ॐ जय कर्मा माता - मय्या जय कर्मा माता ।
भक्ति मार्ग - दिखलाती - ज्ञान मयी माता ॥
ॐ जय कर्मा माता
आप अनोखी भक्ता - दिव्य देह धारी ।
दाऊ कृष्ण सुभद्रा - सबकी ही प्यारी ॥
मय्या सबकी ही प्यारी
एक बार जब मेरी मय्या को - दर्शन से रोका ।
स्वयं मूर्ती उठकर आई - जन जन था चौक ॥
मय्या जन जन था चौका
गर्व हमें है, हम है तेली
निज गौरव, स्वाभिमान हैं,
सरल सौम्य, योद्धा भी जन्मे
पावन एक पहचान हैं ।
कांतिहीन सा चेहरा छोडो
हेमूशाह फौलाद हो,
मॉ कर्मा के, आंख का तारा
राजिम मॉ की औलाद हो ।
चोलवंशी शासन काल में तमिलनाडू राज्य में नवयुवक कोवालन ने अप्सरा के समान सुन्दरी कण्णगी से शादी की थी । यह सुखी एवं वैभवपुर्ण व्यापारिक तेली परिवार था । इसी मध्य कोवालन राजनर्तकी माधवी पर मोहित हो गया और अपना सभी धन संपत्ती न्यौछावर किया । मोहपास भंग होने पर पुन: कण्णगी के पास आया । पारिवारिक व्यवस्था के लिए रत्नजडित पायल बेचते समय चोरी का मिथ्या लाछन लगाकर राजज्ञा से धड अलग कया गया ।
नीमच, मध्यप्रदेश :- दिनों सकल तेली समाज जिला नीम द्वारा माँ कर्मा बाई जयंती महोत्सव मनाया गया । बारादरी पर सभी एकत्रित हुए । दोघोडे कलश व आरती की बोली लगाई गई । भव्य ऐतिहासिक जुलूस की शुरूआत बारादरी से बैंड बाजे, ढोल, नाच गाने के साथ हुई । बारादरी से नया बाजार, घंटाघर, पुस्तक बाजार, विजय टॉकिज होते हुए अंत में टाउनहाल पर माँ कर्माबाई की विशाल आरती के साथ जुलूस का समापन हुआ ।
नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गुरु गोरखनाथ महान योगी दार्शनिक धर्मनेता युग प्रवर्तक आचार्य थे । इनका प्रादुर्भाव 9 वी सदी में पेशावर या गोरखपुर में हुआ था । यह जिज्ञासुएवं भ्रमणशील स्वभाव वाले थे और इन्हीं वेदों उपनिषदों स्मृतियो एव संस्कृत साहित्य का ज्ञान होते हुए की उन्होंने अपने मत का प्रचार जनभाषा में किया था । यह ब्राह्मणवादी व्यवस्था के विरोधी थे । इन्होंने हठयोग, गोरख संहिता, गोरक्ष गीता, प्राण संकली, सबदी आदि 43 ग्रंथों हिंदी में लिखे हैं तथा अमनस्क, अमरोध शसनम अवधुत गिता गोरक्ष कौमूदी, गोरक्ष शतक सहित 31 ग्रंथ संस्कृत मैं लिखे है ।