पंचायत से संसद तक का सफर :
कुछ लोग इतने जुनूनी होते है कि जो चाहते हैं। उसे पूरा करते हैं, वे सफलता के लिये लगातार प्रयास करते रहते हैं उनका लक्ष्य मजबूत होता है। कि वे असंभव को संभव बना लेते है। श्री चंदूलाल साहू जी के व्यक्तित्व को यदि टटोला जाये तो यह बात सच लगती है।
समाज से ही हर व्यक्ति की पहचान होती है, संस्कृति व संस्कार का निर्माण होता है। हम सभी को एकता के सूत्र में पिरोए रखने का गुण रहस्य हमें समाज से ही मिलता है। आजतक हमने समाज से जो भी पाया हैं उनके बतायें आदर्शी का अनुसरण करके अपने जीवन के नवनिर्माण में उपयोगी सिद्ध कर सकते हैं। आज तेली साहू समाज एक सशक्त एवं आदर्श समाज की श्रेणी में स्थपित है।
घोला ग्राम-जिला मुख्यालय राजनांदगांव से मात्र 11 कि.मी. पर राजहरा झरनदल्ली मार्ग पर स्थित 5 हजार की आबादी वाला गांव माता की वह पुण्य भूमित हैं, जहां बालिका भानुमति के चमत्कार से लोग विस्मृत हो उठे। मध्यम किसान सोमनाथ साहू के परिवार में 9 मई 1911 को भानुमति का जन्म हुआ। 12 वर्ष की अवस्था में चमत्कार हुआ। शरीर में बड़े चेचक के दाने उभरे, जो निरंतर कम ज्यादा होने लगे बुखार तो होता ही था।
मतरी शहर से लगभग 3 कि.मी. दूरी पर तेलीन सत्ती गांव है। कुछ तथ्य पुरातत्व विभाग से तो कुछ ग्रामीणों द्वारा जानकारी मिली वह नीचे अंकित हैं। 15वीं, 16वीं शताब्दी में सातबाई नामक एक अविवाहित लड़की जो कि किरनबेर साहू जाति का एक प्रसिद्ध गोत्र (किरहा बोईर) गोत्र की थी। भनपुरी ग्राम में रहती थी। सात भाईयों की इकलौती बहन थी। इसलिये ये लोग सातो बाई का विवाह करके दामाद को अपने ही घर में (धरजिया) रखना चाहते थे।
सामाजिक अस्मिता की स्वीकृति उसके सा स्मरणीय गौरव से ही संभव है चाहे वह प्राचीन हो अथवा अर्वाचीन । नि:संदेह हमारी वृति, हमारी प्रकृति हमारी कृति ने हमें अपनी ही जाति के पद पर सम्मानित किया जो अक्षुण्य है, जिसके ही शक्ति थलप्रभाव पर हम आत्मविभोर होकर गौरव एवं मान प्राप्त करते है। इसीलिए हमारा प्राचीन इतिहास हमारी कृति स्मारणीय गौरवपूर्ण हैं तो वर्तमान उसी आधार पर प्रगति के सोपान हैं, विभिन्न शंकावतों विसंगतियों से जूझते हुए हमने आत्मसंबल प्राप्त किया । इन्हीं गौरव को आज आत्मावलोकन स्मरण कर प्रगति की ओर गतिमान होना आवश्यक हैं। यही तो जाति, स्वजाति स्वाभिमान हैं ।