sahu (or sahoo) is a surname is manly found in teli samaj (community) in Indian subcontinent. these people are businessman. in India the surname is found in the Gujarat, Madhya Pradesh, Bihar, Jharkhand, Uttar pradsh, Chhattisgarh, Odish And some parts of Maharashtra. In teli Cast surname Sahu is in the OBC category. this surname is also found in other cast also.
some other sub cast in teli samaj (cast)
Maratha teli, Rathore Teli, Kshatriya teli, Jairat Teli, Tilwan Teli, Rathod Teli, Rathore Teli, Savji Teli, Tirmal Teli, Ek baili, Erandel Teli, Don baili Teli, Sahu Teli, Vaddhar Teli, Tarhan Teli, Moodi Teli, konkani Teli, Lingayat Teli, veerashaiva lingayat teli, Bathari Teli, Rajput Teli, Unai Sahu teli samaj, GANIGA, Gandla, Ghanchi teli samaj, Vaniya chettiar, chettiar and other
आनारसे
तेली समाज हा शिवास सर्वात जास्त मानतात. त्यामुळे आज ही आनेक ठिकाणी सोमवारी तेल घाणा बंद आसतो. तेल घाण्यास शिवाचे आवातार ही मानले जाते. दसर्याला घाण्याची यथासांग पूजा करून त्यास नैवेद्य दाखविला जातो, तो आनारश्यांचा.
साहित्य :- जुने तांदूळ (चिकट तांदूळ वर्ज्य), कोल्हापूरी पिवळा गूळ, तूप, खसखस साखर,
कृती : तांदूळ स्वच्छ धुऊन भिजत घालावेल, दररोज पाणी बदलून तांदूळ 3 दिवस भिजत ठेवावे. नंतर ते उपसून पाणी निथळून काढावे तांदूळ दमट असतानाच ते कुटून अगर मिक्सरमधुन त्याचे खुप बारीक पिठ करावे. जेवढ पिठ आसेल तेवढाचाच वजनाचा गुळ बारीक किसुन घ्यावापीठ व गुळ निट एकजिव करावा व त्यात दोन चमचे साजुकतुप घालावे. हे पिठ डब्यात बंद करून ठेवावे. साधारणता आठ दिवसा नंतर हे पिठ आनरसे बनवण्यास योग्य होते.
तेली समाजातील व्यक्तीमत्वे डॉ. महेंद्र धावडे (एम.ए.बी.एड., पी.एच.डी.)
हे तेली समाजाचे गाढे संशोधक, तेली समाज : इतिहास व संस्कृती या विषयावर डॉक्टरे मिळवली याशिवाय त्या समाजावर सशोनात्मक अनेक गंथ लिहिले. त्यातील प्रमुख गुप्ता बिलाँग टू तेली कम्युनिटी, कॉन्ट्रीबिशन ऑफ तेली कम्युनटी टू बुद्धीझम, व्हॉट काँग्रेस अॅण्ड बीजेपी हॅव डन फॉर ओबीसी ? आदि सांप्रत कार्यकारी संपादक : उपराधानी साप्ताहिक, नागपुर, सहसंपादक : साहू वैश्य महासभा, दिल्ली राजर्षी शाहू महाराज पुरस्कार, राठोड तेली सन्मान प्राप्त.
मित्रों, जिस तेली जाति में..जिस वैश्य वर्ण व समाज में हमारा जन्म हुआ है ! वह जाति..वह वर्ण परम पवित्र और अत्यंत श्रेष्ठ है !
हमारे पूर्वजों ने उस समय तिल और तिलहन की खोज की थी, तिल से तेल निकाला और सारे संसार को प्रकाश से जगमग किया था..जब सारा संसार गहन अंधकार में डुबा हुआ था, जब रात में रौशनी के लिए कोई साधन नहीं था.! हमारे महान् पर्वजों ने कोल्हू नामक यंत्र का आविष्कार किया था, जब संसार में किसी वैज्ञानिक संसाधन उपलब्ध नहीं थे..! ऐसे वैज्ञानिक पूर्वजों के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए !
प्राचीन काल में हमारी इस पवित्र जाति में अनेक संतों, भक्तों, वीरों, दानियों, सतियों और समाज सेवकों तथा महान् विभूतियों ने जन्म लिया है, जिनमें महाभारत काल के महात्मा तुलाधार, दुर्गा सप्तशती में वर्णित समाधि वैश्य, स्कन्दपुराण के..सत्यनारायण कथा के महान् पात्र साधु वैश्य, हठ योग के प्रणेता गुरुगोरक्षनाथ, कर्मा बाई साहू ने, राजिम तेलिन भक्तिन ने, दानवीर भामाशाह आदि हैं, जिन्होंने समाज के समक्ष श्रेष्ठ आदर्श रखा और सामाजिक परिवर्तन का कार्य सम्पन्न किया था ! आज पुनः हमें अपनी तेली जाति को जगाने की आवश्यकता आन पड़ी है !
भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़राज्य के तेली परिवार में 29 अप्रैल, 1547 को हुआ था। इनके पिता भारमल थे, जिन्हें राणा साँगा नेरणथम्भौर के क़िले का क़िलेदार नियुक्तकिया था। भामाशाह बाल्यकाल सेही मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार रहे थे। अपरिग्रह को जीवन का मूलमंत्र मानकर संग्रहण की प्रवृत्ति से दूर रहने की चेतना जगानेमें भामाशाह सदैव अग्रणी थे। उनको मातृ-भूमि के प्रति अगाध प्रेम था। दानवीरता के लिए भामाशाहका नाम इतिहास में आज भी अमर है। धन-संपदा का दान भामाशाह का निष्ठापूर्ण सहयोग महाराणा प्रताप के जीवन में महत्त्वपूर्ण और निर्णायक साबित हुआ था ।
मेवाड़ के इस वृद्ध मंत्री ने अपने जीवन में काफ़ी सम्पत्ति अर्जितकी थी। मातृ-भूमि की रक्षा के लिए महाराणा प्रतापका सर्वस्व होम हो जाने केबाद भी उनके लक्ष्य को सर्वोपरि मानते हुए भामाशाह ने अपनी सम्पूर्ण धन-संपदा उन्हें अर्पित कर दी। वह अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति के साथ प्रताप की सेवा में आ उपस्थित हुए और उनसे मेवाड़ के उद्धार की याचना की । माना जाता है कि यहसम्पत्ति इतनी अधिक थी कि उससे 11 वर्षों तक 25,000 सैनिकों का खर्चा पूरा किया जा सकता था । महाराणा प्रताप 'हल्दीघाटी का युद्ध' ( 18 जून, 1576 ई.) हारचुके थे, लेकिन इसके बाद भी मुग़लों पर उनके आक्रमणजारी थे। धीरे- धीरे मेवाड़ का बहुतबड़ा इलाका महाराणा प्रताप के कब्जे में आनेलगा था।