Sant Santaji Maharaj Jagnade Sant Santaji Maharaj Jagnade
संत संताजी महाराज जगनाडे

एक परिचय - श्री चंदूलाल साहू सांसद महासमुन्द लोकसभा

पंचायत से संसद तक का सफर :

        कुछ लोग इतने जुनूनी होते है कि जो चाहते हैं। उसे पूरा करते हैं, वे सफलता के लिये लगातार प्रयास करते रहते हैं उनका लक्ष्य मजबूत होता है। कि वे असंभव को संभव बना लेते है। श्री चंदूलाल साहू जी के व्यक्तित्व को यदि टटोला जाये तो यह बात सच लगती है।

दिनांक 20-06-2019 23:03:34 Read more

व्यक्तित्व निर्माण में तेली साहू समाज की अहम भूमिका चन्दूलाल साहू

        समाज से ही हर व्यक्ति की पहचान होती है, संस्कृति व संस्कार का निर्माण होता है। हम सभी को एकता के सूत्र में पिरोए रखने का गुण रहस्य हमें समाज से ही मिलता है। आजतक हमने समाज से जो भी पाया हैं उनके बतायें आदर्शी का अनुसरण करके अपने जीवन के नवनिर्माण में उपयोगी सिद्ध कर सकते हैं। आज तेली साहू समाज एक सशक्त एवं आदर्श समाज की श्रेणी में  स्‍थपित है।

दिनांक 17-04-2017 22:41:58 Read more

संत माता भानेश्वरी देवी

sant mata Bhaneshwari devi             घोला ग्राम-जिला मुख्यालय राजनांदगांव से मात्र 11 कि.मी. पर राजहरा झरनदल्ली मार्ग पर स्थित 5 हजार की आबादी वाला गांव माता की वह पुण्य भूमित हैं, जहां बालिका भानुमति के चमत्कार से लोग विस्मृत हो उठे। मध्यम किसान सोमनाथ साहू के परिवार में 9 मई 1911 को भानुमति का जन्म हुआ। 12 वर्ष की अवस्था में चमत्कार हुआ। शरीर में बड़े चेचक के दाने उभरे, जो निरंतर कम ज्यादा होने लगे बुखार तो होता ही था।

दिनांक 20-06-2019 01:14:57 Read more

श्रद्धा का प्रतीक, तेलीन सत्ती दाई

       मतरी शहर से लगभग 3 कि.मी. दूरी पर तेलीन सत्ती गांव है। कुछ तथ्य पुरातत्व विभाग से तो कुछ ग्रामीणों द्वारा जानकारी मिली वह नीचे अंकित हैं। 15वीं, 16वीं शताब्दी में सातबाई नामक एक अविवाहित लड़की जो कि किरनबेर साहू जाति का एक प्रसिद्ध गोत्र (किरहा बोईर) गोत्र की थी। भनपुरी ग्राम में रहती थी। सात भाईयों की इकलौती बहन थी। इसलिये ये लोग सातो बाई का विवाह करके दामाद को अपने ही घर में (धरजिया) रखना चाहते थे।

दिनांक 20-06-2019 01:00:56 Read more

तेली साहू समाज के गौरव

        सामाजिक अस्मिता की स्वीकृति उसके सा स्मरणीय गौरव से ही संभव है चाहे वह प्राचीन हो अथवा अर्वाचीन । नि:संदेह हमारी वृति, हमारी प्रकृति हमारी कृति ने हमें अपनी ही जाति के पद पर सम्मानित किया जो अक्षुण्य है, जिसके ही शक्ति थलप्रभाव पर हम आत्मविभोर होकर गौरव एवं मान प्राप्त करते है। इसीलिए हमारा प्राचीन इतिहास हमारी कृति स्मारणीय गौरवपूर्ण हैं तो वर्तमान उसी आधार पर प्रगति के सोपान हैं, विभिन्न शंकावतों विसंगतियों से जूझते हुए हमने आत्मसंबल प्राप्त किया । इन्हीं गौरव को आज आत्मावलोकन स्मरण कर प्रगति की ओर गतिमान होना आवश्यक हैं। यही तो जाति, स्वजाति स्वाभिमान हैं ।

दिनांक 20-06-2019 00:25:02 Read more

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