाबाजार के श्री प्रेमनारायण साहू सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यों में बराबर सहयोग देते आ रहे हैं। सामाजिक विकास की सोच को सदैव अपने मन में संजोकर कार्य करते रहने को अपनी पहली प्राथमिकता मानते है।
राधेश्याम साहू, एडवोकेट सआदतगंज, लखनऊ
सर्वे भवन्तु सुखिनाः सर्वे सन्तु निरामयः । सर्वे भद्राणि पश्यतु मा कश्चित दुख लि भाग भवेत।। का भाव अंगीकृत करके "संघे शक्ति' कलियुगै" के मूल मंत्र को मन में संजोकर बाढ़ (पटना) निवासी स्वनामधन्य बाबू काली प्रसाद व आजमगढ़ निवासी बाबू महावीर प्रसाद वकील और उनके सहयोगियों द्वारा धार्मिक नगरी काशी (वाराणसी) में अखिल भारतीय तैलिक वैश्य महासभा की नींव सन् 1912 में रखकर समाज के सर्वांगीण विकास हेतु जो दीप प्रज्ज्वलित किया गया था
कैलाश नाथ साहू, महामंत्री, उ०प्र० साहू राठौर चेतना समिति राष्ट्रीय तैलिक साहू राठौर चेतना
हम एक लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं और यह जानते हैं कि हमारी यात्रा अभी लम्बी है, नदी को सागर तक पहुंचने में अनेक अवरोधों का सामना करना पड़ता है। बड़ी-बड़ी चट्टानें उसके मार्ग में आती हैं और रुकावटें डालती हैं लेकिन इन अवरोधों से टकराकर नदी के प्रवाह में तेजी व उत्तेजना पैदा होती है। वह अपने बहने के तारतम्य को नहीं तोड़ती और एक क्षण ऐसा आता है जब अवरोधों को अपने आप हट जाना पड़ता है या उसक प्रवाह में टूट-टूट बह जाना पड़ता है।